अमेरिका में सस्ता हुआ कर्ज, क्या अब RBI भी करेगा ब्याज दरों में कटौती?
अमेरिका में नीतिगत ब्याज दरों में कटौती के बाद भारत में भी इसी तरह की राहत की उम्मीद बढ़ गई है। कई ऐसे फैक्टर हैं जिनसे लगता है कि आरबीआई ब्याज दरों में कटौती कर सकता है। महंगाई फिलहाल 4 फीसदी से नीचे है। सितंबर और अक्टूबर में मुद्रास्फीति में उछाल की आशंका के बावजूद आने वाले महीनों में खुदरा महंगाई पांच प्रतिशत से नीचे या उसके करीब रहेगी।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिका में फेडरल रिजर्व ने नीतिगत ब्याज दरों में आधा फीसदी की भारी-भरकम कटौती की है। इससे उम्मीद की जा रही है कि भारत जैसे देशों में भी केंद्रीय बैंक ब्याज दरें घटाकर जनता को राहत दे सकता है। पिछले कुछ समय से खुदरा महंगाई के आंकड़ों में नरमी भी आई है और यह अगस्त में 3.65 फीसदी के स्तर पर रही। आरबीआई आदर्श स्थिति में खुदरा महंगाई को 4 फीसदी से नीचे रखना चाहता है। इससे भी आस बढ़ी है कि ब्याज दरों में कटौती हो सकती है।
आइए समझते हैं कि आरबीआई अक्टूबर की शुरुआत में ब्याज दरों में कटौती करेगा या नहीं। वह ब्याज दरें घटाने से पहले किन फैक्टर को ध्यान में रखेगा। इस बारे में एक्सपर्ट की क्या राय है।
ब्याज दरों में कटौती से क्या होता है?
अगर आरबीआई ब्याज दरों में कटौती करता है, तो इससे घर या गाड़ी खरीदने के लिए कर्ज लेना सस्ता हो जाएगा। अगर आपने पहले से लोन ले रखा है, तो आपकी EMI कम हो जाएगी। साथ ही, कंपनियों के कर्ज की लागत घटेगी, तो वे नई हायरिंग बढ़ा सकती हैं। इससे लोगों के हाथ में ज्यादा पैसा आएगा और वे खर्च बढ़ाएंगे। इससे कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज होगी और देश को फायदा मिलेगा।
क्या आरबीआई ब्याज दरें घटाएगा?
आरबीआई की नीतिगत ब्याज दरों के बारे में फैसला लेने वाली MPC मीटिंग 7-9 अक्टूबर के बीच होने वाली है। लेकिन, इसमें रेट कट की गुंजाइश काफी कम है। इस बात का संकेत हाल ही में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी दिया। उनका कहना था कि हम ब्याज दर से जुड़े फैसले लेने के लिए विकसित देशों का मुंह नहीं देखते। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि अभी आरबीआई का पूरा ध्यान महंगाई कम करने पर ही रहेगा। आरबीआई ने अपने हालिया बुलेटिन में भी खाद्य पदार्थों के मूल्यों में उतार-चढ़ाव को अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बताया है।आरबीआई दरें घटाने से क्यों बच रहा?
- आरबीआई कई दफा साफ कर चुका है कि उसका प्राथमिकता महंगाई को काबू में करना है। अमेरिका जैसे विकसित देश में ब्याज दरें घटने से कई समस्याएं हो सकती हैं। मसलन, अमेरिकी निवेशक ज्यादा ब्याज के लिए भारत जैसे इमर्जिंग मार्केट में निवेश बढ़ा सकते हैं, जहां ब्याज से कमाई के मौके ज्यादा है। इसे कैश फ्लो बढ़ जाएगा।
- अगर इस स्थिति में आरबीआई ब्याज दरों में कटौती करता है, तो सिस्टम में कैश काफी अधिक हो सकता है। इससे महंगाई नियंत्रण से बाहर जा सकती है, जो फिलहाल काबू में आती दिख रही है। फिर रुपये और डॉलर के बीच संतुलन भी बिगड़ सकता है, जिसकी चोट भारत के निर्यात को लगेगी। ऐसे में आरबीआई ब्याज दरों में कटौती से बचेगा।
- भारत का बैंकिंग सिस्टम भी नकदी संकट से जूझ रहा है। साथ ही, डिपॉजिट मुकाबले लोन ग्रोथ तेजी से बढ़ रही है। इस स्थिति में ब्याज दरों में कटौती से यह संकट और भी गहरा हो जाएगा, क्योंकि रेट कट के बाद बैंकों को FD जैसी सेविंग स्कीम पर भी ब्याज घटाना पड़ेगा। इससे डिपॉजिट और लोन ग्रोथ के बीच असंतुलन और भी गहरा हो जाएगा।