RBI Rate Cut: दिसंबर छोड़िए, फरवरी में भी ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद नहीं
अक्टूबर में खुदरा महंगाई 6.21 फीसदी रही और यह आरबीआई की तय हद के बाहर निकल गई। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास कई दफा स्पष्ट कर चुके हैं कि केंद्रीय का फोकस फिलहाल महंगाई घटाने पर है। ऐसे में यह तकरीबन तय है कि दिसंबर की एमपीसी मीटिंग में ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं होगी। अब फरवरी में भी ब्याज दरें कम होने पर संकट के बादल उमड़ रहे हैं।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिका के साथ यूरोप की कई विकसित अर्थव्यवस्थाएं नीतिगत ब्याज दरों में कटौती कर रही हैं। लेकिन, भारत में रियायती ब्याज दर की उम्मीदें लंबे वक्त के लिए ठंडे बस्ते में जा सकती है। दरअसल, एसबीआई रिसर्च का कहना है कि मुद्रास्फीति लगातार बढ़ रही है। इस वजह से दिसंबर के बाद जनवरी में होने वाली एमपीसी मीटिंग में भी ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद नहीं है।
जनवरी में नरम होगी मुद्रास्फीति?
एसबीआई की रिपोर्ट में इस बात की संभावना जरूर जताई गई है कि जनवरी से मुद्रास्फीति में थोड़ी कमी आने लगेगी। लेकिन, ऐसा नहीं है कि चीजें सस्ती हो जाएंगी। यह असल में आधार प्रभाव की वजह से हो सकती है। मतलब कि आधार वर्ष, तिमाही या माह में महंगाई ज्यादा रही होगी, तो उसके मुकाबले मौजूदा महंगाई कम दिखेगी।
एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2025 के लिए मुद्रास्फीति औसतन 4.8 फीसदी से 4.9 फीसदी के आसपास रहने की संभावना है, जो आरबीआई के लक्ष्य से अधिक है।
जी का जंजाल बन रही है महंगाई
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने मंगलवार को खुदरा महंगाई का आंकड़ा जारी किया। इसके मुताबिक, खाद्य मुद्रास्फीति 10.87 प्रतिशत थी। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में मुद्रास्फीति की दर क्रमश: 6.68 प्रतिशत और 5.62 प्रतिशत रही। विश्लेषण से पता चलता है कि कई बड़े राज्य राष्ट्रीय औसत से अधिक मुद्रास्फीति का सामना कर रहे हैं।अक्टूबर में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति 6.21 प्रतिशत रही, जो आरबीआइ के छह प्रतिशत के ऊपरी सहनीय स्तर से ज्यादा है। यह पिछले 14 महीनों में खुदरा महंगाई का सबसे उच्चतम स्तर भी है।
हम फरवरी, 2025 से रेपो रेट में 50 आधार अंकों की कटौती की अपनी बात पर कायम हैं। हालांकि हमें अनिश्चितता को स्वीकार करने और ट्रंप की नीतियों पर कड़ी नजर रखने की जरूरत है। खाद्य तेल की कीमत भी आरबीआई के लिए चिंता का विषय होगी।
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