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Budget 2024: टैक्स स्लैब में नहीं मिली राहत, जानिए आजादी के बाद कितनी बार बदला सिस्टम; अब क्या है व्यवस्था?

Budget 2024 Taxation Slab भारत का पहला बजट 18 फरवरी 1860 को जेम्स विल्सन द्वारा प्रस्तुत किया गया था। पीसी महालनोबिस को भारतीय बजट का जनक कहा जाता है। आजाद भारत का पहला बजट वित्त मंत्री आरके षणमुगम चेट्टी ने 26 नवंबर 1947 को पेश किया था। इस साल टैक्स स्लैब में किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया है लेकिन पहले कई बार स्लैब में बड़े बदलाव हुए हैं।

By Shalini Kumari Edited By: Shalini Kumari Updated: Thu, 01 Feb 2024 01:50 PM (IST)
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टैक्स स्लैब में किसी तरह का बदलाव नहीं
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। Budget 2024 Taxation Slab: भारत में अप्रैल-मई तक लोकसभा चुनाव आयोजित होने वाला है, जिस कारण आज यानी 1 फरवरी को अंतरिम बजट पेश किया गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपना छठा बजट पेश किया है। मालूम हो कि यह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अंतिम बजट है। इस बजट से जनता को काफी उम्मीदें होती हैं।  

हालांकि, इस बार आम जनता को खास राहत नहीं मिली है। दरअसल, इस बजट में टैक्स नियमों में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है। हालांकि, पहले पेश किए गए बजट में टैक्स स्लैब में कई बड़े बदलाव किए गए हैं। आखिरी बार डायरेक्ट बजट स्ट्रक्चर में बड़ा बदलाव साल 1997 में हुआ था, जब पी. चिदंबरम वित्त मंत्री हुआ करते थे। चलिए जानते हैं आजादी के बाद भारत में टैक्स स्लैब में कैसे-कैसे बदलाव हुआ है।

कब हुई इनकम टैक्स की शुरुआत?

देश का पहला बजट साल 1860 में पेश किया गया था। दरअसल, 1857 में ब्रिटिश सरकार को काफी आर्थिक नुकसान हुआ था, जिसकी भरपाई करने के लिए उन्होंने जनता से कर वसूलने का फैसला किया। भारत में बजट की शुरुआत करने वाले व्यक्ति का नाम जेम्स विल्सन था। उन्होंने ही देश का पहला बजट तैयार किया और बजट में इनकम टैक्स एक्ट लगाया गया।

हालांकि, उस दौरान कारोबारियों और जमींदारों का जमकर विरोध किया, लेकिन उन्हें बहला-फुसलाकर शांत करा दिया गया। इसके बाद देश के पहले बजट में एक साल में 200 रुपए तक कमाने वालों को इनकम टैक्स में छूट दी गई थी।

टैक्स स्लैब में कब बदलाव

आजादी के बाद बजट और टैक्स स्लैब सिस्टम में काफी बदलाव किए गए थे। दरअसल, ब्रिटिश शासन ने अपने मुताबिक, टैक्स स्लैब सिस्टम तैयार किया था। इस सिस्टम को आजादी के बाद बदलने का फैसला लिया गया, ताकि सभी को इससे फायदा मिल सके और देश की आर्थिक व्यवस्था में सुधार लाना आसान हो सके।

1949-50 का बजट: आजादी के बाद सबसे पहली बार 1949-50 में टैक्स स्लैब में बदलाव किया गया। उस दौरान वित्त मंत्री जॉन मथाई ने 10,000 रुपए तक की आमदनी पर लग रहे 1 आने के टैक्स में से एक चौथाई हिस्से की कटौती कर दी। इसके साथ ही, 10 हजार रुपए से ज्यादा के दूसरे स्लैब पर लग रहे 2 आने के टैक्स को घटाकर 1.9 आना कर दिया था।

1974-75 का बजट: दूसरी बार इनकम टैक्स में बदलाव साल 1974-75 में किया गया। इस समय यशवंत राव चव्हाण वित्त मंत्री थे। उस दौरान इनकम के सभी लेवल पर टैक्स कम किया गया था। चव्हाण ने 97.75 फीसद के टैक्स को घटाकर 75 फीसद कर दिया। इस साल किए गए बदलाव में 6000 रुपए सालाना कमाने वालों को इनकम टैक्स में छूट दी गई थी। इसके साथ ही, उस साल हर कैटेगरी की इनकम पर सरचार्ज की लिमिट घटाकर एक समान यानी 10 प्रतिशत कर दिया गया था। यही नहीं, इस बजट में वेल्थ टैक्स बढ़ा दिया गया था।

1985-86 का बजट: तत्कालीन वित्त मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उस समय मौजूद 8 इनकम टैक्स स्लैब्स को घटाकर 4 कर दिया। इस बजट सेशन में व्यक्तिगत आय पर सबसे ज्यादा मार्जिनल टैक्स रेट 61.875 प्रतिशत से कम करके 50 प्रतिशत किया गया। वहीं, 50,001 रुपये से 1 लाख रुपये सालाना आमदनी पर 40 फीसदी टैक्स का प्रावधान रखा गया और 1 लाख रुपये से ज्यादा की आमदनी पर 50 फीसदी टैक्स चुकाने का प्रावधान रखा गया।

1992-93 का बजट: वर्तमान में जिस टैक्स स्ट्रक्चर को देखा जा रहा है, उसकी नींव 1992-93 के बजट में रखी गई थी। देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने टैक्स स्लैब को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला किया था। इसमें सबसे निचले स्लैब में 30 हजार रुपये से 50 हजार रुपये तक की आमदनी वालों के लिए 20 फीसदी, दूसरे स्लैब में 50 हजार रुपये से 1 लाख रुपये तक 30 फीसदी और 1 लाख रुपये से अधिक पर 40 फीसदी टैक्स तय करने का फैसला हुआ था।

1994-95 का बजट: इस साल भी देश के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ही थे। उस साल टैक्स स्लैब में थोड़े-बहुत बदलाव किए गए थे, लेकिन टैक्स दरों से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई थी। पहली स्लैब 35 हजार रुपये से 60 हजार रुपये तक 20 फीसदी, दूसरी स्लैब में 60 हजार रुपये से 1.2 लाख रुपये तक 30 फीसदी और 1.2 लाख रुपये से अधिक पर 40 फीसदी टैक्स लगाया गया था।

1997-98 का बजट: इस समय देश के वित्त मंत्री पी. चिदंबरम थे और उस साल पेश होने वाले बजट को 'ड्रीम बजट' भी कहा जाता है। उन्होंने उस साल टैक्स दर जो पहले 15%, 30% और 40% थी, उसे कम करके 10%, 20% और 30% करने का फैसला किया था।

इसके बाद, पहले स्लैब में 40 से 60 हजार रुपये आमदनी वालों के लिए 10 फीसदी, 60 हजार से 1.5 लाख रुपये वालों के लिए 20 फीसदी और इससे ज्यादा वालों के लिए 30 फीसदी टैक्स देने के लिए जिम्मेदार बताया गया।

2005-06 का बजट: इस वक्त वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने ही टैक्स स्लैब्स में फिर बदलाव किए। घोषणाओं के बाद 1 लाख रुपये तक सालाना कमाने वालों को टैक्स से छूट दे दी गई। यह आम जनता के लिए बहुत बड़ी राहत थी। वहीं, 1 लाख से 1.5 लाख रुपये तक कमाने वालों पर 10 फीसदी कर लगाया गया और 1.5 लाख से 2.5 लाख कमाने वालों पर 20 फीसदी टैक्स लगा दिया गया। इसके साथ ही, 2.5 लाख रुपये से ज्यादा कमाने वालों पर 30 फीसदी टैक्स लगाया गया।

2010-11 का बजट: उस दौरान प्रणब मुखर्जी देश के वित्त मंत्री थे। उन्होंने इनकम स्लैब्स में बदलाव करने का फैसला किया। उन्होंने घोषणा की कि जो 1.6 लाख रुपये तक सालाना कमा रहे हैं, उन्हें अब कोई टैक्स नहीं देना होगा। 1.6 लाख से 5 लाख रुपये तक कमाने वालों पर 10 फीसदी आयकर देना होगा, 5 लाख से 8 लाख तक कमाने वालों पर 20 फीसदी टैक्स लगाया गया। वहीं, सालाना 8 लाख और उससे ज्यादा कमाने वालों को 30 फीसद टैक्स स्लैब में रखा गया।

2012-13 का बजट: वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इस बार बदलाव करते हुए ऐलान किया कि 2 लाख रुपए सालाना कमाने वालों को टैक्स नहीं देना पड़ेगा। वहीं, सालाना 2 लाख से 5 लाख कमाने वाले व्यक्ति को 10 फीसदी और 5 लाख से 10 लाख कमाने वालों को 20 फीसदी टैक्स स्लैब में रखा गया। इसके अलावा, 10 लाख से ज्यादा आमदनी करने वाले लोगों पर 30 फीसदी आयकर लगाने का फैसला किया गया था।

2014-15 का बजट: यह मोदी सरकार का पहला बजट था। इस फाइनेंस बिल, 2015 पास होने के साथ वेल्थ टैक्स को 2016-17 से खत्म कर दिया गया। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वेल्थ टैक्स को हटाकर 1 करोड़ से ज्यादा सालाना कमाने वालों पर 2 फीसद का सरचार्ज लगाने का फैसला किया। इस कारण 2016-17 के बाद से वेल्थ टैक्स रिटर्न भी खत्म हो गया।

2017-18 का बजट: अरुण जेटली ने 2.5 लाख से 5 लाख रुपये तक कमाने वालों पर टैक्स 10 फीसद से घटाकर 5 फीसद कर दिया। साथ ही, आयकर कानून, 1961 के सेक्शन 87ए में रीबेट को 2.5 लाख से 3.5 लाख तक कमाने वालों के लिए 5 हजार से घटाकर 2.5 हजार कर दिया गया। इस कारण 3 लाख रुपये तक कमाने वालों पर आयकर लगभग खत्म हो गया और 3 लाख से 3.5 लाख तक सालाना कमाने वालों के लिए यह 2,500 रुपये रह गया।

2020-21 का बजट: वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में उन्होंने 'न्यू टैक्स रिजीम' का खाका पेश किया। इससे टैक्स सिस्टम को सिंपलीफाई किया गया। टैक्स की दरों को कम किया गया। इनकम टैक्स में मिलने वाली लगभग सभी छूटों को खत्म करके लोगों के लिए आसान स्लैब बनाई गई।

वर्तमान में दो प्रकार की हैं टैक्स रिजीम

अभी के समय में दो तरह का टैक्स रिजीम लागू है। पुराने इनकम टैक्स रिजीम के तहत 2.50 लाख रुपए तक की कमाई पर कोई टैक्स नहीं लगता है। 2.50 लाख से 5 लाख रुपए तक के आय पर 5 फीसदी आयकर देने का प्रावधान है; 5 से 10 लाख रुपए तक के आय पर 20 फीसदी टैक्स लगता है और 10 लाख रुपए से ज्यादा आय पर 20 फीसदी टैक्स तय किया गया।

वित्त वर्ष 2020-21 के लिए बजट पेश करते हुए मौजूदा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण नई इनकम टैक्स रिजीम लेकर आई थीं। इस व्यवस्था में टैक्सपेयर्स को निवेश या होम लोन या बीमा - मेडिक्लेम पर कोई डिडक्शन नहीं मिला। 2023-24 के बजट में वित्त मंत्री सीतारमण ने नए इनकम टैक्स रिजीम में बड़े बदलाव किए थे।  

नई टैक्स रिजीम चुनने पर पहले की तरह ही 3 लाख रुपए तक की इनकम पर टैक्स नहीं देना होगा। इसमें भी इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 87A के तहत सैलरीड पर्सन 7.5 लाख रुपए तक की इनकम पर और अन्य लोग 7 लाख तक की इनकम पर टैक्स छूट पा सकते हैं।