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Economic Survey: आर्थिक सर्वे में क्या होता है खास, क्यों है इसे बजट से एक दिन पहले पेश करने की परंपरा?

Economic Survey 2024 वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को केंद्रीय बजट पेश करेंगी। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट होगा। वित्त मंत्री बजट से एक दिन पहले इकोनॉमिक सर्वे पेश करेंगी। इसमें पिछले वित्त वर्ष का पूरा लेखा-जोखा होगा साथ ही आगे की चुनौतियों का जिक्र भी रहेगा। आइए जानते हैं कि इकोनॉमिक सर्वे को इतनी अहमियत क्यों दी जाती है।

By Suneel Kumar Edited By: Suneel Kumar Updated: Mon, 22 Jul 2024 09:21 AM (IST)
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भारत का पहला इकोनॉमिक सर्वे 1950-51 के दौरान पेश किया गया था।

बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) केंद्रीय बजट (Budget 2024) पेश होने से एक दिन पहले यानी 22 जुलाई को इकोनॉमिक सर्वे को संसद के पटल पर रखेंगी। यह बजट परंपरा का एक अहम हिस्सा है। इकोनॉमिक सर्वे को आप सरकार के रिपोर्ट कार्ड की तरह समझ सकते हैं। इसमें पिछले वित्त वर्ष के कामकाज की समीक्षा के साथ आगे की ग्रोथ की संभावनाओं पर आधिकारिक नजरिया दिया जाता है।

इकोनॉमिक सर्वे में क्या होता है खास?

आर्थिक सर्वे देश की इकोनॉमी की पूरी तस्वीर पेश करता है। इसमें अर्थव्यवस्था की स्थिति, संभावनाओं और नीतिगत चुनौतियों का विस्तृत ब्यौरा होता है। इकोनॉमिक सर्वे में बीते वित्त वर्ष के रोजगार, जीडीपी, मुद्रास्फीति और बजट घाटे की जानकारी देने वाले काफी महत्वपूर्ण आंकड़े होते हैं। उनका व्यापक विश्लेषण भी होता है, वो भी काफी आसान भाषा में। इस बार का इकोनॉमिक सर्वे मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन की अगुआई वाली टीम ने तैयार किया है।

क्यों जरूरी होता है इकोनॉमिक सर्वे?

इकोनॉमिक सर्वे (Economic Survey) से पिछले वित्त वर्ष का लेखा-जोखा तो मिलता है, साथ ही आगे की चुनौतियों का भी अंदाजा लगता है। इसमें बताया जाता है कि वे कौन-से फैक्टर हैं, जो देश की तरक्की की राह में बाधा डाल रहे हैं। इन्हें दूर करने के लिए क्या किया जा सकता है। इकोनॉमिक सर्वे यह भी बताता है कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज करने के लिए किस तरह का कदम उठाए जाने की जरूरत है। इसमें अलग-अलग सेक्टर, जैसे कि कृषि या ऑटोमोबाइल, की चुनौतियों और संभावनाओं का भी जिक्र होता है।

पहले बजट का हिस्सा था आर्थिक सर्वे

देश का पहला इकोनॉमिक सर्वे 1950-51 के दौरान पेश किया गया। उस वक्त यह बजट का हिस्सा था। लेकिन, 1964 से इकोनॉमिक सर्वे को बजट से एक दिन पहले पेश करने की परंपरा शुरू की गई। इससे लोगों को बजट से पहले अर्थव्यवस्था का हाल पता लग जाता है। इस साल 1 फरवरी को अंतरिम बजट से पहले आर्थिक सर्वे पेश नहीं किया गया था। सरकार ने बस अर्थव्यवस्था के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी थी। सरकार की इरादा पूर्ण बजट से पहले इकोनॉमिक सर्वे पेश करना था, जो अब वह करने भी वाली है।

आम लोगों के लिए भी आर्थिक सर्वे जरूरी

  • आर्थिक सर्वे से यह समझने में मदद मिलती है कि देश की अर्थव्यवस्था किस हाल में है। हमें महंगाई और बेरोजगारी जैसे महत्वपूर्ण आंकड़ों की भी जानकारी हो जाती है। इससे हमें अपने निवेश, बचत और खर्च तय करने जैसे फैसले लेने में सहूलियत होती है।
  • इकोनॉमिक सर्वे में सरकार की नीतियों की जानकारी होती है। इसमें उनके संभावित प्रभावित के बारे में भी बताया जाता है। इससे जनता समझ सकती है कि सरकार कौन-सी नीति लागू कर रही है और उसका असर क्या हो सकता है। 
  • आर्थिक सर्वे में समाजिक और आर्थिक समस्याओं का भी विस्तृत ब्यौरा होता है। इसमें उन्हें निपटने का सुझाव भी होता है। इससे आम जनता को यह समझने में मदद मिलती है कि उनकी समस्याओं को कैसे दूर किया जा सकता है और इसमें उनकी भूमिका क्या हो सकती है।
  • यह सर्वे निवेशकों के लिए भी काफी अहम होता है। उन्हें यह समझने में सहूलियत होती है कि किन क्षेत्रों में निवेश के अच्छे मौके हैं। जैसे कि अगर सरकार का फोकस इंफ्रास्ट्रक्चर पर तो यह सेक्टर निवेश के लिए अच्छा हो सकता है।

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