Budget 2021: सभी के लिए हेल्थकेयर एक महत्वपूर्ण आवश्यकता, बजट में हों इसके लिए जरूरी उपाय
हेल्थ इंश्योरेंस क्वालिटी हेल्थकेयर तक पहुंच मुहैया कराने के लिए काफी मददगार हो सकती है। इससे सिर्फ अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों को ही लाभ नहीं मिलेगा बल्कि अस्पताल से बाहर रहकर इलाज कराने वाले दूसरे मरीजों को भी अच्छी देखभाल मिल सकती है।
By Pawan JayaswalEdited By: Updated: Mon, 01 Feb 2021 07:16 AM (IST)
नई दिल्ली, कृष्णन रामचंद्रन। यदि किसी व्यक्ति को कोई लक्ष्य हासिल करना है या फिर किसी सपने को पूरा करना है तो इसके लिए अच्छी सेहत सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है। भारत को अगर 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य पाना है तो जरूरी है कि मुख्य तौर पर हम तीन प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान दें। इनमें सबसे जरूरी है रोजगार पैदा करना, लोगों को काम के कौशल से लैस करना और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण सबका अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित करना।
इसलिए सभी के लिए हेल्थकेयर हमारे देश के लिए एक महत्वपूर्ण और आवश्यक लक्ष्य है। देश की बड़ी आबादी का लाभ तभी हासिल कर सकते हैं जब हमारे पास नौकरी होगी, अच्छा कौशल होगा और स्वस्थ लोग होंगे। हालांकि, भारत इस समय हेल्थकेयर पर जीडीपी का 1% खर्च करता है। विकास के समान चरण पर दूसरे देशों की तुलना में यह बहुत कम है। सरकार को हेल्थकेयर पर खर्च बढ़ाने की जरूरत है। क्योंकि यह आखिरकार तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था बनने की हमारी क्षमता को प्रभावित करता है।
हेल्थ इंश्योरेंस क्वालिटी हेल्थकेयर तक पहुंच मुहैया कराने के लिए काफी मददगार हो सकती है। इससे सिर्फ अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों को ही लाभ नहीं मिलेगा, बल्कि अस्पताल से बाहर रहकर इलाज कराने वाले दूसरे मरीजों को भी अच्छी देखभाल मिल सकती है।
हमें हेल्थ इंश्योरेंस के फायदों के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए कई ठोस प्रयास करने होंगे और ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसके दायरे में लाना होगा। कोविड-19 ने हेल्थ इंश्योरेंस के लिए प्रेरक का काम किया है और हमें इस रफ्तार को बनाए रखने की जरूरत है। नीतिगत बिंदु से देखें तो सरकार इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है और इससे लोग हेल्थ इंश्योरेंस खरीदने के लिए प्रेरित होंगे।
लोग अक्सर अपनी बीमारी का इलाज कराने से बचते हैं या फिर उसमें विलंब करते हैं, इससे उन्हें आखिरकार अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है और उनके इलाज का खर्च बहुत अधिक आता है। इस समय हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है। जिसकी वजह से अस्पताल में मरीजों का इलाज अनावश्यक रूप से काफी महंगा हो जाता है, बल्कि यह हेल्थ इंश्योरेंस में आउट-पेशेंट प्रोडक्ट्स शामिल करने में गंभीर बाधा खड़ी करता है।
अस्पताल से बाहर इलाज कराने पर आने वाले कुल हेल्थकेयर खर्च का योगदान वास्तव में 60-70 प्रतिशत है। इससे बीमा प्रणाली के जरिये जाने के बजाय हेल्थकेयर सेवाओं का सीधे लाभ उठाने में काफी अंतर आ जाता है। सरकार को हेल्थ इंश्योरेंस पर मौजूदा जीएसटी दरों को कम करने पर विचार करना चाहिए। इससे न सिर्फ हेल्थ इंश्योरेंस की पहुंच बढ़ेगी, बल्कि सरकार को भी ग्राहकों की संख्या बढ़ने से अधिक टैक्स जमा करने में मदद मिलेगी।
जीएसटी स्लैब में कटौती के अलावा, सरकार कंपनियों को इंसेंटिव एवं टैक्स में छूट का लाभ मुहैया करा सकती है और ऐसे नियम ला सकती है, जो कंपनियों को उनके कर्मचारियों का हेल्थ इंश्योरेंस करवाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।इस समय कॉरपोरेट द्वारा चुकाए जाने वाले हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम को खर्च के तौर पर माना जाता है और इस पर इनपुट जीएसटी का क्रेडिट नहीं मिलता है। हालांकि, कोरोना महामारी के दौरान इसे अस्थायी तौर पर मंजूरी दी गई है पर सरकार को चाहिए कि इसे एक स्थायी खूबी बनाने पर विचार किया जाए, ताकि एमएसएमई अपने कर्मचारियों को हेल्थ इंश्योरेंस ऑफर करने के लिए प्रेरित हों। इससे ज्यादा कर्मचारी वाली कंपनियों को भी लाभ होगा, क्योंकि स्वास्थ्य बीमा पर खर्च कम होगा।
इस समय 60 साल से कम उम्र के पेरेंट्स के लिए बीमा कराने वाले लोग 25,000 रुपए की कटौती का दावा कर सकते हैं और पेरेंट्स यदि 60 साल से ज्यादा उम्र के हों, तो यह कटौती 50,000 रुपए तक होती है। सरकार को इस सीमा को बढ़ाकर पहले मामले में 50,000 और दूसरे मामले में एक लाख रुपए करने पर विचार करना चाहिए। इस टैक्स लाभ से ज्यादा से ज्यादा लोग अपने बुजुर्ग पेरेंट्स के लिए हेल्थ इंश्योरेंस लेने के लिए प्रोत्साहित होंगे। इसी तरह, हेल्थ इंश्योरेंस पर खर्च के लिए भी टैक्स लाभ बढ़ाने पर विचार किया जा सकता है।
यही नहीं, इस सेक्टर के फलने-फूलने के लिए जरूरी है कि स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले उद्योग का भी नियमन हो और उन्हें उन्हीं शर्तों का पालन कराया जाए जो स्वास्थ्य बीमा उद्योग पर लागू हैं। इससे हेल्थ इंश्योरेंस में अफोर्डेबिलिटी भी आएगी। जब हम समूचे हेल्थकेयर इकोसिस्टम को देखते हैं, तो पाते हैं कि हेल्थकेयर डिलीवरी में नियमन नहीं होने से उपभोक्ताओं के हित प्रभावित होते हैं। सरकार वाकई में नीतियों को परिभाषित कर सकती है और इन्हें अनिवार्य बना सकती है और सेक्टर में मानकीकरण लाया जा सकता है। यही नहीं, हमें टेक्नालॉजी और डिजिटल सुविधाओं को भी अपनाने की जरूरत पर फोकस करना चाहिए और इसके लिए नीतिगत हस्तक्षेप आवश्यक है।
पूरी दुनिया में भारत एक आकर्षक बाजार बन चुका है। ऐसे में अब हमारी बारी है कि हम निवेश को आकर्षित करने में सक्षम हों। बीमा एक नियमित क्षेत्र है और इसमें उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए मजबूत नियम हैं, इसलिए, यहां विदेशी निवेश आकर्षित करना सुविधाजनक होगा। 74 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति से हेल्थ इंश्योरेंस के क्षेत्र में वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा। दूसरी ओर, ज्यादा कंपनियों को देश में निवेश करने के मौके मिलेंगे।(लेखक स्वास्थ्य बीमा कंपनी मैक्स बूपा हेल्थ इंश्योरेंस के सीईओ और एमडी हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)