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वन नेशन वन इलेक्शन से इकोनॉमी को फायदा या नुकसान, क्या कह रहे एक्सपर्ट?

अलग-अलग चुनाव कराने का विकास दर पर नकारात्मक असर पड़ता है। विशेषज्ञों ने इस बिंदु को समझाने के लिए तमिलनाडु का उदाहरण भी किया है। इसमें बताया है कि वहां 1996 में साथ-साथ चुनाव हुए तो विकास दर में 4.1 प्रतिशत की गिरावट आई जबकि 2001 में अलग-अलग चुनाव कराने पर 30 प्रतिशत की गिरावट आई। इसी तरह मुद्रास्फीति के लिहाज से भी वन नेशन वन इलेक्शन फायदेमंद दिखा।

By Suneel Kumar Edited By: Suneel Kumar Updated: Wed, 18 Sep 2024 08:33 PM (IST)
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चुनावों और आचार संहिता के कारण सरकारों के हाथ 12-15 महीने तक बंधे होते हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश में लोकसभा और विधानसभा के एक साथ चुनाव से पैसे की बड़ी बचत का पहलू तो स्पष्ट है ही, लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों का आकलन है कि इससे जीडीपी में लगभग 1.5 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। वहीं इसके लागू होने पर सरकारें सही मायने में कम से कम साढ़े चार वर्ष विकास कार्य कर पाएंगी। फिलहाल लगातार अलग अलग होने वाले चुनावों और आचार संहिता के कारण सरकारों के हाथ 12-15 महीने तक बंधे होते हैं। यानी पांच साल के लिए चुनी गई सरकार सही मायने में चार साल से कम ही काम करती है।

चुनाव के आर्थिक और सामाजिक प्रभावों पर विशेषज्ञ डा. प्राची मिश्रा और उच्च स्तरीय समिति के सदस्य एनके सिंह ने समिति के समक्ष एक शोध प्रस्तुत किया। 'मैक्रोइकोनामिक्स इम्पैक्ट आफ हारमोनाइजिंग इलेक्टोरल साइकल' शीर्षक के इस शोध पत्र में बार-बार होने वाले चुनावों की तुलना में समकालिक यानी एक साथ चुनाव होने की अवधि के दौरान अपेक्षाकृत उच्च आर्थिक वृद्धि, कम मुद्रास्फीति, अधिक निवेश और व्यय का उल्लेख किया गया है। इस अध्ययन में समकालिक चुनाव चक्र के एक या दो वर्ष पहले और बाद की अवधि की तुलना की गई है।

माना गया है कि बार-बार चुनावों के समाज पर और भी अनेक प्रभाव पड़ते हैं। उदाहरण के तौर पर इसके कारण आने वाली अनिश्चितता से सरकार की निर्णय लेने की प्रक्रिया बाधित होती है। परियोजनाओं के पूरा होने में देरी होती है और विकास कार्य प्रभावित होते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि भारत में 1952 से 2023 तक प्रतिवर्ष औसतन छह चुनाव हुए। यह आंकड़ा सिर्फ लोकसभा और विधानसभा के लिए बार-बार होने वाले चुनावों का है। यदि स्थानीय चुनावों को शामिल कर लिया जाए तो प्रतिवर्ष चुनावों की संख्या कई गुणा बढ़ जाएगी।

शोध पत्र में साथ-साथ और अलग-अलग होने वाले चुनावों के पहले और बाद में वास्तविक राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद दर वृद्धि में बदलाव की तुलना की है। दावा किया है कि साथ-साथ चुनावों के बाद वास्तविक जीडीपी वृद्धि अधिक होती है। अलग-अलग चुनावों की तुलना में समकालिक चुनावों के दौरान वास्तविक राष्ट्रीय आर्थिक वृद्धि में लगभग 1.5 प्रतिशत का अंतर देखा गया है।

यह राशि कितनी बड़ी है, इसका आकलन ऐसे कर सकते हैं कि वित्त वर्ष 2024 में जीडीपी का 1.5 प्रतिशत 4.5 लाख करोड़ होता है। यह स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च का आधा और शिक्षा पर होने वाले खर्च का एक तिहाई के बराबर है।

विशेषज्ञों ने इस बिंदु को समझाने के लिए तमिलनाडु का उदाहरण भी किया है। इसमें बताया है कि वहां 1996 में साथ-साथ चुनाव हुए तो विकास दर में 4.1 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि 2001 में अलग-अलग चुनाव कराने पर 30 प्रतिशत की गिरावट आई। इसी तरह अलग-अलग चुनावों की तुलना में साथ-साथ चुनाव कराने के दौरान मुद्रास्फीति में लगभग एक प्रतिशत की बड़ी गिरावट का अनुमान है।

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