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सरकार को रुपये की मजबूती की दिशा में ठोस प्रयास करने की आवश्यकता, एक्सपर्ट व्यू

पिछले कुछ समय से अमेरिकी डालर की तुलना में रुपये की कीमत गिरती जा रही है। वैसे इस गिरावट को रोकने के लिए आरबीआइ द्वारा हरसंभव प्रयास किया जा रहा है। कई संबंधित कारणों से हाल के दिनों में लोगों की क्रय शक्ति कम हुई है।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Thu, 13 Oct 2022 11:00 AM (IST)
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रुपये की मजबूती की दिशा में कारगर प्रयास किए जाने चाहिए
सतीश कुमार सिंह। डालर की तुलना में रुपये का मूल्य बीते कुछ समय से गिरता जा रहा है। कल यानी 12 अक्तूबर को एक डालर की कीमत 82.26 रुपये पर पहुंच गई। इस कारण महंगाई भी बढ़ रही है। महंगाई को नियंत्रित करने के लिए आरबीआइ द्वारा रेपो दर में बढ़ोतरी की जाती है, ताकि महंगी दर पर केंद्रीय बैंक से उधारी मिलने पर बैंक अपनी उधारी दर में वृद्धि करें और आमजन व कारोबारी उधारी दर महंगी होने पर कर्ज लेने से परहेज करें। इस उपाय को मूर्त रूप देने से लोगों के पास रकम का अभाव हो जाता है और उत्पादों की ज्यादा कीमत होने की वजह से उनकी मांग में कमी आती है और जब उत्पाद की मांग में कमी आती है तो उसकी कीमत में भी कमी आ जाती है।

यह सही है कि महंगाई से आर्थिक गतिविधियां मंद पड़ने लगती हैं। उत्पादन और विकास दर दोनों में गिरावट आती है। रोजगार सृजन का कार्य बंद हो जाता है और लोग बेरोजगार होने लगते हैं। महंगाई की वजह से विविध उत्पादों की मांग में कमी आती है और मांग में कमी आने से कल-कारखानों को अपना उत्पादन कम करना पड़ता है, जिस कारण कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ता है और लंबी अवधि तक महंगाई की स्थिति बनी रहने पर कंपनियां बंद हो जाती हैं।

फेडरल रिजर्व बैंक नीतिगत दरों को बढ़ा रहा

अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा नीतिगत दरों में वृद्धि करने से भारतीय शेयर बाजार से विदेशी पूंजी की भारी निकासी हुई है, क्योंकि विदेशी संस्थागत निवेशक बेहतर प्रतिफल के लिए मजबूत करेंसी में निवेश करना बेहतर मान रहे हैं। इससे भी रुपया कमजोर हो रहा है और विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आ रही है। नेशनल सिक्योरिटीज डिपाजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) के आंकड़ों के अनुसार, इस साल एफपीआइ ने 2.08 लाख करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की जिसका प्रतिदिन का आंकड़ा 2,200 करोड़ रुपये रहा है।

अमेरिका में मुद्रास्फीति की सहनशीलता सीमा दो प्रतिशत है, लेकिन वहां मई में महंगाई 8.6 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई थी, जो दिसंबर 1981 के बाद सबसे उच्चतम स्तर पर है। अगस्त 2022 में अमेरिका में महंगाई दर नरम होकर 8.3 प्रतिशत हुई, लेकिन यह भी सहनशीलता सीमा से बहुत अधिक है। महंगाई पर काबू पाने के लिए फेडरल रिजर्व बैंक भी नीतिगत दरों को बढ़ा रहा है। इस साल फेडरल रिजर्व ने चार बार नीतिगत दरों में वृद्धि की है, जिसमें जून और जुलाई की 0.75-0.75 प्रतिशत की वृद्धि भी शामिल है।

मौद्रिक नीति समिति

अब फेडरल रिजर्व बैंक की ब्याज दर तीन से बढ़कर सवा तीन प्रतिशत के दायरे में पहुंच गई है, जो वर्ष 2008 के आरंभ के बाद से अधिकतम ब्याज दर है। फेडरल रिजर्व के अनुसार इस साल के अंत तक ब्याज दर 4.4 प्रतिशत और वर्ष 2023 में 4.6 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच सकती है। अमेरिका के अलावा वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था में कायम अनिश्चितता की वजह से ब्रिटेन और यूरोपीय देशों में भी मंहगाई अपने चरम पर पहुंच गई है और वहां के केंद्रीय बैंक भी महंगाई को नियंत्रित करने के लिए नीतिगत दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं।

केंद्रीय बैंक रुपये में आ रही गिरावट को रोकने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है। इस क्रम में रिजर्व बैंक ने 30 सितंबर को की गई मौद्रिक समीक्षा में रेपो दर में 50 आधार अंकों की बढ़ोतरी की है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने चार मई 2022 के बाद से रेपो दर में कुल 190 आधार अंकों की बढ़ोतरी की है। रेपो दर में 50 आधार अंकों की ताजा वृद्धि के साथ यह 5.90 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई है, जो तीन वर्षों में उच्चतम स्तर है।

समूचे विश्व में महंगाई

वैसे, महंगाई केवल भारत में ही नहीं है, आज विश्व के अधिकांश देश इस समस्या से त्रस्त हैं। इस मामले में अमेरिका और यूरोप भी आज अपवाद नहीं हैं। भारत के लिए अच्छी बात यह है कि महंगाई की ऊंची दर होने के बावजूद भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर दुनिया में सबसे बेहतर है और चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में मांग की स्थिति में सुधार होने का अनुमान है। इसी वजह से भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में स्थायित्व कायम है और विदेशी मुद्रा भंडार में कुछ कमी आने से घबराने की जरूरत नहीं है। शायद इसी कारण से भारतीय रिजर्व बैंक ने पूर्व के जीडीपी के वृद्धि अनुमान में महज 0.2 प्रतिशत की कमी की है।

केंद्रीय बैंक के अनुसार चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर सात प्रतिशत रह सकती है। वित्त वर्ष 2023 के लिए भारतीय रिजर्व बैंक का सात प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान वास्तविक भी लगता है, क्योंकि मुद्रास्फीति पहले से नरम हुई है और मानसून भी कमोबेश सामान्य रहा है। वैसे इस माह उत्तर भारत के बड़े भौगोलिक हिस्से में असामान्य और असमय बारिश के कारण फसल उत्पादन दुष्प्रभावित होगा। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भारत के लोगों की क्रय शक्ति कम हो गई है अर्थात उनकी कमाई कम नहीं हुई है, लेकिन मुद्रा की कीमत कम हो जाने की वजह से उन्हें किसी वस्तु को खरीदने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं, जिस कारण वे न तो जरूरत के सामान खरीद पा रहे हैं और न ही बचत कर पा रहे हैं।

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के लिए उसकी मुद्रा में गिरावट आना कतई अच्छा नहीं है। वहीं, रुपये में आ रही कमजोरी को जल्दबाजी में रोकने की कोशिश करना भी सही नहीं है, क्योंकि नीतिगत दरों में बढ़ोतरी से महंगाई कुछ हद तक अवश्य नियंत्रण में आ जाती है, परंतु इससे निवेश, ऋण वृद्धि, रोजगार सृजन आदि में कमी आती है, जिससे विकास की गति मंद पड़ जाती है। लिहाजा रुपये की मजबूती की दिशा में कारगर प्रयास किए जाने चाहिए।

 [आर्थिक मामलों के जानकार]

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