फ्यूचर्स और आप्शंस के चक्कर में न पड़ें नए निवेशक, इक्विटी में ही बनेगी असली वेल्थ
2020 के मध्य से बाजार में बड़ी संख्या में नए निवेशक आए हैं। बड़ी संख्या नए निवेशक इक्विटी और फ्यूचर्स एवं आप्शंस में अंतर नहीं समझ पाते हैं। ऐसे में हमें इनके मूल मकसद को समझकर ही निवेश करना चाहिए।
By AgencyEdited By: Abhinav ShalyaUpdated: Sun, 20 Nov 2022 11:52 AM (IST)
नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। इक्विटी में मुनाफे पर की गई बिक्री में पैसा कहां से आता है? आसान जवाब होगा कि जिसने भी स्टाक को पहले खरीदा है उसी से। ये सही है, मगर क्या इसका मतलब यह नहीं है कि पहले खरीदने वाले को नुकसान हुआ? नहीं, कम-से-कम तब तो नहीं जब स्टाक खरीदने वाले ने उसे फायदे में बेचा हो। आमतौर पर वक्त के साथ बाजार ऊपर ही जाते हैं, इसलिए इक्विटी निवेशक पैसा ही बनाते हैं। लेकिन फ्यूचर्स या आप्शंस में पैसा कहां से आता है? और डेरिवेटिव्स में? अजीब बात ये है कि इसका जवाब कम ही लोग जानते हैं।
2020 के मध्य से लेकर वर्क-फ्राम होम, एप-आधारित ट्रेडिंग और लाकडाउन ने मिलजुल कर नए निवेशकों की बाढ़ सी ला दी है। हालांकि, कई लोगों ने क्रिप्टो से चोट खाई है और वो अब वापस अपने-अपने आफिस की तरफ लौट गए हैं। मगर अब भी कई नए आए लोग इक्विटी में जमे हुए हैं।
इक्विटी और डेरिवेटिव्स के बीच के अंतर को समझें
हाल ही में एक युवा से बातचीत हो रही थी। इस युवक से फ्यूचर और आप्शंस को लेकर सवाल पूछा। उसे फ्यूचर और आप्शंस में ट्रेडिंग के लिए तैयार कर लिया गया, लेकिन उसे इसका कोई आइडिया नहीं था और न ही उसने कभी इस बारे में गहराई से सोचा था। असल में, उसने डेरिवेटिव्स के बारे कुछ जानने की कोशिश की थी और कई तरह की जानकारी जो ब्रोकरों ने दी, उससे कुछ समझने की कोशिश भी की थी। इसके अलावा गूगल से हर तरह की वेबसाइटों पर जाकर कुछ जान भी लिया था।इसका नतीजा ये था कि उसने मुझे डेरिवेटिव्स के फायदों पर काफी अजीबोगरीब बातें सुनाईं कि कैसे वो ट्रेडर को सुरक्षित तरीके से ट्रेड करने में मदद करते हैं? कैसे वो लिक्विडिटी प्रमोट करते हैं? कैसे वो डिस्कवरी प्राइस को प्रोत्साहित करते हैं? आदि। हालांकि, इस पूरी आरएंडडी और इस सारे प्रोपेगेंडा में किसी ने उसे ये नहीं बताया था कि इसमें हर बार जब कोई मुनाफा कमाता है, उसमें किसी दूसरे का नुकसान होता है।
फ्यूचर्स और आप्शंस हैं जीरो-सम गेम
असल इक्विटी निवेश में ऐसा नहीं होता। यहां अर्थव्यवस्था की ग्रोथ इक्विटी की बुनियाद होती है, वहीं फ्यूचर और आप्शंस एक जीरो-सम गेम है, जो बात सबसे दिलचस्प लगी वो ये कि एक बार जब मैंने अपने उस युवा दोस्त को सारी चीजें समझा दीं, तो वो जो भी कर रहा था, उसे लेकर कुछ हद तक डर गया। ये जरूर है कि वो समझता है कि वो और उसका ब्रोकर बड़े बुद्धिमान हैं। फिर भी, ये जानकारी कि उस पूरे काम में कोई पैसा नहीं बन रहा, और सारा नफा-नुकसान बराबर है, ये बात किसी भी काम को लेकर हमारा रवैया बदल ही देती है।असल में, लाखों लोगों का डेरिवेटिव का लेनदेन-जो भारतीय एक्सचेंज के कामकाज का 90 प्रतिशत है, कुल मिला कर कोई वेल्थ नहीं पैदा करता, ये बात सोच में डालने वाली है। अगर कोई अमीर बन रहा है, तो सिर्फ इसलिए क्योंकि कोई दूसरा गरीब हो रहा है। ब्रोकर और एक्सचेंज इस सब में पैसे बना रहे हैं। ये सोच कि भारत में फ्यूचर्स और आप्शंस काम के हैं, सिर्फ एक थ्योरी है और कुछ नहीं। कुछ गायब होते थोड़े से निवेशक डेरिवेटिव्स को नुकसान कम करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। पढ़ाई के दौरान बताया गया था कि स्टाक मार्केट का मकसद है कि निवेशकों के रिसोर्स बिजनेस में इस्तेमाल हों, ताकि फाइनेंशियल ग्रोथ हासिल की जा सके और सभी निवेशक इस ग्रोथ में हिस्सेदारी ले सकें।