Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

कहीं बीमार तो नहीं बना रहा अस्पतालों का बिल, मेडिकल खर्च की त्रासदी से कैसे होगा बचाव

अगर आप एक मोबाइल फोन खरीदना चाहते हैं या एक जोड़ी जूते लेना चाहते हैं या एक कार तो अपना फोन निकालिए और आपको उसका सही-सही खर्च तुरंत पता चल जाएगा। मगर यही चीज आप अस्पताल के एपिसोड के साथ नहीं कर सकते।

By Siddharth PriyadarshiEdited By: Updated: Sun, 06 Nov 2022 10:53 PM (IST)
Hero Image
how to avoid the tragedy of medical expense

धीरेंद्र कुमार, नई दिल्ली। इस साल जुलाई में हेल्थकेयर में पारदर्शिता बढ़ाने वाले नए कानून के तहत अमेरिका की हेल्थकेयर कंपनियों ने उन दामों का डाटा जारी करना शुरू किया है, जो उन्होंने देश के हर अस्पताल से तय किए। इस नियम के पीछे सोच थी कि दामों में पारदर्शिता, ग्राहकों को हेल्थ इंश्योरेंस और इलाज की सबसे अच्छी डील चुनने में मदद मिलेगी। यह डाटा इतना जटिल और बड़ा है कि इससे कारगार जानकारी पाना अंसभव है, लेकिन इसे पढ़ा जा सकता है।

आप सोच रहे होंगे कि पर्सनल फाइनेंस के कालम में हेल्थकेयर पर बात क्यों हो रही है। इसका जवाब आसान है। हेल्थकेयर का खर्च वो आइसबर्ग है, जो आपके पर्सनल फाइनेंस के जहाज की तरफ बढ़ रहा है। भारत में हेल्थकेयर के ऊंचे खर्च में कोई पारदर्शिता नहीं है। भारत के मध्यम वर्ग के आर्थिक हालात और बचत पर इसका जैसा असर पड़ रहा है, वो किसी त्रासदी से कम नहीं।

जब हो गंभीर बीमारी से सामना

किसी भी गंभीर बीमारी से सामना होने का मतलब है आपकी पांच, दस या इससे ज्यादा वर्षों की बचत और निवेश का आसानी से उड़न-छू हो जाना। एक तरफ खर्च के आंकड़ों का आकार और उससे आर्थिक स्थिति पर पड़ने वाला बोझ बढ़ता जा रहा है। दूसरी तरफ, सर्विस की असल डिलिवरी पर सवालिया निशान भी बड़ा होता जा रहा है।

एक सबक, जो बचत और फाइनेंशियल प्लानिंग करने वालों ने कोरोना वायरस के पूरे एपिसोड से लिया, वो ये था कि लोग हेल्थकेयर के संभावित खर्च की मद में कम पैसे रखते हैं। जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है, बड़े और खराब सेहत के झटकों की संभावना हकीकत में बदलती जाती है। तरीका चाहे कोई भी हो, 55-60 साल की उम्र से लेकर मरने तक, कोई-न-कोई आपसे 10 या 20 या शायद 30 लाख रुपये झटक ही लेगा और इससे बचने का कोई तरीका नहीं है। निजी स्तर पर इससे बचने के लिए आप ज्यादा कुछ नहीं कर सकते, सिवाए अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने और सेहत की बेहतर देखभाल करके खुद को तैयार रखने के। मगर, एक दूसरी तरह के गहरे बदलाव की जरूरत है और ये बदलाव रेग्युलेटरी सिस्टम की तरफ से आने चाहिए।

मेडिकल खर्च में पारदर्शिता की सख्त जरूरत

दरअसल, हमें मेडिकल खर्च के सिस्टम में पारदर्शिता की सख्त जरूरत है। भारत में हेल्थकेयर के खर्च को लेकर पूरी अस्पष्टता है। अगर, आप एक मोबाइल फोन खरीदना चाहते हैं या एक जोड़ी जूते लेना चाहते हैं या एक कार, तो अपना फोन निकालिए और आपको उसका सही-सही खर्च तुरंत पता चल जाएगा। मगर यही चीज आप अस्पताल के एपिसोड के साथ नहीं कर सकते। नोट करें कि यहां 'अस्पताल के एपिसोड' कहा गया है, 'मेडिकल प्रोसीजर' नहीं। कुछ जगहों पर प्राइस और प्रोसीजर साझा करने की, एक तरह की झूठी पारदर्शिता का दिखावा चलन में है। जहां मूल खर्च तो दिख जाता है, मगर उसमें पहले ही इतना कुछ जोड़ दिया जाता है कि उसे देखना-न-देखना बेमानी हो जाता है।

कैसा हो फ्रेमवर्क

जिस पारदर्शिता की यहां बात हो रही वो असलियत में किस तरह काम करेगी या फिर वो अमेरिका के हेल्थकेयर सिस्टम जैसी बन जाएगी। ये कुछ इस तरह होगा: हर कोई आनलाइन जाकर, किसी भी बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल के कुल खर्च की स्थिति मोटे तौर पर देख सके। हर अस्पताल के औसत, मीडियन, न्यूनतम और अधिकतम दाम, किसी भी अवधि के लिए देखा जा सके।

अगर कोई चाहे तो उन्हें असली बिल का पूरा डीटेल, ब्रेकअप के साथ देखने को मिल जाए। जो लोग बीमारी के बिजनेस में हैं (और यह टर्म इसलिए इस्तेमाल की जा रही है क्योंकि इस इंडस्ट्री का एक हिस्सा बीमारी के बिजनेस में है, हेल्थकेयर के बिजनेस में नहीं) वो कहेंगे कि बिजनेस की ये जानकारियां गोपनीय हैं। हालांकि, इलाज के फैसले लेते समय जिस तरह की मजबूरी ग्राहकों की होती है, उसे देखते हुए ऐसे किसी भी विरोध को सिरे से खारिज और नजरअंदाज कर देना चाहिए।

(लेखक वैल्यू रिसर्च आनलाइन डाट काम के सीईओ हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

ये भी पढ़ें-

Health Insurance के क्लेम आम तौर पर इन कारणों से होते हैं खारिज, पहले ही जानकर हो जाएं सतर्क

Health Insurance Policy: हेल्थ इंश्योरेंस को कितना समझते हैं आप, क्या आपको है इन बातों की जानकारी