RBI Digital Currency: डिजिटल करेंसी के रूप में ई-रुपी को जल्द आरंभ करने का RBI कर रहा प्रयास
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की घोषणा के अनुसार देश में जल्द ही ई-रुपया लांच किया जा सकता है। ई-रुपी की चर्चा ने इस बीच तब जोर पकड़ा जब भारतीय रिजर्व बैंक ने ऐसे संकेत दिए हैं कि वह डिजिटल रुपये के निर्माण-संचालन में ब्लाकचेन तकनीक का उपयोग कर सकता है।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Fri, 14 Oct 2022 11:46 AM (IST)
डा. संजय वर्मा। आज से आठ वर्ष पहले 15 अगस्त, 2014 को लाल किले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब देश में महत्वाकांक्षी कार्यक्रम ‘डिजिटल इंडिया’ के धमाकेदार आरंभ की घोषणा की थी, तब किसे पता था कि इस अभियान में करेंसी यानी रुपये के डिजिटलीकरण का मुद्दा भी जुड़ जाएगा। इस घोषणा के दो वर्ष बाद आठ नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री ने पांच सौ और एक हजार रुपये के पुराने नोटों को खत्म करते हुए उनकी जगह नए नोट (पांच सौ व दो हजार रुपये के) लाने की घोषणा की, तो देश का ध्यान ऐसी कैशलेस व्यवस्था बनाने की तरफ गया जिसमें कागज के नोटों की जरूरत नहीं होती। इसकी बजाय सारा लेनदेन डिजिटलीकृत उपायों से या फिर डेबिट-क्रेडिट कार्ड से होता है। इन तरीकों में धन हमें केवल संख्या के रूप में कंप्यूटर और मोबाइल आदि पर दिखता है और डेबिट, क्रेडिट कार्ड, मोबाइल वालेट आदि के जरिये उसका इस्तेमाल होता है।
यह असल में आनलाइन ट्रांजेक्शन (लेन-देन) का तरीका है जिसमें भुगतान करने वाले पे-वालेट के रूप में डिजिटल मनी या डिजिटल करेंसी और साथ में प्लास्टिक मनी (क्रेडिट-डेबिट कार्ड) को प्रयोग में लाया जाता है। अब इसके एक और नए तरीके पर अमल की तैयारी है। दावा यह है कि देश की भुगतान प्रणाली (पेमेंट सिस्टम) को ई-रुपी की व्यवस्था एक नई ऊंचाई पर ले जा सकेगी और भारतीय बाजार इस किस्म की डिजिटल दीपावली की रोशनी में सराबोर हो सकेंगे। डिजिटल रुपये के संदर्भ से यदि देश में भुगतान के डिजिटल तौर-तरीकों की सफलता पर नजर दौड़ाएं, तो पता चलता है कि नोटबंदी और उसके बाद कोरोना काल में लगे लाकडाउन का डिजिटल भुगतान के मामले में सकारात्मक असर हुआ है।
वर्ष 2017 में देश में क्रेडिट-डेबिट कार्ड, चेक-ड्राफ्ट और मोबाइल वालेट आदि सभी तरीके मिलाकर केवल 22 प्रतिशत भुगतान कैशलेस हो रहे थे। लेकिन बाद के पांच वर्षों में यह तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। डिजिटल भुगतान प्रणालियों पर नजर रखने वाले संगठन ‘एसीआइ वर्ल्डवाइड’ की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2020-21 में भारत में 2550 करोड़ ट्रांजेक्शन (भुगतानों की संख्या) डिजिटल तरीकों से किए गए थे। इस मामले में भारत दुनिया के शीर्ष पर है और हमारे बाद चीन (1570 करोड़) और दक्षिण कोरिया (600 करोड़) का नंबर आता है। अ
मेरिका इस मामले में काफी पीछे यानी नौवें स्थान पर है, जहां वित्त वर्ष 2020-21 में ऐसे केवल 120 करोड़ ट्रांजेक्शन हुए थे। इलेक्ट्रानिक्स और सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार वित्त वर्ष 2020-21 के 5,554 करोड़ लेनदेन के मुकाबले वित्त वर्ष 2021-22 में भुगतान संबंधी 7422 करोड़ लेनदेन डिजिटल तरीकों से हुए। इंटरनेट गूगल और बोस्टन कंस्टलटेंसी ग्रुप (बीसीजी) के रिपोर्ट के अनुसार भारत के सकल घरेलू उत्पाद में इसकी भूमिका 15 प्रतिशत तक हो सकती है। प्लास्टिक मनी बनाम डिजिटल मनी : कागज के नोटों और धातु से बने सिक्कों से अलग प्लास्टिक मनी या डिजिटल मनी रूपी दो व्यवस्थाएं हमें रुपये-पैसे को जेब या बटुए में लेकर चलने से आजाद करती हैं।
बताते हैं कि अब से करीब 75 साल पहले प्लास्टिक के क्रेडिट कार्ड का आविष्कार इस उद्देश्य के साथ किया गया था कि नोटों को अपने साथ रखने की बजाय लोग चोरी हो जाने के भय से मुक्त होकर एक या अधिक कार्ड अपनी जेब में रखें और उनका प्रयोग रकम को एक खाते से दूसरे खाते में भेजने (ट्रांसफर करने) के लिए इस्तेमाल करें। क्रेडिट कार्ड में उपभोक्ताओं को यह सुविधा भी दी गई कि आवश्यकता पड़ने पर वे अपने खाते में जमा धन से ज्यादा रकम खर्च कर सकें और बाद में ली गई अतिरिक्त रकम पर ब्याज समेत चुका दें। आगे चलकर क्रेडिट कार्ड के नए रूप सामने आए, जैसे डेबिट कार्ड, ट्रैवल कार्ड, गिफ्ट कार्ड, पेट्रोल कार्ड, फूड कार्ड आदि।
हमारे देश में रुपे नामक प्रीपेड कार्ड भी लाया जा चुका है जिसका प्रयोग कैशलेस लेनदेन में किया जाता है। किसी सरकारी बैंक द्वारा जारी की जाने वाली कागजी मुद्रा (करेंसी) की बजाय डिजिटल मनी धन का ऐसा रूप है जिसका मूल्य आम तौर पर उससे संबंधित करेंसी जितना ही होता है, पर इसे कागज या सिक्कों या कार्ड की बजाय इलेक्ट्रानिक रूप में मोबाइल फोन, कंप्यूटर-लैपटाप या अन्य किसी इलेक्ट्रानिक वालेट में ही रखा जाता है।
भले ही इस डिजिटल मनी या वर्चुअल करेंसी को अपनी जेब में नहीं रख सकते, इसे छूकर महसूस नहीं कर सकते, परंतु इसे उसी सरकारी करेंसी के बदले ही हासिल किया जा सकता है जिसे सरकारी बैंक (भारत के मामले में रिजर्व बैंक आफ इंडिया) कागज के नोटों और धातु के सिक्कों के रूप में जारी करती है। इसलिए डिजिटल मनी का मूल्य सरकारी मुद्रा के बराबर होता है और उसे आसानी से स्वीकार किया जाता है। इस करेंसी की विशेषता यह है कि यह इंटरनेट पर आधारित लेनदेन का माध्यम है, इसलिए इससे कभी भी और कहीं भी सामान-सेवा आदि खरीदने में कोई परेशानी नहीं होती। इसके लेनदेन के लिए बैंक या एटीएम की भी आवश्यकता नहीं पड़ती, इसलिए इससे अर्थव्यवस्था में धन के प्रवाह में तेजी आती है।
वर्ष 2016 में नोटबंदी के बाद जिस तरह से पांच सौ और एक हजार रुपये के पुराने नोटों पर पाबंदी लगी उससे नकद रुपयों की कमी पैदा हुई। लिहाजा डिजिटल करेंसी से जुड़े कारोबार को प्रोत्साहन मिला। ऐसी सुविधा देने वाली कंपनियों के कामकाज में भी इस दौरान काफी तेजी आई। एक दावा है कि डिजिटल मनी की शुरुआत सबसे पहले 1990 में हुई थी। दुनिया में उस वक्त डाट काम बबल ने इसका उपयोग मुद्रा के रूप में किया था। इसके कुछ वर्षों बाद 2006 में लिबर्टी रिजर्व नामक एक कंपनी ने डिजिटल करेंसी सेवा की शुरुआत की। इसके उपभोक्ता अपने पास मौजूद अमेरिकी डालर या यूरो को लिबर्टी रिजर्व डालर या लिबर्टी रिजर्व यूरो में बदलवा सकते थे। इसके बदले उन्हें एक प्रतिशत शुल्क देना पड़ता था। हालांकि बाद में आरोप लगा कि इस डिजिटल करेंसी का इस्तेमाल कुछ लोग काला धन सफेद करने के लिए कर रहे हैं।
ऐसे समाचारों के सामने आने पर अमेरिकी सरकार ने डिजिटल करेंसी की इस व्यवस्था को बंद कर दिया था। इन दिनों दुनिया में डिजिटल करेंसी के रूप में बिटकाइन का अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है। बिटकाइन पूरी दुनिया में बहुत तेजी से फैलता जा रहा है और सरकारी पाबंदियों के दौर में इसके प्रशंसक और उपयोगकर्ता बढ़ते जा रहे हैं। वैसे बीते कुछ अरसे में सरकारों द्वारा बिटकाइन और ऐसी करेंसियों को मान्यता नहीं देने के कारण उनके कारोबार व मूल्य में कमी आई है। ऐसे में सरकारी बैंकों (जैसे रिजर्व बैंक) द्वारा जारी की जाने वाली डिजिटल करेंसी (ई-रुपी) का रास्ता खुलता प्रतीत हो रहा है।[असोसिएट प्रोफेसर, बेनेट यूनिवर्सिटी, ग्रेटर नोएडा] जानें मार्केट के Top 5 स्टॉक्स जो देंगे शानदार रिटर्न्स - https://bit.ly/3RxtVx8 "