Old and New Tax Regime: टैक्स सिस्टम का चुनाव करने से पहले इन बातों पर करें गौर, ले सकेंगे सही निर्णय
Old Or New Tax Regime अगर आप एक करदाता है तो आपको भी नई या पुरानी कर व्यवस्था में से किसी एक को चुनना होगा। ऐसे में अगर आप कन्फ्यूज हैं कि किसका चुनाव किया जाए तो इन 5 प्वाइंट को जरूर देखें। (फोटो-जागरण ग्राफिक्स)
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। बजट 2022 में नई कर व्यवस्था (New Tax Regime) को पेश किया गया था और इस वित्तीय वर्ष से डिफॉल्ट रूप से लागू किया गया है। बाद में CBDT ने नियोक्ताओं को आदेश जारी कर कहा था कि यह कंपनी को उनके कर्मचारियों से पूछना होगा कि वे किस व्यवस्था में रहना चाहते हैं। ऐसे में करों में छूट (Tax Deduction) का पूरा फायदा लेने के लिए कर्मचारियों को समझना होगा कि उनके लिए कौन-सी व्यवस्था सही रहेगी।
नई या पुरानी किसी भी कर व्यवस्था ( Old And New Tax Regime) का चुनाव करने से पहले कुछ जरूरी बातों पर गौर करना जरूरी है, ताकि करदाता सही निर्णय ले सके। इन जरूरी बातों को नीचे दिए 5 प्वाइंट से समझा जा सकता है।
1. टैक्स स्लैब को समझें
नई या पुरानी कर व्यवस्था का चुनाव करने से पहले अपनी सही आय का अनुमान लगा लें। जानकारों के मुताबिक, अगर करदाता की सालाना आय 15 लाख रुपये तक या इससे कम है और अगर करदाता ने किसी तरह का निवेश नहीं कर रखा है, तो उसके लिए नई व्यवस्था अच्छी रहेगी। नई कर व्यवस्था के तहत 20% का टैक्स लगता है, जबकि पुरानी व्यवस्था के तहत 25 प्रतिशत का भुगतान करना होगा।
2. निवेशकों के लिए जरूरी बातें
अगर आप एक ऐसे करदाता है, जिसने जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा, पेंशन प्लान जैसी कई योजनाओं पर निवेश कर रखा है। साथ ही होम लोन या इसी तरह के लोन के प्रीमियम का भुगतान कर रहे हैं तो पुरानी कर व्यवस्था का चुनाव करें।
ऐसा इसलिए, क्योंकि नई व्यवस्था के तहत करदाता आयकर अधिनियम की धारा 80C के तहत किसी भी डिडक्शन का क्लेम नहीं कर सकेंगे। ऐसे में उन्हें 1.50 लाख रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा और सिर्फ स्टैंडर्ड डिडक्शन के रूप में 50,000 रुपये की छूट ही मिल सकेगी।
3. HRA और TLA के लिए ये जरूरी
अगर करदाता किराये के मकान में रहता है या उसकी जॉब ट्रैवल वाली है, इस वजह से उसे हाउस रेंट अलाउंस (HRA) और लीव ट्रैवल अलाउंस (LTA) जैसे रिबेट मिलते हैं जो कि कर मुक्त होता है। ऐसे में अगर यह राशि ज्यादा है, तो पुरानी व्यवस्था में बने रहें, क्योंकि नई व्यवस्था में इसका लाभ नहीं मिलता है।
4. विकल्प बदलने का मौका
शुरुआत में अगर नहीं समझ में आ रहा कि कौन-सी व्यवस्था सही रहेगी तो बेहतर है पुराने में बने रहें, क्योंकि इससे बाद में वित्तीय वर्ष में नई व्यवस्था में जाया जा सकता है, लेकिन अगर करदाता एक बार नई कर व्यवस्था का चुनाव कर लेते है तो वापस पुरानी टैक्स रिजीम में जाना मुमकिन नहीं।
5. दोनों व्यवस्थाओं की करें तुलना
अगर आपने अपनी सारी आय और व्यय का ब्योरा तैयार कर लिया है, तो अंत में दोनों व्यवस्थाओं की तुलना करके सही निर्णय लिया जा सकता है। आयकर विभाग की साइट में इनकम टैक्स कैलकुलेटर दिया गया है, जिसकी मदद से आय और कटौती के आधार पर सबसे उपयुक्त कर व्यवस्था निर्धारित की जा सकती है।
(नोट: यह लेख एक सामान्य जानकारी पर आधारित है। करदाता किसी भी व्यवस्था को चुनने से पहले एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। )