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Retirement Planning tips : रिटायरमेंट के बाद आती हैं ये चुनौतियां, क्या आपने की है इनसे निपटने की तैयारी?

रिटायरमेंट के बाद अच्छी लाइफ के लिए आपको सही तरीके से प्लानिंग करनी होगी। आप चाहे जितना पैसा कमाएं या बचाएं अगर आपने रिटायमेंट का सही प्लान नहीं बनाया तो बुढ़ापे में आपको आर्थिक रूप से परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं। ऐसे में आपको बता रहे हैं कि रिटायरमेंट के बाद किस तरह की चुनौतियां आती हैं ताकि आप उसी के हिसाब से अपनी प्लानिंग कर सकें।

By Suneel Kumar Edited By: Suneel Kumar Updated: Sun, 14 Apr 2024 09:25 AM (IST)
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रिटायरमेंट प्लानिंग में मुद्रास्फीति का ज्यादा ध्यान रखना चाहिए।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। रिटायरमेंट के बाद आपकी लाइफ कैसी होगी, यह निर्भर करता है आपकी प्लानिंग पर। आप चाहे जितना पैसा कमाएं या बचाएं, अगर आपने रिटायमेंट का सही प्लान नहीं बनाया तो बुढ़ापे में आपको आर्थिक रूप से परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं, क्योंकि उस वक्त मुद्रास्फीति से लेकर पैसों से जुड़े ज्यादातर समीकरण बदल जाते हैं।

ऐसे में आपको बता रहे हैं कि रिटायरमेंट के बाद किस तरह की चुनौतियां आती हैं, ताकि आप उसी के हिसाब से अपनी प्लानिंग कर सकें।

लंबी हो रही है उम्र

अब लोग अपनी जीवनशैली को लेकर काफी जागरूक हो रहे हैं। इलाज की सुविधाएं भी पहले काफी बेहतर हो गई हैं। ऐसे में 90 या इससे अधिक साल तक जीने वाले लोगों की तादाद भी तेजी से बढ़ रही है।

भारत में पुरुष और महिलाओं की उम्र भले ही 70 साल के करीब है, लेकिन यह दुनिया के उन पांच शीर्ष देशों में शामिल है, जहां 100 साल से अधिक जीने वालों की तादाद सबसे अधिक है।

ऐसे में अगर 55 या 60 साल की उम्र में रिटायर होते हैं, तो आपको अगले 35 से 40 साल के खर्चों को ध्यान में रखकर रिटायरमेंट की प्लानिंग करनी चाहिए।

अस्थिरता का खतरा

किसी भी मार्केट में बड़े उतार-चढ़ाव या 'ब्लैक स्वान' (Black Swan) घटनाओं की आशंका हमेशा रहती है। ब्लैक स्वान का मतलब उन बुरी घटनाओं से जिनका हमें अंदेशा नहीं होता और वे अचानक से आती हैं। कोरोना महामारी इसकी बड़ी अच्छी मिसाल है।

जब भी ऐसी घटनाएं होती हैं, तो उनका आर्थिक बाजारों का व्यापक असर होता है। मतलब कि चीजें एकदम उलट-पुलट जाती हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और जलवायु भी आने वाले समय में बड़ा बदलाव ला सकती है। ऐसे में रिटायरमेंट की प्लानिंग में इस तरह की चीजों का भी ध्यान रखना चाहिए।

मुद्रास्फीति है बड़ी चुनौती

मुद्रास्फीति (inflation) यानी वह दर, जिस पर चीजों के दाम सालाना आधार पर बढ़ते हैं। यह आर्थिक नीतियों के हिसाब से कम या ज्यादा हो सकती है। भारत की बात करें, तो अभी 5 फीसदी के करीब है। लेकिन, यह 1974 में 28 फीसदी के पार पहुंच गई थी।

मुद्रास्फीति बढ़ने के हिसाब को आप यूं समझ सकते हैं। फर्ज कीजिए, आपने पिछले महीने रोजमर्रा का सामान 1 हजार रुपये में खरीदा। लेकिन, इस महीने महंगाई बढ़ने से उन चीजों का दाम 11 सौ रुपये हो गया। अब या तो आप 100 रुपये अधिक देंगे या फिर उनमें से कोई सामान कम करेंगे।

लंबी अवधि में मुद्रास्फीति आपकी आर्थिक स्थिति को सबसे अधिक प्रभावित कर सकती है। इसलिए आपको इस पर सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए।

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