क्या है OBOR, जानिए इससे जुड़ी हर अहम बात
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए ओबीओआर एक महत्वकांशी परियोजना है
नई दिल्ली (जेएनएन)। पूर्व से पश्चिम तक चीन सड़क और समुद्र के रास्ते एक ऐसा जाल बिछाने जा रहा है जिससे कि वो पूरी दुनिया पर अपनी धाक जमा पाएगा। इसे वन बेल्ड वन रोड नाम दिया जा रहा है। 14-15 मई को बीजिंग में वन बेल्टि वन रोड (ओबीओआर) समिट होने वाली है, जिससे भारत ने किनारा करने का फैसला किया है। भारत का यह रुख इसलिए भी अहम है क्योंकि चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना का बड़ा हिस्सा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से गुजरता है। चीन ने इस गलियारे के लिए भारत से इजाजत नहीं ली, जो उसकी संप्रभुता का उल्लंघन करता है। हम अपनी इस खबर के माध्यम से आपको इससे जुड़ी हर बड़ी बात बताने की कोशिश करेंगे।
क्या है OBOR?
इसे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महात्वाकांक्षी परियोजना कहा जा रहा है। वन बेल्ट वन रोड परियोजना का उद्देश्य एशियाई देशों, अफ्रीका, चीन और यूरोप के बीच कनेक्टिविटी और सहयोग में सुधार लाना है। इसमें जमीन के साथ-साथ समुद्री मार्गों को बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है। यह रास्ता चीन के जियान प्रांत से शुरू होकर, अफ्रीकी देश, रुस, यूरोप को सड़क मार्ग से जोड़ते हुए फिर समुद्र मार्ग के जरिए एथेंस, केन्या, श्रीलंका, म्यामार, जकार्ता, कुआलालंपुर होते हुए जिगंझियांग (चीन) से जुड़ जाएगा। यह नीति चीन के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका उद्देश्य देश में घरेलू विकास को बढ़ावा देना है। विशेषज्ञों के मुताबिक ओबीओआर आर्थिक कूटनीति के लिहाज से चीन की रणनीति का भी एक हिस्सा है।
ओबीओआर से भारत को क्या है आपत्ति?
चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना को लेकर भारत के विरोध की प्रमुख वजह चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) है, जो कि ओबीओआर (OBOR) का एक हिस्सा है। चीन ने इस गलियारे के लिए भारत से इजाजत नहीं ली, जो उसकी संप्रभुता का उल्लंघन करता है। इसके अलावा भारत को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के नाम पर भी आपत्ति है। बताया जाता है कि भारत के एतराज के बाद चीन इसका नाम बदलने को राजी हो गया था, लेकिन बाद में मुकर गया। चीन को भारत के सहयोग की दरकार इसलिए भी है क्योंकि अमेरिका समेत कई दिग्गज देश चीनी मंसूबों को शक की नजर से देखते हैं।
ओबीओआर समिट में 130 देशों के शामिल होने का दावा:
चीन का दावा है कि इस समिट में 130 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। लेकिन सवाल ये है कि जब यह परियोजना 65 देशों को जोड़ेगी, तो 130 देशों को बुलाने की क्या जरूरत थी। चीन इस समिट के जरिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचने की पूरी कोशिश कर रहा है। इसके जरिए वह भारत समेत दूसरे देशों पर दबाव बनाना चाहता है। शी जिनपिंग ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना समिट के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि यह परियोजना वैश्विक शांति और समृद्धि का प्रतीक बनेगी। जबकि हकीकत यह है कि चीन की ये बातें कई देशों के गले नहीं उतर रही हैं। दक्षिण चीन सागर, तिब्बत और अरुणाचल के मसले चीनी रुख राष्ट्रपति जिनपिंग के दावों से मेल नहीं खाता है।
क्या है सिल्क रूट का इतिहास
असल में सिल्क रोड या सिल्क रूट वह पुराना मार्ग है जो सदियों पहले व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता था। यह रास्ता सदियों तक व्यापार का मुख्य मार्ग रहा और इसी रास्ते के जरिए तमाम संस्कृतियां भी एक-दूसरे के संपर्क में आयीं। इस रूट के जरिए पूर्व में कोरिया और जापान का संपर्क भूमध्य सागर के दूसरी तरफ के देशों से हुआ।
हालांकि आधुनिक युग में सिल्क रूट का अभिप्राय चीन में हान वंश के राज के समय की सड़क से है, जिसके जरिए रेशम और घोड़ों का व्यापार होता था। चीनी अपने व्यापार को लेकर शुरू से ही काफी संजीदा रहे हैं और इसी को ध्यान में रखते हुए चीन की महान दीवार का भी निर्माण किया गया था, ताकि व्यापार आसानी से हो और बाहरी आक्रमणकारी व्यापार को नुकसान न पहुंचा सकें। 5वीं से 8वीं सदी तक चीनी, अरबी, तुर्की, भारतीय, पारसी, सोमालियाई, रोमन, सीरिया और अरमेनियाई आदि व्यापारियों ने इस सिल्क रूट का काफी इस्तेमाल किया। साल 2014 में यूनेस्को ने इसी पुराने सिल्क रूट के एक हिस्से को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता भी दी।