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जानिए, क्या होती है मुद्रास्फीति या महंगाई दर?

एक निश्चित अवधि में चुनिंदा वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य में जो वृद्धि या गिरावट आती है, उसे मुद्रास्फीति कहते हैं

By Surbhi JainEdited By: Updated: Mon, 19 Mar 2018 10:03 AM (IST)
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जानिए, क्या होती है मुद्रास्फीति या महंगाई दर?

नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)। ‘जागरण पाठशाला’ के इस अंक में हम मुद्रास्फीति यानी महंगाई दर के बारे में समझेंगे। यह ऐसी आर्थिक शब्दावली है जिससे हर कोई परिचित है। गरीब-अमीर, कर्मचारी-पेंशनर, मजदूर-उद्यमी और केंद्रीय बैंक-सरकार, हर कोई इससे प्रभावित होता है। इसका असर किसी पर कम, किसी पर ज्यादा, लेकिन जो आर्थिक रूप से कमजोर होता है, उस पर सबसे ज्यादा पड़ता है। राजनीतिक दल महंगाई काबू रखने के वादे पर चुनाव लड़ते हैं, सत्ता में आते हैं। वे ऐसा करने में विफल रहते हैं तो सत्ता से चले जाते हैं।

मुद्रास्फीति क्या है? इसका मतलब क्या है? हर माह थोक और खुदरा महंगाई दर के जो आंकड़े आते हैं, उनका क्या अर्थ है? आम लोगों के जीवन से उनका क्या संबंध है?

मुद्रास्फीति या महंगाई दर

एक निश्चित अवधि में चुनिंदा वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य में जो वृद्धि या गिरावट आती है, उसे मुद्रास्फीति कहते हैं। इसे जब प्रतिशत में व्यक्त करते हैं तो यह महंगाई दर कहलाती है। सरल शब्दों में कहें तो यह कीमतों में उतार-चढ़ाव की रफ्तार को दर्शाती है। यही वजह है कि कई बार थोक या खुदरा महंगाई की दर धीमी होने पर भी बाजार में कीमतों में गिरावट नहीं आती।

देश में सरकार मुख्यत

‘थोक मूल्य सूचकांक’ और ‘खुदरा मूल्य सूचकांक’ के रूप में हर माह मुद्रास्फीति के आंकड़े जारी करती है, जिससे पता चलता है कि उक्त महीने में महंगाई बढ़ी या घटी। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) का आकलन चुनिंदा 697 वस्तुओं की थोक कीमतों में उतार-चढ़ाव के आधार पर किया जाता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि इसमें सेवाएं शामिल नहीं हैं। थोक मूल्य सूचकांक में शामिल वस्तुओं को तीन वर्गों- प्राथमिक उत्पाद, ईंधन-बिजली और विनिर्मित उत्पादों की श्रेणी में रखा जाता है।

इसमें शामिल कृषि उत्पादों के भाव पर नजर रखने के लिए निर्धारित मंडियों से थोक भाव लिया जाता है, जबकि विनिर्मित उत्पादों के लिए एक्स-फैक्ट्री प्राइस (फैक्ट्री मूल्य) और खनिजों के लिए एक्स-माइन प्राइस (खदान पर खनिज के मूल्य) को संज्ञान में लिया जाता है। थोक मूल्य सूचकांक के बास्केट में जो वस्तुएं शामिल हैं, उन्हें उनके ‘उत्पादन मूल्य’ के आधार पर वेटेज दिया जाता है। इसके बाद थोक मूल्य सूचकांक को आधार वर्ष पर व्यक्त किया जाता है। जैसे हमारे देश में थोक मूल्य सूचकांक का आधार 2011-12 है। मसलन, 2011-12 में थोक मूल्य सूचकांक 100 था और अब 110 है तो महंगाई दर 10 फीसद होगी।

प्रत्येक माह के आंकड़े को उसके अगले महीने की 14 तारीख को जारी किया जाता है। उदाहरण के लिए सरकार ने फरवरी, 2018 के थोक महंगाई के आंकड़े 14 मार्च को जारी किए। यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि फरवरी, 2018 के थोक मूल्य सूचकांक की तुलना फरवरी, 2017 से की गई थी। थोक महंगाई दर अर्थव्यवस्था में आपूर्ति पक्ष की स्थिति दर्शाती है। इसमें गिरावट या वृद्धि के आधार पर सरकार आपूर्ति सुधारने खासकर खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति सुचारु बनाने के लिए कदम उठाती है।

खुदरा महंगाई

खुदरा महंगाई दर का आकलन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) के आधार पर किया जाता है। ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों के लिए इसका आकलन अलग-अलग होता है। परिवार जिन वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करते हैं, उन्हें सीपीआइ बास्केट में शामिल किया जाता है। इसमें ग्रामीण क्षेत्र के लिए 448 और शहरी क्षेत्रों के लिए 460 वस्तुएं व सेवाएं शामिल हैं। इसमें खाद्य वस्तुओं व शिक्षा, स्वास्थ्य और मकान के किराए जैसी सेवाओं पर खर्च भी शामिल है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय हर महीने की 12 तारीख को पिछले महीने के लिए खुदरा महंगाई के आंकड़े जारी करता है। इसका इस्तेमाल रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति तय करने के लिए करता है।

खुदरा महंगाई दर में उतार-चढ़ाव के आधार पर सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता तय होता है। आरबीआइ रेपो दर घोषित करता है, जिससे ब्याज दरें तय होती हैं। खुदरा महंगाई बढ़ने से सबसे ज्यादा परेशानी उन लोगों को होती है, जिनकी मासिक आय फिक्स्ड है। मसलन, पेंशनर व वरिष्ठ नागरिक, जो बैंक में जमा राशि से मिलने वाले ब्याज से गुजारा करते हैं। महंगाई बढ़ने से ऐसे लोगों की क्रय शक्ति कम हो जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो इससे उनकी वास्तविक आय कम हो जाती है।