जानिए क्या होती है NBFC?
एनबीएफसी में सिर्फ वित्तीय कंपनियां नहीं आतीं बल्कि बीमा, चिटफंड, निधि, मर्चेंट बैंकिंग, स्टॉक ब्रोकिंग और इन्वेस्टमेंट बिजनेस करने वाली कंपनियां भी एनबीएफसी होती हैं
नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)। हमारे देश में कई ऐसे फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन हैं जो बैंक न होते हुए भी बैंक की तरह काम करते हैं। ये जमाराशियां लेते हैं और उधार भी देते हैं। ऐसे संस्थानों को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) कहते हैं। एनबीएफसी में सिर्फ वित्तीय कंपनियां नहीं आतीं बल्कि बीमा, चिटफंड, निधि, मर्चेंट बैंकिंग, स्टॉक ब्रोकिंग और इन्वेस्टमेंट बिजनेस करने वाली कंपनियां भी एनबीएफसी होती हैं। हालांकि कृषि, औद्योगिक गतिविधि, वस्तुओं की खरीद-फरोख्त, अचल संपत्ति का निर्माण, खरीद व बिक्री करने वाली कंपनियां एनबीएफसी के दायरे में नहीं आतीं।
1963 से आरबीआइ ने शुरू किया एनबीएफसी का नियमन: 1960 के दशक में एनबीएफसी में पैसा जमा कराने वाले कई लोगों की जमाराशियां डूब गईं। इसके बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने 1963 से एनबीएफसी पर नजर रखना और उनके लिए नियम बनाना शुरू कर दिया। इस तरह जो एनबीएफसी बैंक जैसी गतिविधियां करती हैं उनका नियमन अब भारतीय रिजर्व बैंक करता है जबकि बीमा क्षेत्र में काम करने वाली एनबीएफसी का नियमन इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (आइआरडीए) करता है। जो एनबीएफसी वेंचर कैपिटल फंड, मचेर्ंट बैंकिंग कंपनी, स्टॉक ब्रोकिंग कंपनी या म्यूच्युअल फंड के रूप में काम करती हैं, वे सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) के दायरे में आती हैं। इसी तरह पेंशन फंड पीएफआरडीए के अधीन आते हैं। दूसरी ओर निधि कंपनियां कंपनी मामलों के मंत्रलय के जबकि चिटफंड कंपनियां राज्य सरकारों अधीन आती हैं। हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों का नियमन नेशनल हाउसिंग बैंक करता है।
शैडो बैंकिंग सिस्टम: बैंक की तरह काम करने वाली इन गैर-बैंकिंग कंपनियों को दुनियाभर में ‘शैडो बैंकिंग सिस्टम’ कहते हैं। वास्तव में ये बैंक की तरह काम करते हैं लेकिन उन्हें बैंक की तरह सस्ती दर पर फंड नहीं मिलता, इसीलिए वे बैंकों से उधार लेकर, नॉन-कन्वर्टीबल डिबेंचर्स (एनसीडी) और कमर्शियल पेपर के जरिये अपना फंड जुटाते हैं। नॉन-कन्वर्टीबल डिबेंचर्स एक बांड की तरह होता है जिसे एक कंपनी उधार लेने के लिए जारी करती है। इसकी मैच्योरिटी एक साल तक की होती है। मैच्योरिटी पूरी होने पर कंपनी ब्याज दर का भुगतान कर देती है। नॉन-कन्वर्टीबल डिबेंचर्स को कंपनी के शेयर में नहीं बदला जा सकता। इसी तरह उधार लेने के लिए कमर्शियल पेपर एक प्रॉमिसरी नोट के रूप में जारी किया जाता है।
सरकार की मुद्रा योजना भी एक एनबीएफसी के माध्यम से चल रही है जिसका नाम है माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी लिमिटेड (मुद्रा)। इसका उद्देश्य गैर-कॉरपोरेट उद्यमियों को लोन मुहैया कराना है। इसी तरह असेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियां जो सरफेसी कानून के तहत पंजीकृत होती हैं, उन्हें सरकार एनबीएफसी के रूप में ही अधिसूचित करती है। एनबीएफसी को अनिवार्यत: आरबीआइ के पास पंजीकरण के साथ-साथ उसकी गतिविधियों के आधार पर नेट ओन्ड फंड (एनओएफ) के रूप में न्यूनतम दो करोड़ रुपये की जरूरी पूंजी भी रखनी होती है। साथ ही उन्हें हर साल उनके लाभ का कम से कम 20 प्रतिशत ट्रांसफर करके एक रिजर्व फंड भी बनाकर रखना होता है।
अक्सर आप बोलचाल में ‘एनबीएफसी’ शब्द का जिक्र सुनते होंगे। आपके आस-पास बहुत से लोग होंगे जो किसी एनबीएफसी में पैसा जमा करते हैं या उधार लेते हैं। एनबीएफसी क्या है और इसके काम करने का तरीका क्या है, इस अंक में हम यही समझने की कोशिश करेंगे।
बैंक और एनबीएफसी में अंतर
एनबीएफसी बैंक की तरह काम करते हैं लेकिन वे बैंक नहीं होते। उदाहरण के लिए एनबीएफसी, बैंक की तरह डिमांड डिपोजिट (मांग जमा) स्वीकार नहीं कर सकती। बैंक की तरह एनबीएफसी चैक भी जारी नहीं कर सकती हैं क्योंकि वे पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम का भाग नहीं होती हैं। बैंक में जो राशि जमा होती है, डिपोजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट कॉरपोरेशन उसका बीमा करता है। एनबीएफसी में राशि जमा करने वालों को यह सुविधा नहीं मिलती।