कब बैंक का लोन बनता है NPA और कैसे पड़ता है आम जनता पर इसका असर? जानिए
एनपीए बढ़ता है तो बैंकों को ज्यादा कर्ज लेना होता है। इससे उनकी फंड जुटाने की लागत बढ़ती है जिसका बोझ ग्राहकों पर ऊंची ब्याज दरों के रूप में पड़ता है।
By Shubham ShankdharEdited By: Updated: Mon, 16 Apr 2018 10:55 AM (IST)
नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)। एक व्यावसायिक बैंक मुख्यत: दो प्रकार के काम करता है। बैंक अपने ग्राहकों को लोन देता और उनसे जमाराशियां स्वीकार करता है। ऐसा करते समय बैंक विभिन्न परिसंपत्तियों में निवेश भी करता है। बैंक अमूमन व्यक्तियों व कंपनियों को धनराशि उधार देता है लेकिन उधार बांटी गई उस राशि में से कुछ धनराशि एनपीए (नॉन परफॉमिर्ंग असेट्स) बन जाती है। सरल शब्दों में कहें तो जब ग्राहक बैंक का कर्ज समय पर नहीं चुकाते हैं तो वह फंसा हुआ कर्ज एनपीए में तब्दील हो जाता है।
तीन मासिक किश्त अटकी तो एनपीए हो जाता है लोन एकाउंटभारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार बैंक को जब किसी परिसंपत्ति (असेट्स) से आय अर्जित होना बंद हो जाती है तो उसे एनपीए मान लिया जाता है। उदाहरण के लिए अगर किसी व्यक्ति ने कार खरीदने के लिए बैंक से ऑटो लोन लिया। अगर वह व्यक्ति किसी कारणवश लगातार तीन महीने तक मासिक किश्तों का भुगतान नहीं कर पाता है तो बैंक को अपने बही-खाते में यह राशि एनपीए के रूप में दर्ज करनी होगी। बैंकों का एनपीए दो स्थिति में बढ़ता है। पहली, जब अर्थव्यवस्था में कारोबार सुस्त रहता है। दूसरी, जब कोई व्यक्ति या कंपनी जानबूझकर बैंक का कर्ज नहीं चुकाते हैं। जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाले को ‘विलफुल डिफॉल्टर’ कहते हैं। इस तरह लगातार 90 दिन तक मूलधन या ब्याज की किश्त का भुगतान न होने पर लोन खाता एनपीए बन जाता है।
क्या हैं स्पेशल मेंशन अकाउंट?
कोई लोन खाता निकट भविष्य में एनपीए बन सकता है, इसकी पहचान करने के लिए आरबीआइ ने नियम बनाए हैं। इसके तहत व्यावसायिक बैंकों को उनके लोन खातों को स्पेशल मेंशन अकाउंट (एसएमए) के तौर पर चिन्हित करना होता है। उदाहरण के लिए अगर किसी लोन खाते में मूलधन या ब्याज की किश्त का भुगतान निर्धारित तिथि से 1 से 30 दिन तक नहीं होता है तो उसे एसएमए-0 कहा जाता है। अगर मूलधन या ब्याज का भुगतान 31 से 60 दिन तक न हो तो इसे एसएमए-1 कहा जाता है। इसी तरह अगर मूलधन या ब्याज का भुगतान 61 से 90 दिन तक न हो तो उसे एसएमए-2 कहा जाता है। इस तरह 90 दिन पूरे होने के बाद बैंक को उसे एनपीए घोषित करना होता है।तीन प्रकार के होते हैं एनपीए
जब हम एनपीए के बारे में अखबार में पढ़ते हैं तो ऐसा नहीं है कि हर एनपीए खाता एक जैसा हो। एनपीए का यह भी मतलब नहीं है कि बैंक की रकम डूब गयी है या बैंक ने उस लोन को वसूलना छोड़ दिया है। असल में किसी लोन खाते को एनपीए घोषित करने के बाद बैंक को एनपीए खातों को तीन श्रेणियों- ‘सबस्टैंडर्ड असेट्स’, ‘डाउटफुल असेट्स’ और ‘लॉस असेट्स’ के रूप में वर्गीकृत करना होता है। मसलन, जब कोई लोन खाता एक साल या इससे कम अवधि तक एनपीए की श्रेणी में रहता है उसे ‘सबस्टैंडर्ड असेट्स’ कहा जाता है। इसी तरह जब कोई लोन खाता एक साल तक ‘सबस्टैंडर्ड असेट्स’ खाते की श्रेणी में रहता है तो उसे ‘डाउटफुल असेट्स’ कहा जाता है। लोन वसूली की उम्मीद न होने पर उसे ‘लॉस असेट्स’ मान लिया जाता है।
आरबीआइ बनाता है नियम
बैंकों के पूंजी आधार, उनकी आय और कर्ज के ट्रेंड पर नजर रखने के लिए आरबीआइ ने नरसिंहम समिति की सिफारिशों के आधार पर एनपीए के संबंध में ये नियम बनाए हैं। इस समिति ने अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग प्रणाली का अध्ययन करने के बाद इस तरह के प्रूडेंशियल नियम बनाने की सिफारिश की थी। आरबीआइ तिमाही आधार पर बैंकों के शुद्ध एनपीए और सकल एनपीए (ग्रॉस नॉन-परफॉमिर्ंग असेट) के आंकड़े जारी करता है। सकल एनपीए में अटके कर्ज की वास्तविक राशि (ब्याज सहित) जोड़ी जाती है जबकि शुद्ध एनपीए में से वह राशि घटा दी जाती है जो बैंक को बकाएदार से किसी भी स्नोत से वापस मिलने की उम्मीद है।एनपीए में उतार-चढ़ाव से कैसे पड़ता है असर?
एनपीए बढ़ता है तो बैंकों को ज्यादा कर्ज लेना होता है। इससे उनकी फंड जुटाने की लागत बढ़ती है जिसका बोझ ग्राहकों पर ऊंची ब्याज दरों के रूप में पड़ता है। एनपीए के रूप में जब बैंक का कर्ज जब फंस जाता है तो उसकी प्रोविजनिंग के लिए उसे मुनाफे से एक निश्चित राशि अलग रखनी होती है मुनाफा कम होने पर बैंक के विस्तार और ग्राहक सेवाओं पर असर होता है।हाल में आपने पढ़ा होगा कि बैंकों में फंसे कर्ज यानी एनपीए का स्तर काफी बढ़ गया है। भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार ने अपने-अपने स्तर पर बैंकों को इस संकट से उबारने के प्रयास किए हैं। इसके बावजूद एनपीए की सकल राशि वर्ष 2017 के अंत तक बढ़कर 8,31,141 करोड़ रुपये हो गई है। यह राशि भारत सरकार के इस साल के आम बजट के एक-तिहाई के बराबर है।