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Milk Price Hike: एक साल में 15 फीसद बढ़ी दूध की कीमत, डेयरी उत्पादों के आयात पर विचार कर सकती है सरकार

उपभोक्ता सर्वेक्षण फर्म लोकल सर्कल्स ने हालिया समीक्षा में कहा कि तीन में से एक परिवार ने बढ़ती कीमतों के कारण दूध की खपत और उस पर होने वाले खर्च को कम कर दिया है। (जागरण फाइल फोटो)

By Siddharth PriyadarshiEdited By: Siddharth PriyadarshiUpdated: Wed, 05 Apr 2023 08:02 PM (IST)
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Retail milk prices rose 15 Percent in past year
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। Milk Price Hike: दूध की बढ़ती कीमतों का असर आम लोगों पर अब साफ देखा जा सकता है। खुदरा बाजार में दूध की कीमतें पिछले एक साल में 15% बढ़ी हैं, जो एक दशक में सबसे तेज वृद्धि है। जानकारों का मानना है कि इस गर्मी में दूध के दाम और बढ़ सकते हैं।

उपभोक्ता सर्वेक्षण फर्म लोकल सर्कल्स ने एक अध्ययन में पाया है कि चारे की अधिक कीमत, महामारी के कारण दुधारू पशुओं की कमी और उत्पादकता में मंदी के चलते देश के लगभग सभी इलाकों में दूध के दाम तेजी से बढ़े हैं और इसके चलते भोजन श्रृंखला का अटूट हिस्सा रहा दूध आम लोगों को अब मुश्किल से ही मयस्सर है।

देश में बेतहाशा बढ़े दूध के दाम

हाल में अमूल ब्रांड ने दूध की कीमतों में कई बार बढ़ोतरी की है। गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ (जीसीएमएमएफ) का कहना है कि किसानों को उनकी उत्पादन लागत से अधिक कीमत चुकाने के लिए खुदरा कीमतों में कई बार वृद्धि की गई।

फरवरी में अमूल ने दूध की कीमतों में 3 रुपये की वृद्धि की, जो एक वर्ष में की जाने वाली पांचवीं वृद्धि थी। एक लीटर फुल क्रीम दूध अब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 66 रुपये में बिकता है, जबकि टोन्ड मिल्क की कीमत 54 रुपये है। दूध में खुदरा मुद्रास्फीति फरवरी में 9.65% बढ़ी, जो पिछले महीने 8.79% थी। ये अनाज के बाद किसी चीज में होने वाली सबसे बड़ी वृद्धि है।

सबसे बड़ा दूध उत्पादक है भारत

2021-22 में 221 मिलियन टन के अनुमानित उत्पादन के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है। लेकिन, इसके बाद भी दूध की कीमत धड़ाधड़ बढ़ रही है। आखिर इसका कारण क्या है? यूक्रेन संघर्ष की वजह से वैश्विक अनाज की कमी के कारण भारत से टूटे हुए चावल और गेहूं के अवशेषों का अधिक निर्यात हुआ, जिससे चारे की कमी हो गई। इससे मक्के की कीमतों में तेजी आई है। कुल मिलाकर, 2021 से चारे की कीमतें लगभग 21% बढ़ी हैं।

पशु रोगों की भूमिका

घातक विषाणु संक्रमण से होने वाले गांठदार त्वचा रोग ने पिछले साल महामारी का रूप धारण कर लिया था।अनुमान है कि आठ राज्यों में इसके चलते लगभग 185,000 गायों और भैंसों की मौत हुई थी।

बढ़ती मांग

महामारी के बाद वाणिज्यिक खरीदारों की बढ़ती मांग के बीच जल्द ही मांग-आपूर्ति बेमेल होने लगी। होटल, रेस्तरां और कैंटीन आदि से बढ़ रही मांग के बीच इस उद्योग के लिए सुचारु आपूर्ति बनाए रखना मुमकिन नहीं रहा। कोरोना महामारी फैलने के साथ किसानों ने पशुओं के झुंड का आकार सीमित कर दिया। राजस्थान जैसे राज्यों में प्रमुख मौसमी पशु बाजारों को बंद कर दिया गया, क्योंकि महामारी को रोकने के लिए प्रतिबंध लगाए गए थे। इन सबके चलते दूध के दाम बढ़ाना कंपनियों की मजबूरी बन गई।

क्या है समाधान

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, दूध की कमी को पूरा करने के लिए यूरोप से दूध पाउडर का आयात एक साल पहले की तुलना में 45.6 लाख डॉलर बढ़ गया है। उपाय बहुत से हैं, कई तरह की कोशिशें भी की जा रही हैं, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या आने वाले दिनों में दूध की कीमतें और ऊपर जाएंगी या कंपनियां जैसे-तैसे इसे समायोजित करने में सफल रहेंगी।

आयात पर विचार कर सकती है सरकार

बढ़ते मूल्य पर नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार ने कुछ खास डेयरी प्रोडक्ट के आयात का विकल्प भी खुला रखा है। देश में दुग्ध उत्पादन 2021-22 में 22.1 करोड़ टन था, जबकि एक वर्ष पहले 20.9 करोड़ टन उत्पादन हुआ था। महंगाई बढ़ाने में दुग्ध उत्पादों के मूल्यों में वृद्धि बड़ी वजह बनकर सामने आई है, क्योंकि एक वर्ष के दौरान दूध के मूल्य में दस रुपये तक की वृद्धि हुई है, जो इस दशक में सबसे ज्यादा है।

पशुपालन एवं डेयरी सचिव राजेश कुमार सिंह ने बुधवार को प्रेस कान्फ्रेंस कर कहा कि आवश्यकता पड़ने पर ही डेयरी उत्पादों के आयात पर विचार किया जा सकता है। अंतिम बार भारत ने 12 वर्ष पहले दुग्ध उत्पादों का आयात किया था, लेकिन उसके बाद कभी ऐसी आवश्यकता नहीं पड़ी है।

खुले हैं सभी विकल्प

केंद्र सरकार ने आयात का विकल्प खुला रखकर सभी पक्षों पर विचार कर रही है। सरकार की पहली शर्त है कि आयात के चलते किसानों की आय पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए। पशुपालन सचिव ने कहा कि दक्षिण के राज्यों में दूध के स्टाक की स्थिति का आकलन किया जा रहा है। अभी पीक उत्पादन का समय है। उसके बाद ही किसी निर्णय पर पहुंचा जा सकता है। अन्य दुग्ध उत्पादों के उत्पादन में कमी नहीं है, परंतु घी एवं मक्खन जैसे उत्पादों के आयात की स्थिति आ सकती है, क्योंकि यह ऐसा सेक्टर है जिसमें सरकार की तरफ से सब्सिडी की व्यवस्था नहीं है।

देश में दूध आपूर्ति में कोई बाधा नहीं है, लेकिन वसा, मक्खन और घी आदि का स्टाक कम है। दुग्ध उत्पादन औसतन छह प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है, लेकिन इस वर्ष (2022-23) में एक-दो प्रतिशत की दर से ही बढ़ सकता है। हालांकि पशुपालन सचिव ने यह भी कहा कि अभी आयात की स्थिति ठीक नहीं है, क्योंकि वैश्विक बाजार में दूध के दाम अभी ऊंचे हैं।

ऐसी स्थिति में ऊंची कीमत पर दूध का आयात करना ठीक नहीं होगा। सरकार की नजर कापरेटिव क्षेत्र के दूध उत्पादन पर रहती है। विश्व बैंक के सहयोग से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, असम, ओडिशा एवं कर्नाटक में पशु स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली लागू की जाएगी। नाम रखा गया है- वन हेल्थ। योजना की शुरुआत 14 अप्रैल को होगी।