Move to Jagran APP

CG News: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को किया रद, आजीवन कैद की सजा काट रहे अभियुक्तों की सशर्त रिहाई

CG News कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि टेलीफोन काल केवल संशय पैदा करता है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने कहा है कि संशय खुद साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकता। अपीलार्थियों की सशर्त रिहाई का आदेश जारी करते हुए हाई कोर्ट ने कहा है कि अनुमान या संदेह चाहे कितना भी गंभीर क्यों न हो।

By Jagran News Edited By: Babli Kumari Updated: Wed, 06 Mar 2024 07:53 PM (IST)
Hero Image
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने हत्या के एक मामले में सुनाया फैसला (फाइल फोटो)
राधाकिशन शर्मा, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने हत्या के एक मामले में इलेट्रानिक साक्ष्य के आधार पर निचली अदालत द्वारा दिए गए फैसले को रद कर दिया है। मामला रायपुर में 2019 में मर्चेंट नेवी के इंजीनियर की हत्या से जुड़ा हुआ है। जांच अधिकारी ने मोबाइल के काल डिटेल रिकार्ड (सीडीआर) के आधार पर इंजीनियर की हत्या के मामले में उसकी पत्नी समेत दो अन्य लोगों को आरोपित बनाया था।

निचली अदालत ने तीनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि टेलीफोन काल केवल संशय पैदा करता है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने कहा है कि संशय खुद साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकता। अपीलार्थियों की सशर्त रिहाई का आदेश जारी करते हुए हाई कोर्ट ने कहा है कि अनुमान या संदेह चाहे कितना भी गंभीर क्यों न हो। प्रबल संदेह, प्रबल संयोग और गंभीर संदेह कानूनी प्रमाण का स्थान नहीं ले सकते।

यह है मामला 

मर्चेंट नेवी के इंजीनियर के. विश्वनाथ शर्मा 19-20 जुलाई 2019 की रात अपने घर में रक्तरंजित पाए गए थे। अस्पताल ले जाने पर सुबह उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु का संभावित कारण मारपीट से सिर में चोट लगना बताया गया। संदेह के आधार पर पुलिस ने मोबाइल फोन और दो सिम जब्त किए। जब्त किए गए मोबाइल फोन की काल डिटेल प्राप्त की और निचली अदालत में दावा किया कि अभियुक्तों की काल डिटेल से यह सिद्ध हो गया है कि घटना से ठीक पहले वे सभी मोबाइल फोन के माध्यम से एक-दूसरे के संपर्क में थे, जो मृतक की हत्या की साजिश और योजना को साबित करता है।

कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी 

डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि टेलीफोन पर हुई बातचीत, यदि यह साबित नहीं करती है कि उक्त बातचीत आरोपित व्यक्तियों के बीच है तो केवल संदेह पैदा होता है और संदेह कितना भी मजबूत क्यों न हो, सबूत नहीं दे सकता। संदेह कितना भी प्रबल क्यों न हो वह साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकता।

यह भी पढ़ें- Election 2024: पीएम आवास हो सकते हैं गेमचेंजर, छत्तीसगढ़ के 18 लाख गरीबों को लोकसभा चुनाव से पहले घर देने की पहल

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।