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एक किला जहां 1,800 वर्ष से हो रही रेन वाटर हार्वेस्टिंग, बलुआ पत्थर से निर्मित टैंक

वरिष्ठ पुरातत्वविद नारायण व्यास ने बताया कि अवशेषों के मुताबिक रायसेन किला का निर्माण राजा रायसिंह ने तीसरी शताब्दी में कराया था। किला के निर्माण के दौरान ही यहां पर वर्षा जल संग्रहित करने के लिए रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया गया।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Sat, 05 Nov 2022 07:14 PM (IST)
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किला की छत से नालियों के माध्यम से वर्षा जल भूमिगत टैंक में एकत्र होता है। नवदुनिया
रायसेन, जेएनएन। बढ़ते जलसंकट के बीच रेन वाटर हार्वेस्टिंग की सीख लगातार दी जा रही है। इसके बाद भी बड़ी संख्या में लोग वर्षा के जल को व्यर्थ बह जाने देते हैं और गर्मी के मौसम में जलसंकट से जूझते हैं, लेकिन जल संरक्षण का महत्व हमारे पूर्वज करीब दो सदी पूर्व भी जानते थे। इसका प्रमाण मध्य प्रदेश का रायसेन का किला है। 1,800 वर्ष पुराने भवन की छत से वर्षा का जल भूमिगत टैंक में संग्रहित करने की प्रणाली यहां बनाई गई थी जो आज भी काम कर रही है। इसे देश का सबसे प्राचीन रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम माना जाता है। यहां आने वाले सैलानियों व पर्यटकों के लिए पेयजल के रूप में इसी जल का उपयोग किया जाता है।

बलुआ पत्थर से निर्मित टैंक

भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षित रायसेन किले का निर्माण तीसरी शताब्दी में हुआ था। निर्माण कराने वाले राजा रायसिंह ने राजशाही परिवार के लोगों के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था के लिए छत से वर्षा जल संग्रहण प्रणाली बनवाई। इस जल संग्रह प्रणाली के तहत भूमि पर 50 फीट लंबा, 30 फीट चौड़ा और 20 फीट गहरा टैंक बना है। इस टैंक में करीब 30 हजार लीटर वर्षा जल एकत्र किया जा सकता है। किले की छत से वर्षा जल को टैंक तक पहुंचाने के लिए नालियां बनी हैं। छत से लेकर भूमिगत जल संग्रहण टैंक की सतह तक का संपूर्ण निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया है। टैंक से ओवर फ्लो होने पर पानी करीब 500 मीटर दूर बने तालाब में पहुंचता है। यानी अतिरिक्त जल को भी यहां व्यर्थ नहीं जाने दिया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि यह प्राचीन रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अब भी सफलतापूर्वक काम कर रहा है और आधुनिक युग के इंजीनियरों के लिए प्रेरणास्रोत है।

पहाड़ी पर जगह-जगह तालाब

बताया जाता है कि राजा रायसिंह ने करीब 500 फीट ऊंची पहाड़ी पर 10 वर्ग किमी क्षेत्र में अनेक तालाबों का निर्माण कराया था। किले पर चार ताल, 84 तलैया हैं। वर्तमान में मौजूद प्रमुख तालाबों में मोतिया ताल सीढ़ी युक्त 100 फीट लंबा व 80 फीट गहरा है। पेमिया मंदिर के निकट मदागन ताल है जिसमें वर्ष भर पानी रहता है। किले के उत्तरी भाग में मलंगा ताल सूख चुका है। इसके अलावा यहां रानी ताल, कचहरी ताल, डोला-डोली अथवा डूस-डूरी ताल, सागर ताल, गोलवाला ताल हैं।

आजादी से पूर्व तक थी बसाहट

रायसेन किला पर आजादी से पूर्व तक लोगों की बसाहट बनी हुई थी। स्थानीय निवासी व जिला इतिहास संकलन समिति के सदस्य गिरधारी लाल शाक्य बताते हैं कि उनके पूर्वज आजादी से पूर्व तक किले पर बनी बस्ती में निवास करते थे। आजादी के बाद किला भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन हो गया तो वे अपने मकान छोड़कर किले के नीचे आ गए। किले पर करीब दो हजार लोगों की बस्ती थी। जिसके अवशेष अब भी मौजूद हैं।

अनेक आक्रमणकारियों ने किया कब्जा

पुरातत्व विभाग की पट्टिका के अनुसार रायसेन किले पर 11वीं शताब्दी तक परमार वंशीय राजाओं का शासन रहा। परमारों से 1234 में गुलाम वंश के शासक इल्तुतमिश ने छीन लिया था। दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी का 1293 में आधिपत्य रहा। उसके बाद मुहम्मद बिन तुगलक ने किला पर अधिकार किया। 15वीं शताब्दी की शुरुआत में मांडू के सुल्तान सिलहादी का शासन रहा। 1532 में गुजरात के बहादुर शाह का अधिकार हो गया। जब 1543 में राजा पूरणमल का शासन था तब दिल्ली के शासक शेरशाह सूरी ने आक्रमण कर किला पर अधिकार प्राप्त कर लिया। सम्राट अकबर के राजत्वकाल में 1575 में यह किला मुगल साम्राज्य का सूबा बन गया। 18वी शताब्दी में यह किला भोपाल रियासत के अधीन हो गया। फिर आमिर पिंडारी ने कब्जा किया और 1816 में अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया। आजादी के बाद 1951 में इसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित कर दिया है।

लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के पूर्व कार्यपालन यंत्री रामकुमार सिंह ने बताया कि किला पर बना वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अदभुत है। यहां पर वर्षा जल का संग्रहण वर्ष भर शुद्ध व पीने योग्य रहता है। इसका अध्ययन करके इसी तरह का सिस्टम आधुनिक भवनों में बनवाना चाहिए।

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