Ram Mandir: रामनामी संप्रदाय को सवा सौ वर्ष पहले ही पता चल गई थी प्राण प्रतिष्ठा की तिथि, हर साल लगता है मेला; लोग मनाते हैं उत्सव
तन पर राम का नाम गुदवाया मन को उनका मंदिर बनाया और गत सवा सौ वर्षों से महानदी नदी के किनारे उसी तिथि पर राम के भजन गा रहे हैं छत्तीसगढ़ के रामनामी समाज के लोग जिस तिथि में रामलला की अयोध्या धाम में प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। समुदाय के पूर्वजों को रामलला के प्राण प्रतिष्ठा की तिथि सवा सौ वर्ष पहले ही पता चल गई थी।
राज्य ब्यूरो, रायपुर। तन पर राम का नाम गुदवाया, मन को उनका मंदिर बनाया और गत सवा सौ वर्षों से महानदी नदी के किनारे उसी तिथि पर राम के भजन गा रहे हैं, छत्तीसगढ़ के रामनामी समाज के लोग, जिस तिथि में रामलला की अयोध्या धाम में प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। समुदाय से जुड़े लोग दावा करते हैं कि उनके पूर्वजों को रामलला के प्राण प्रतिष्ठा की तिथि सवा सौ वर्ष पहले ही पता चल गई थी।
सवा सौ साल से हो रहा मेले का आयोजन
सवा सौ साल से मेले का आयोजन प्राण-प्रतिष्ठा की तिथि के अनुसार ही किया जा रहा। रामनामी गुलाराम बताते हैं कि उनके पूर्वजों ने कहा था कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा शुक्ल पक्ष एकादशी से त्रयोदशी के बीच होगी। इन्हीं तिथियों के बीच छत्तीसगढ़ में सक्ती जिले के जैजेपुर में रामनामी मेला भरता है।
23 जनवरी को खत्म होगा मेला
तीन दिवसीय रामनामी मेले में आए गुलाराम व समुदाय के अन्य सदस्यों के अनुसार रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जो तिथि आई है, उसी तिथि पर समुदाय का मेला सवा सौ वर्षों से लग रहा है। यह अद्भुत संयोग है। सब रामजी की कृपा है। मेला 23 जनवरी को खत्म होगा। खम्हरिया से रामनामी मेले में पहुंचे मनहरण रामनामी ने बताया कि हर वर्ष इसी तिथि पर मेले का आयोजन होता है। एक वर्ष महानदी के इस पार और एक बार उस पार। 150 वर्ष पहले से हम लोग भजन गाते आए हैं।
ऐसे हुई रामनामी संप्रदाय की शुरुआत
वर्ष-1890 के करीब परशुराम नामक व्यक्ति द्वारा रामनामी संप्रदाय की शुरुआत कई गई, जो भगवान राम की पूजा करता है। अपने पूरे शरीर पर रामनाम गुदवाता है। बताया जाता है कि अछूत कहकर मंदिर में प्रवेश करने से मना करने पर परशुराम ने माथे पर राम-राम गुदवा कर रामनामी संप्रदाय की शुरुआत की।
रामनामी संप्रदाय के कुछ बुजुर्गों का कहना है कि जांजगीर-चांपा जिले के चारपारा गांव में पैदा हुए परशुराम ने मानस का पाठ करना सीखा, 30 की उम्र के होते-होते उन्हें कोई चर्म रोग हो गया। उसी दौरान वह एक रामानंदी साधु रामदेव के संपर्क में आए। रोग ठीक हो गया और उनकी छाती पर राम-राम का गोदना स्वत: उभर आया।
इसके बाद से उन्होंने राम-राम के नाम के जाप को प्रसारित करना शुरू किया। उनके प्रभाव में आकर गांव के कुछ लोगों ने माथे पर राम-राम गुदवा लिया और खेतीबाड़ी के अलावा बचे हुए समय में मंडलियों में राम-राम का भजन करना शुरू कर दिया।