छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में अब गोली नहीं 'गोल', जहां सड़क नहीं, वहां फुटबॉल का शोर
Chhattisgarh छत्तीसगढ़ का अबूझमाड़ क्षेत्र यह साबित करता है कि परिस्थितियां कितनी भी विपरीत हों हुनर अपना रास्ता तलाश ही लेता है। कभी गोलियों के साये में रहा यह क्षेत्र धीरे-धीरे फुटबॉल की नर्सरी के रूप में देश के राष्ट्रीय नक्शे पर उभर रहा है। अबूझमाड़ ने कई प्रतियोगिताओं की सफल मेजबानी कर फुटबॉल मानचित्र पर दमदार दस्तक दी है।
अनिमेष पाल, जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित अबूझमाड़ क्षेत्र में, जहां गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजती थी, अब फुटबॉल का शोर सुनाई देने लगा है। गोली की जगह अब दनादन गोल किए जा रहे हैं। देश भर की टीमें यहां आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने आ रही हैं।
पिछले चार माह में ही अखिल भारतीय फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) की ओर से दो राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की मेजबानी रामकृष्ण मिशन आश्रम नारायणपुर कर चुका है। दुर्गम अबूझमाड़ ने इस तरह से प्रतियोगिताओं की सफल मेजबानी कर अब देश के फुटबॉल मानचित्र पर दमदार दस्तक दी है।
अंडर-20 राष्ट्रीय फुटबॉल चैंपियनशिप की मिली मेजबानी
प्रतियोगिताओं की सफलता से उत्साहित एआईएफएफ ने पुरुषों की अंडर-20 राष्ट्रीय फुटबॉल चैंपियनशिप के अगले दो संस्करण की मेजबानी भी रामकृष्ण मिशन आश्रम को दी है। छत्तीसगढ़ फुटबॉल फेडरेशन के साथ एआईएफएफ का यह समझौता आदिवासी बहुल बस्तर में खिलाड़ियों की नई पौध तैयार करने में सहायक सिद्ध होने वाला है।बता दें कि नारायणपुर जिला मुख्यालय एक छोटा कस्बा है। धीरे-धीरे यह क्षेत्र फुटबॉल की नर्सरी के रूप में देश के राष्ट्रीय नक्शे पर उभर रहा है। इस वर्ष राष्ट्रीय शालेय सुब्रतो कप फुटबॉल स्पर्धा के लिए इसी आश्रम की बालक व बालिका फुटबॉल टीम ने खेलने की पात्रता प्राप्त की है। अकादमी के खिलाड़ी अभिषेक कुंजाम देश के प्रतिष्ठित फुटबॉल क्लब ईस्ट बंगाल से खेल रहे हैं।
फुटबॉल से पहचान बदलने की जिद
रामकृष्ण मिशन फुटबॉल अकादमी (आरकेएम) की टीम अगले माह इंडियन लीग खेलने मिजेारम जा रही है। कप्तान सुरेश ध्रुव अतिसंवेदनशील गांव गट्टाकाल के निवासी हैं। उनके गांव में सड़क, बिजली, पानी की सुविधा अब तक नहीं पहुंची है। नक्सल प्रभावित गांव में ग्रामीणों पर संगठन में सम्मिलित होने का दबाव रहता है।सुरेश ने नक्सल संगठन के स्थान पर रामकृष्ण मिशन अकादमी की राह पकड़ी और अब वे अपनी खेल प्रतिभा के बल पर टीम के कप्तान हैं। सुरेश बस्तर की नक्सलवाद को लेकर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनी पहचान से व्यथित हैं। वे चाहते हैं कि अब फुटबॉल से क्षेत्र की पहचान हो। वे कहते हैं कि राष्ट्रीय प्रतियोगिता के आयोजन ने खिलाडि़यों में जोश भरने का काम किया है। यहां के गांव-गांव में फुटबॉल की दीवानगी दिखाई देने लगी है।
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