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Chhattisgarh Politics: बस्तर की राजनीति में परिवारवाद का रहा है गहरा नाता, कांग्रेस हो BJP कोई पीछे नहीं

Chhattisgarh Politics परिवारवाद की जब भी चर्चा होती है तो उत्तर बस्तर में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम जो अब कांग्रेस छोड़ चुके हैं के बाद मध्य बस्तर में कांग्रेस में सोढ़ी और भाजपा में कश्यप परिवार तथा दक्षिण में कर्मा परिवार का नाम सबसे पहले आता है। इनमें पूर्व मंत्री मानकूराम सोढ़ी और अरविंद नेताम के परिवार राजनीति में पराभाव की स्थिति में आ चुका है।

By Mrigendra PandeyEdited By: Mohammad SameerUpdated: Mon, 28 Aug 2023 07:00 AM (IST)
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बस्तर की राजनीति में परिवारवाद का रहा है गहरा नाता
विनोद सिंह, जगदलपुर: देश की राजनीति में परिवारवाद हमेशा से सुर्खियों में रहा है और आज भी यह चर्चा का विषय बना हुआ है। बस्तर इससे अछूता नहीं हैं। भौगाेलिक क्षेत्रफल में केरल राज्य से भी बड़े बस्तर संभाग में विधानसभा की 12 और लोकसभा की दो सीटें कांकेर और बस्तर हैं।

बस्तर में उत्तर से दक्षिण तक परिवारवाद की राजनीति चलती रही है। कांग्रेस और भाजपा दोनों दल इससे अलग नहीं हैं। परिवारवाद की शुरूआत 1972 में कांकेर क्षेत्र से शुरू हुई और 1990 आते-आते दक्षिण तक इसका प्रभाव फैल गया।

परिवारवाद की जब भी चर्चा होती है तो उत्तर बस्तर में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम जो अब कांग्रेस छोड़ चुके हैं, के बाद मध्य बस्तर में कांग्रेस में सोढ़ी और भाजपा में कश्यप परिवार तथा दक्षिण में कर्मा परिवार का नाम सबसे पहले आता है। इनमें पूर्व मंत्री मानकूराम सोढ़ी और अरविंद नेताम के परिवार राजनीति में पराभाव की स्थिति में आ चुका है।

दूसरी ओर पूर्व मंत्री स्वर्गीय महेन्द्र कर्मा और पूर्व मंत्री एवं सांसद स्वर्गीय बलीराम कश्यप का परिवार राजनीति रसूख बनाए आखिरी किला लड़ा रहे हैं।

आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव राजनीति में सक्रिय इन परिवारों के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होने वाला है। कर्मा परिवार की कमान विधायक देवती कर्मा और कश्यप परिवार की राजनीतिक कमान पूर्व मंत्री व भाजपा के प्रदेश महामंत्री केदार कश्यप के हाथ में हैं। विधानसभा चुनाव के लिए कर्मा, सोढ़ी, कश्यप और नेताम परिवार से कम से कम दो-दो सदस्यों की दावेदारी सामने आई है।

कश्यप परिवार की राजनीतिक साख दांव पर

बस्तर में भाजपा के बड़े नेता रहे स्वर्गीय बलीराम कश्यप का राजनीति में सार्वजनिक जीवनकाल चार दशक का रहा था। अविभाजित मध्यप्रदेश मेंं वे विधायक, मंत्री, सांसद और छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद भी सांसद चुने गए। एक समय ऐसा आया जब बलीराम कश्यप भानपुरी सीट और उनके ज्येष्ठ पुत्र दिनेश कश्यप जगदलपुर दोनों 1990 में एक साथ विधायक थे। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद बलीराम कश्यप सांसद थे।

उसी दौर में उनके तीसरे नंबर के पुत्र केदार कश्यप 2003 में विधायक चुने गए और मंत्री भी बने। इसके बाद वे लगातार 15 साल भाजपा सरकार में मंत्री रहे। इसी दौरान 2011 में बलीराम कश्यप के निधन के बाद हुए उपचुनाव में दिनेश कश्यप सांसद चुने गए। इस परिवार से एक भाई स्वर्गीय चंद्रशेखर कश्यप जिला पंचायत अध्यक्ष रहे थे।

वर्तमान में दिनेश कश्यप की पत्नी वेदवती कश्यप जिला पंचायत बस्तर की अध्यक्ष है। 2018 में केदार कश्यप विधायक का चुनाव हार गए और 2019 के लोकसभा चुनाव में दिनेश कश्यप का पार्टी ने टिकट काट दिया। इस बार केदार कश्यप और दिनेश कश्यप विधानसभा और लोकसभा चुनाव में टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं।

कर्मा परिवार से मां बेटे की दावेदारी

दंतेवाड़ा में स्वर्गीय महेन्द्र कर्मा की पत्नी विधायक देवती कर्मा और उनके पुत्र छविन्द्र कर्मा ने टिकट की दावेदारी की है। 2018 के चुनाव में भी दोनों ने टिकट के लिए दावेदारी की थी बाद में देवती कर्मा को चुनाव लड़ाया गया, लेकिन वे भाजपा के भीमा मंडावी से चुनाव हार गई थी।

इसके कुछ माह बाद भीमा मंडावी की नक्सलियों द्वारा हत्या कर दी गई, जिसके बाद हुए उपचुनाव में देवती कर्मा विधायक बनी थी। स्वर्गीय महेन्द्र कर्मा सांसद, विधायक और मंत्री रहे थे और उनका कांग्रेस की राजनीति में काफी दबदबा था। इस परिवार से स्वर्गीय लक्ष्मण कर्मा भी सांसद रहे थे।

महेन्द्र कर्मा के एक पुत्र स्वर्गीय दीपक कर्मा नगर पंचायत दंतेवाड़ा के अध्यक्ष थे। वर्तमान में देवती कर्मा विधायक, उनकी पुत्री तुलिका कर्मा जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। इस परिवार के आधा दर्जन सदस्य पंचायत और नगरीय निकाय से लेकर अन्य संस्थानाें में पदों में हैं और कांग्रेस संगठन में भी सक्रिय हैं।

सोढ़ी परिवार के लिए आखिरी अवसर

बस्तर की राजनीति में कांग्रेस के अब तक के सबसे बड़े योद्धा रहे स्वगीय मानकूराम सोढ़ी की एक समय में बस्तर से लेकर दिल्ली तक तूती बोलती थी। 1962 में मानकूराम सोढ़ी पहली बार विधायक बने थे। वे चार दशक के राजनीतिक जीवन में विधायक, मंत्री, सांसद रहे थे।

उनके पुत्र शंकर सोढ़ी 1993 में काेंडागांव सीट से विधायक चुने गए उस समय पिता मानकूराम सोढ़ी सांसद थे। दो बार विधायक रहकर शंकर सोढ़ी 2003 में चुनाव हारे तो फिर इसके बाद उबर नहीं पाए। पार्टी ने इसके बाद भी उन्हें एक बार लोकसभा चुनाव लड़ाया पर जीत नसीब नहीं हुई।

आगामी विधानसभा चुनाव के लिए शंकर सोढ़ी ने कोंडागांव और छोटे भाई धरम सोढ़ी ने जगदलपुर से टिकट की मांग की है। राजनीति के जानकार इसे सोढ़ी परिवार के लिए आखिरी अवसर बता रहे हैं।

नेताम परिवार का दबदबा खत्म हुआ

किसी समय बस्तर से अरविंद नेताम कांग्रेस के बड़े नेता थे। 1972 में उनके पिता स्वर्गीय विश्राम ठाकुर कांकेर से विधायक और अरविंद नेताम इसी सीट से सांसद बने थे। 1995 में अरविंद नेताम केंद्र सरकार में कृषि राज्य मंत्री बने तब उनके छोटे भाई शिव नेताम मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री थे।

अरविंद नेताम की पत्नी छबीला नेताम भी सांसद रह चुकी हैं। परिवार की बेटी डा प्रीति नेताम भी विधानसभा का चुनाव लड़ी थी, पर जीत नहीं पाई। अरविंद नेताम बार-बार पार्टी बदलते चले गए और इसके साथ ही साथ इस परिवार का राजनीति प्रभाव की कम होता चला गया। आज नेताम कांग्रेस छोड़ चुके हैं। उनके भाई शिव नेताम ने कांकेर सीट से टिकट के लिए दावेदारी की है।

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