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Chhattisgarh: 'कांग्रेस का सफाया किए बिना नक्सलियों का अंत नहीं', CM साय ने पार्टी में ढूंढा नक्सल मुक्ति का सूत्र

चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कांग्रेस और नक्सलियों के बीच भ्रष्टाचार कनेक्शन की आशंका जता रहे हैं। बात को और आगे बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने दावा कर दिया है कि जब तक कांग्रेस का सफाया नहीं होता तब तक नक्सलवाद का अंत नहीं हो सकता। दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज आरोपों को चुनावी करार देते हैं।

By Jagran News Edited By: Siddharth Chaurasiya Updated: Thu, 25 Apr 2024 11:45 PM (IST)
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भाजपा के शीर्ष नेता घोषणा कर रहे हैं कि कांग्रेस के कारण ही नक्सली हैं।
सतीश चंद्र श्रीवास्तव, जागरण, रायपुर। भाजपा के शीर्ष नेता घोषणा कर रहे हैं कि कांग्रेस के कारण ही नक्सली हैं। छत्तीसगढ़ में 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी यह बड़ा मुद्दा था। अब प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद पिछले चार महीनों में स्थिति बदली है। प्रदेश और केंद्र सरकारों में तालमेल से प्रभावशाली कार्रवाइयों के कारण यह सीधे तौर पर नक्सलवाद का दंश झेलने वाले सात राज्यों की जनभावना को छूने वाला मुद्दा बन चुका है। इसी के साथ भाजपा के लिए बड़ा हथियार भी बन गया है।

चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कांग्रेस और नक्सलियों के बीच भ्रष्टाचार कनेक्शन की आशंका जता रहे हैं। बात को और आगे बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने दावा कर दिया है कि जब तक कांग्रेस का सफाया नहीं होता, तब तक नक्सलवाद का अंत नहीं हो सकता। दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज आरोपों को चुनावी करार देते हैं। वह मानते हैं कि महंगाई, बेरोजगारी और इलेक्ट्राल बांड जैसे भ्रष्टाचार से मतदाताओं का ध्यान भटकाने के लिए भाजपा नेताओं को ऐसे आरोप लगाने पड़ रहे हैं।

इधर, नक्सलियों के मारे जाने का आंकड़ा कुछ और कहानी कह रहा है।राज्य गठन के बाद वर्ष 2001 से अबतक नागरिकों व जवानों के बलिदान और नक्सलियों के मारे जाने का अनुपात 3:1 रहा। इस अवधि में 3,000 से अधिक नागरिक और जवान नक्सल हिंसा में बलिदान हो चुके हैं। बदले में मारे गए नक्सलियों की संख्या मात्र 1,180 है।

वर्ष 2024 में आंकड़ा एकदम उलट है। शुरुआती चार महीने में एक नागरिक या जवान बलिदान हुआ तो तीन नक्सली मारे गए। इस अवधि में 18 नागरिकों और आठ जवानों के बलिदान का बदला 80 नक्सलियों को मौत का घाट उतारकर लिया गया है। नक्सल प्रभावित रहे पड़ोसी राज्यों, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश की जनता के बीच भी यह राहत भरा संदेश दे रहा है। संदेश तो नक्सल प्रभावित रहे बिहार और कम्युनिस्ट प्रभावित बंगाल और केरल के मतदाताओं के लिए भी है।

दूसरे चरण के लिए 26 अप्रैल को प्रस्तावित मतदान की चुनावी रैलियों के साथ ही भाजपा के केंद्रीय नेताओं ने सात मई को प्रस्तावित तीसरे चरण के लिए छत्तीसगढ़ में प्रचार भी शुरू कर दिया है। एक दिन में दो-दो रैलियां कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लगातार दौरे भाजपा को चुनावी प्रचार में बढ़त दिला रहे हैं। इसके मुकाबले कांग्रेस से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की एक-एक रैलियां ही हो सकी हैं।

वर्षवार आंकड़ा

इधर, नक्सलियों के विरुद्ध कार्रवाई का वर्षवार आंकड़ा भी गौर करने योग्य है। वर्ष 2018 में भाजपा कार्यकाल में 112 नक्सली मारे गए तो कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद वर्ष 2019 में 65, 2020 में 40, 2021 में 51, 2022 में 30 और 2023 में 20 नक्सली ही मारे गए। भाजपा नेता इसे ही आधार बनाकर कांग्रेसियों और नक्सलियों के बीच समझौते के तौर पर उछाल रहे हैं।

2024 के सिर्फ चार महीने में 80 नक्सलियों के सफाए और 200 से अधिक नक्सलियों के समर्पण या गिरफ्तारी से भाजपा के दावों को दम मिल रहा है। दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला दावा करते है कि भाजपा नेताओं का मंत्री और राजनेता के रूप में चरित्र एकदम विपरीत है। वर्ष 2023 में राज्य में नक्सली हिंसा में 80 प्रतिशत तक कमी के दावे करते रहे केंद्रीय मंत्री अब चुनावी रैलियों में जनता का ध्यान भटकाने के लिए भ्रष्टाचार कनेक्शन ढूंढ रहे हैं।

इधर, प्रदेश भाजपा महासचिव संजय श्रीवास्तव पार्टी के दावों को मजबूती देने के लिए कहते हैं कि इस वर्ष नक्सली हिंसा में बलिदान आम नागरिकों में आठ भाजपा के कार्यकर्ता और पदाधिकारी हैं। दूसरी तरफ बस्तर के प्रत्याशी कवासी लखमा नक्सलियों के साथ संबंधों के कारण चर्चा में हैं और आरोप लगता रहा है कि झीरम कांड की रिपोर्ट कांग्रेस नेताओं की भूमिका सामने आने के कारण ही सार्वजनिक नहीं की गई।

यह 2013 का वही झीरम कांड है जिसमें कांग्रेस ने तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और शीर्ष नेता विद्याचरण शुक्ल सहित 33 नेताओं को खो दिया था। प्रदेश भाजपा के नेता उक्त घटना को भी कांग्रेस में कलह का परिणाम बताते हैं।

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