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बाल दिवस पर विशेष: जानें बस्‍तर के मोगली की कहानी जिसे चाचा नेहरू ने दिया था पढ़ने का मौका, रोचक है किस्‍सा

चेंदरू को किस्‍मत ने एक नहीं बल्कि कई बार मौका दिया लेकिन फिर भी बात नहीं बनी। चेंदरू पर फिल्‍म भी बनी थी। फिल्‍म में चेंदरू के अभिनय को देखकर जवाहर लाल नेहरू उसके प्रशंसक बन गए थे। उन्‍होंने चेंदरू को पढ़ने का मौका भी दिया था।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenPublished: Mon, 14 Nov 2022 02:27 PM (IST)Updated: Mon, 14 Nov 2022 05:12 PM (IST)
चेंदरू और चाचा नेहरू के बीच का अनोखा किस्‍सा

रायपुर, जागरण आनलाइन डेस्‍क। छत्‍तीसगढ़ के बस्‍तर जिले का चेंदरू (Chendru) 60 के दशक में काफी मशहूर था। स्‍थानीय लोग उसे मोगली के नाम से जानते थे, जबकि दुनिया के सामने वह द टायगर बॉय (The Tiger Boy) के नाम से मशहूर था। वजह एक बाघ से उसकी दोस्‍ती थी। चेंदरू को बाघ का तोहफा बांस की टोकरी में रखकर एक दोस्‍त ने दिया था और धीरे-धीरे दोनों की दोस्‍ती के किस्‍से गांव से लेकर दुनिया में फैलने लगी।

चेंदरू और टेंबू की दोस्‍ती

चेंदरू की बाघ से दोस्‍ती का यह किस्‍सा इतना रोचक था कि उस समय स्वीडन के मशहूर फिल्मकार अर्न सक्सडोर्फ (Arne Saxdorf)  सीधा बस्तर (Bastar) आ पहुंचे और उन्‍होंने चेंदरू और बाघ पर द फ्लूट एंड द एरो (The flute and the arrow) के नाम से एक फिल्‍म बनाई।

भारत में फिल्‍म को एन द जंगल सागा (En the jungle saga) का नाम दिया गया। इस फिल्‍म ने अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर खूब सुर्खियां बटोरीं, लेकिन चेंदरू की किस्‍मत अच्‍छी होते हुए भी वह सब कुछ हासिल कर पाने में चूक गया।

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स्‍वीडन का नागरिक होते-होते रह गया चेंदरू

चेंदरू को किस्‍मत ने मौका तो दिया, लेकिन इन मौकों का सदुपयोग न हो पाया। सबसे पहले चेंदरू और उसके बाघ टेंबू को लेकर आठ भाषाओं में फिल्म बनाने वाले अर्न सक्सडार्फ और उनकी पत्नी एस्ट्रीज सक्सडार्फ ने चेंदरु को गोद लेने का निश्चय किया, लेकिन दादा बंडा और पिता जुगनू ने इस पर अपनी सहमत‍ि नहीं दी।

चाचा नेहरू ने दिया था पढ़ने का मौका

वहीं, फिल्‍म में चेंदरू के अभिनय और उसके किस्‍से से मंत्रमुग्‍ध होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawahar Lal Nehru) ने चेंदरू को दिल्ली में रख पढ़ाई का पूरा खर्च उठाने का वचन दिया, लेकिन फिल्‍म के सिलसिले में दो साल बाद वर्ष 1958 में स्वीडन से भारत लौटे चेंदरू को उनके पिता जुगनू ने पढ़ाने से साफ इंकार कर दिया।

चेंदरू ने जताया था सब कुछ पाकर भी खोने का अफसोस

इस तरह सुनहरे भविष्य की तरफ बढ़ रहे चेंदरू के पांव एकाएक अभावों से भरी जिंदगी की तरफ मुड़ गए और इन्‍हीं परिस्थितियों में ही वह इस दुनिया से विदा हो गया।

बाद में समय-समय पर जब गांव में पत्रकारों संग चेंदरू की मुलाकात होती रही, तो उसने कई दफा माना कि पिता और दादा के लिए गलत फैसले के कारण ही वह अनपढ़ रह गया।

चेंदरू को अफसोस था कि उसकी जिंदगी बेहतरी की दिशा में बदलते-बदलते रह गई। अगर सब कुछ ठीक होता, तो बात ही कुछ और होती। मालूम हो कि 18 सितंबर, 2013 को चेंदरू का 78 साल की आयु में निधन हो गया।

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