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Live-In Relation: भारतीय संस्कृति के लिए लिव-इन रिलेशनशिप एक कलंक, हाई कोर्ट ने आखिर क्यों की ऐसी सख्त टिप्पणी?

लिव-इन रिलेशनशिप पाश्चात्य सभ्यता है और भारतीय सिद्धांतों की अपेक्षाओं के विपरीत है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी से जुड़े हुए एक मामले को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। साथ ही कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को एक कलंक बताया है। खंडपीठ ने 36 वर्षीय महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चे की कस्टडी की मांग करने वाले याचिकाकर्ता की अपील को खारिज कर दिया।

By Agency Edited By: Anurag GuptaUpdated: Wed, 08 May 2024 06:34 PM (IST)
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भारतीय संस्कृति के लिए लिव-इन रिलेशनशिप एक कलंक (फाइल फोटो)
पीटीआई, बिलासपुर। लिव-इन रिलेशनशिप पाश्चात्य सभ्यता है और भारतीय सिद्धांतों की अपेक्षाओं के विपरीत है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी से जुड़े हुए एक मामले को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। साथ ही कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को एक कलंक बताया है।

न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी और न्यायमूर्ति संजय एस अग्रवाल की खंडपीठ ने समाज के कुछ संप्रदायों में अपनाया जाने वाला लिव-इन रिलेशनशिप अभी भी भारतीय संस्कृति में एक कलंक है, क्योंकि यह भारतीय सिद्धांत की अपेक्षाओं के विपरीत एक पाश्चात्य सभ्यता है।

खाचिकाकर्ता ने क्या कुछ कहा?

खंडपीठ ने 30 अप्रैल को 36 वर्षीय महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चे की कस्टडी की मांग करने वाले याचिकाकर्ता की अपील को खारिज कर दिया। दंतेवाड़ा जिले के अब्दुल हमीद सिद्दीकी ने अपनी याचिका में कहा कि वह एक अलग धर्म की महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में था और उसने एक बच्चे को जन्म दिया। याचिकाकर्ता ने कहा,

पिछले साल दिसंबर में दंतेवाड़ा की एक अदालत ने बच्चे की कस्टडी से जुड़ी उनकी याचिका को खारिज कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने बिलासपुर जिले में स्थित हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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हाई कोर्ट के आदेशानुसार, अब्दुल हमीद सिद्दीकी ने अपनी याचिका में कहा कि वह 2021 में मतांतरण के बिना शादी से पहले तीन साल तक महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में था। बकौल याचिका, 31 अगस्त, 2021 को उनके रिश्ते से एक बच्चे का जन्म हुआ और 10 अगस्त, 2023 को महिला और बच्चा गायब हो गया। उसी साल उन्होंने हेबियस कॉर्पस पिटीशन दाखिल कर महिला को हाई कोर्ट के समक्ष पेश किए जाने की मांग की।

महिला ने क्या कुछ कहा था?

महिला ने हाई कोर्ट को बताया था कि वह अपनी इच्छानुसार, अपने माता-पिता के साथ रह रही है। बाद में दंतेवाड़ा परिवार अदालत की ओर से बच्चे की कस्टडी नहीं दिए जाने के बाद अब्दुल हमीद सिद्दीकी ने हाई कोर्ट का रुख किया था।

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