Chhattisgarh: सुकमा में नक्सलियों ने 10 दिन तक बंधक बनाने के बाद 13 लोगों को किया रिहा, दो को फांसी पर लटकाया
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में नक्सलियों ने छात्रों समेत 13 लोगों को 10 दिन तक बंधक बनाए रखा। उन्होंने 28 जून को जन अदालत लगाकर दो लोगों को फांसी पर लटका दिया था। वहीं अगले दिन 13 लोगों को छोड़ दिया। सुकमा के एक गांव से 19 जून को नक्सलियों ने पांच छात्रों सहित 15 लोगों को अगवा कर लिया था।
रायपुर, जेएनएन। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले से नक्सलियों ने दस दिन पूर्व अगवा किए गए पांच छात्रों सहित 15 ग्रामीणों में से 13 को गुरुवार को रिहा कर दिया है, जबकि दो ग्रामीणों को सार्वजनिक तौर पर फांसी देकर इसलिए मौत के घाट उतार दिया, क्योंकि वे ग्रामीणों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का काम कर रहे थे।
19 जून को नक्सलियों ने किया अगवा
बता दें कि ताड़मेटला गांव वर्ष 2010 में तब चर्चा में आया था, जब यहां सीआरपीएफ के 76 जवान बलिदान हो गए थे। सुकमा जिले के ताड़मेटला और आसपास के कुछ गावों के 15 लोगों को 19 जून को नक्सलियों ने अगवा कर लिया था। अपहृत लोगों में ताड़मेटला के उप सरपंच माड़वी गंगा और शिक्षादूत कवासी सुक्का भी शामिल थे।
ग्रामीणों के साथ-साथ सामाजिक और राजनीतिक संगठन अपहृतों की रिहाई के लिए लगातार प्रयास कर रहे थे। इसी बीच 28 जून को नक्सलियों ने अति दुर्गम मोरपल्ली के जंगल में जन अदालत लगाई, जहां उप सरपंच और शिक्षादूत पर पुलिस का मुखबिर होने का आरोप लगाते हुए सैकड़ों ग्रामीणों के सामने फांसी पर लटका दिया।
कुछ नहीं बता रहे लोग
पुलिस का कहना है कि उपसरपंच माड़वी गंगा क्षेत्र के ग्रामीणों को आधार कार्ड, राशन कार्ड व अन्य सरकारी सुविधाएं दिलाने के लिए निरंतर प्रयासरत थे। इसी तरह कवासी सुक्का द्वारा गांव के बच्चों को पढ़ाए जाने से नक्सलियों को डर था कि पढ़लिखकर समझदार होने पर बच्चे उनकी बात नहीं मानेंगे। इसी कारण दोनों को मार डाला गया।
अगवा किए गए अन्य पांच छात्रों सहित 13 ग्रामीणों को छोड़ दिया गया है। पुलिस का कहना है कि ग्रामीण इतने डरे हुए हैं कि मृतकों के स्वजन को दिलासा देने भी कोई सामने नहीं आया।
पहले भी ले गए थे, पर छोड़ दिया था
उप सरपंच माड़वी गंगा और शिक्षादूत कवासी सुक्का को दो वर्ष पूर्व भी नक्सली अगवा कर ले गए थे। मगर बाद में छोड़ दिया था। 19 जून को नक्सली ताड़मेटला पहुंचे और ग्रामीणों की बैठक ली। इसके बाद 15 लोगों को साथ चलने को कहा। वे अपहृतों को एक सप्ताह तक जंगल में घूमाते रहे।
ग्रामीण वापसी के लिए आश्वस्त थे। इसलिए पुलिस को सूचना भी नहीं दी। बुधवार को जनअदालत लगने के बाद बात पुलिस तक पहुंची, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।