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Raipur News: छत्तीसगढ़ की राजनीति के अजातशत्रु सूर्यकांत तिवारी को जान का खतरा

Raipur News सूर्यकांत की चाहत तो यही थी कि अदालत के आदेश पर न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाए परंतु ईडी के अधिवक्ताओं ने तार्किक तौर पर स्थापित कर दिया कि ईडी की जांच और कार्रवाई में आत्मसमर्पण का प्रविधान ही नहीं है।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Mon, 31 Oct 2022 03:15 PM (IST)
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अदालत से रिमांड मिलने के बाद सूर्यकांत (नीली पोशाक में) को साथ ले जाते ईडी के अधिकारी। फाइल

सतीश चंद्र श्रीवास्तव। प्रदेश के राजनीतिक गलियारे में सूर्य की तरह प्रभाव का विस्तार करने वाले सूर्यकांत तिवारी 500 करोड़ रुपये के कोयला परिवहन घोटाले में अब ईडी की गिरफ्त में हैं। आइएएस अधिकारी समीर बिश्नोई, कोयला कारोबारी सुनील अग्रवाल और अपने चाचा लक्ष्मीकांत तिवारी की गिरफ्तारी के बाद ईडी की कार्रवाई की जद में आने वाले वह चौथे आरोपित हैं। शुक्रवार को नाटकीय तरीके से आत्मसमर्पण करने पहुंचे सूर्यकांत ने ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) से थर्ड डिग्री बर्ताव की आशंका जताई तो अदालत से बाहर निकलते हुए मीडिया के समक्ष जान को खतरे में बताया है।

खतरा किससे है, यह बार-बार पूछे जाने पर भी उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया। इस तरह छत्तीसगढ़ की राजनीति के अजातशत्रु कहे जाने वाले सूर्यकांत से अगले 12 दिनों तक भले ही ईडी पूछताछ कर रही होगी, परंतु प्रदेश की राजनीति में बार-बार यही सवाल उछलता रहेगा कि सूर्यकांत को आखिर किससे जान का खतरा है। चर्चा और आकलन का दायरा काफी बड़ा है। खतरा जांच एजेंसियों से है, विपक्षी दलों से है, सत्ता पक्ष से है, कारोबारी प्रतिद्वंद्वियों से है या फिर उन लोगों से है जिनका कच्चा चिट्ठा सूर्यकांत के पास सुरक्षित है और पूछताछ के बाद उन लोगों की पोल भी खुल जाएगी।

राजनीतिक गलियारे

युवा कांग्रेस से राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले 49 वर्षीय सूर्यकांत भले ही स्वयं को बार-बार विशुद्ध कारोबारी बताते रहे हों, परंतु वर्ष 2000 में प्रदेश गठन के समय से ही सत्ता से नजदीकी साधने में सफल रहे। कांग्रेस विधायक अग्नि चंद्राकर की बेटी से प्रेम विवाह ने राजनीतिक गलियारे में उन्हें प्रभाव विस्तार का अवसर दिया। सूर्यकांत में पिछली सदी के नौवें दशक के हिंदी फिल्मों के चाकलेटी हीरो कुमार गौरव की याद दिला देने वाली खूबसूरती भी है। विद्याचरण शुक्ल के इस समर्पित कार्यकर्ता ने उनके ही धुर विरोधी अजीत जोगी और उनके पुत्र अमित जोगी के विश्वासपात्र के रूप में कारोबारी जीवन को आगे बढ़ाया। भारतीय जनता पार्टी के डा. रमन सिंह के 15 वर्षों के शासन काल में भी वह सत्ता से काफी नजदीकी स्थापित करने में कामयाब रहे। वर्तमान में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार से नजदीकी के कारण चर्चा के केंद्र में हैं।

जुलाई 2022 में आयकर छापे के साथ भ्रष्टाचार के मामलों में फंसने की प्रक्रिया शुरू होने पर सूर्यकांत घोषित कर चुके हैं कि अगर उन्हें सजा हुई तो वह ऐसे राज खोलेंगे कि जेल में उनकी बगल वाले बैरक में डा. रमन सिंह भी होंगे। उन्होंने आयकर अधिकारियों पर मुख्यमंत्री आवास से जुड़े अधिकारी का नाम लेने के लिए धमकाने और छत्तीसगढ़ का एकनाश शिंदे बनकर राज्य में सत्ता पलट के लिए लालच देने का भी आरोप लगाया था। भाजपा और कांग्रेस की तरफ से एक-दूसरे के नेताओं के साथ फोटो जारी कर सूर्यकांत के रिश्तों से प्रदेश की आम जनता को परिचित कराया गया।

सत्ता व्यवस्था पर नियंत्रण और नजदीकी के आरोपों के दौर में बृहस्पति सिंह द्वारा प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव से जान को खतरा बताए जाने के प्रकरण में भी इनका ही नाम आया। ऐसा माना जा रहा है कि सूर्यकांत के खिलाफ राजनीतिक गलियारे में चर्चा में रहे आरोपों की लंबी सूची को सत्यापित और स्थापित करने की जिम्मेदारी पूरी करने के लिए ही ईडी ने जाल बिछाया है। आत्मसमर्पण करने शुक्रवार को अदालत पहुंचे सूर्यकांत को ईडी के अधिवक्ताओं ने शुरुआती झटके देने के बाद गिरफ्तारी की औपचारिकता निभाकर 12 दिनों के लिए रिमांड पर ले लिया है। दरअसल सूर्यकांत की चाहत तो यही थी कि अदालत के आदेश पर न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाए, परंतु ईडी के अधिवक्ताओं ने तार्किक तौर पर स्थापित कर दिया कि ईडी की जांच और कार्रवाई में आत्मसमर्पण का प्रविधान ही नहीं है।

बिश्नोई का निलंबन लंबित

सेवाशर्तों से जुड़े प्रविधान के अनुसार किसी भी अधिकारी को गिरफ्तार होने पर 48 घंटे के अंदर निलंबित कर दिया जाता है। ईडी जांच में छत्तीसगढ़ इन्फोटेक प्रमोशन सोसायटी (चिप्स) के डायरेक्टर रहते हुए गिरफ्तार बिश्नोई का नाम कोयला परिवहन घोटाले के सूत्रधार के रूप में सामने आया है। ईडी की रिमांड पूरी होने के बाद वह फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं, परंतु राज्य सरकार की तरफ से अधिकारियों का तर्क है कि ईडी द्वारा सूचित नहीं किए जाने के कारण उन्हें निलंबित नहीं किया गया है।

हालांकि ईडी का इस संबंध में यह कहना है कि वह कभी भी निलंबित करने के लिए सरकार को सूचित नहीं करती है। बाकी सारी कार्रवाई सरकार की जानकारी में है। इस तरह विधानसभा चुनाव के पहले केंद्र और राज्य के बीच संग्राम शुरू हो चुका है। भ्रष्टचार कितना बड़ा मुद्दा है, इस पर अंतिम परिणाम लगभग एक वर्ष बाद जनता ही सुनाएगी।

[संपादकीय प्रभारी, रायपुर]

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