छत्तीसगढ़ की देवी चंडी की महिमा है अपरंपार, 15 साल से मां के दर्शनों के लिए आता है भालुओं का परिवार
छत्तीसगढ़ के सुरम्य पर्वत की चोटी पर स्थित देवी चंडी (घुंचपाली) के भव्य मंदिर में पिछले 15 सालों से भालू का परिवार मां के दर्शन के लिए आता है। भक्त उन्हें प्रसाद खिलाते हैं फोटो खिंचवाते हैं। भालुओं की अठखेलियां देखने के लिए माता का ये मंदिर काफी प्रसिद्ध है।
By Jagranv NewsEdited By: Babita KashyapUpdated: Fri, 30 Sep 2022 01:11 PM (IST)
रायपुर, जागरण आनलाइन डेस्क। Navratri 2022: छत्तीसगढ़ की देवी चंडी (घुंचपाली) की महिमा अपरंपार है। शहर, राज्य के अलावा अन्य दूरदराज के इलाकों से भी श्रद्धालु साल भर मां के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। शहर से पांच किमी की दूरी पर सुरम्य पर्वत की चोटी पर मां चंडी का भव्य मंदिर है। लोग यहां भालू को देखने भी आते हैं। भालुओं का परिवार साल भर हर शाम पूजा के समय यहां पहुंचता है।
भक्त उन्हें प्रसाद खिलाते हैं, फोटो खिंचवाते हैं। भालुओं की अठखेलियां देखने के लिए माता का ये मंदिर काफी प्रसिद्ध है। भालू का परिवार करीब 15 साल से यहां नियमित रूप से आता है। अभी तक भक्तों को इनसे अब तक कोई नुकसान नहीं हुआ है। मंदिर के लिए लोग बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन से सीधे पैदल, ऑटो और अन्य वाहनों से घुंचपाली मंदिर पहुंच सकते हैं।
200 साल पुराना है मंदिर का इतिहास
छत्तीसगढ़ के मां चंडी घुंचपाली मंदिर ट्रस्ट के सचिव दानवीर शर्मा, पुजारी टिकेश्वर प्रसाद तिवारी, आचार्य स्वामी चैतन्य अग्निशिखा से मिली जानकारी के अनुसार मंदिर के इतिहास का अभी पता नहीं चला है। यह मंदिर दो सौ साल से भी ज्यादा पुराना है।पहले यहां जमींदार पूजा करने आते थे। तब यह तंत्र ध्यान का केंद्र हुआ करता था। महिलाएं पुरुषों के साथ माता के मंदिर में पूजा करने आती थीं, लेकिन तब महिलाओं को यहां प्रसाद खाने की मनाही थी। हालांकि अब महिलाएं भी प्रसाद ग्रहण करती हैं।
यहां मनोकामनाएं जोत जलाई जाती है
1964-65 में थानेदार महाराज सिंह ने पहाड़ी पर मंदिर में पत्थर की व्यवस्था करवाई ताकि श्रद्धालु बैठ सकें। यहां मनोकामनाएं जोत जलाई जाती है, इस नवरात्र में यहां 6371 जोतें प्रज्वलित हो रही हैं।
1993: स्वामी चैतन्य अग्निशिखा महाराज के मार्गदर्शन में यहां एक समिति का गठन किया गया और मंदिर को बेहतर रूप देने का काम शुरू हुआ। क्षेत्र के शहरी और ग्रामीण इलाकों के लोग मां में आस्था रखते हैं और शुभ कार्य शुरू करने के लिए मां चंडी के दरबार में पहुंचते हैं।
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