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'80 साल जी गया तो'...पार्किंसन रोग से ग्रस्त हैं Allan Border, खुद पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ने किया खुलासा

एलन बार्डर ने कहा मैं सीधे न्यूरोसर्जन के पास गया और उन्होंने मुझे बताया कि मैं पार्किंसन रोग से ग्रस्त हूं। मैं नहीं चाहता था कि लोग मेरे लिए खेद महसूस करें। लोग परवाह करते हैं या नहीं आप नहीं जानते लेकिन मुझे पता है कि एक दिन ऐसा आएगा जब लोग नोटिस करेंगे। मुझे लग रहा है कि मैं अन्य लोगों से काफी बेहतर हूं।

By Jagran NewsEdited By: Umesh KumarUpdated: Sat, 01 Jul 2023 07:00 AM (IST)
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पार्किंसन रोग से ग्रस्त हैं एलन बार्डर। फोटो- ईएसपीएन
नई दिल्ली, स्पोर्ट्स डेस्क। पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान एलन बॉर्डर ने रहस्योद्घाटन करते हुए बताया कि वह पार्किंसन रोग से ग्रस्त हैं। उन्होंने साथ ही कहा कि अगर वह 80 वर्ष की उम्र तक जीवित रहते हैं तो यह एक चमत्कार होगा। उन्होंने बताया कि उन्हें इस बीमारी का पता 2016 में ही चल गया था।

एलन बॉर्डर ने कहा, 'मैं सीधे न्यूरोसर्जन के पास गया और उन्होंने मुझे बताया कि मैं पार्किंसन रोग से ग्रस्त हूं। मैं नहीं चाहता था कि लोग मेरे लिए खेद महसूस करें। लोग परवाह करते हैं या नहीं, आप नहीं जानते, लेकिन मुझे पता है कि एक दिन ऐसा आएगा जब लोग नोटिस करेंगे। मुझे लग रहा है कि मैं अन्य लोगों से काफी बेहतर हूं। फिलहाल मैं डरा हुआ नहीं हूं, निकट भविष्य को लेकर भी नहीं। मैं अभी 68 वर्ष का हूं और अगर मैं 80 साल का हो गया तो यह एक चमत्कार होगा।'

'80 साल जी गया तो होगा चमत्कार'

जुलाई में 68 साल के होने वाले एलन बॉर्डर को 2016 में पार्किंसन का पता चला था। उन्होंने न्यूजकॉर्प को बताया, 'मैं काफी निजी व्यक्ति हूं और मैं नहीं चाहता था कि लोग मेरे लिए किसी तरह का खेद महसूस करें। आप नहीं जानते कि लोग परवाह करते हैं या नहीं, लेकिन मुझे पता है कि एक दिन आएगा जब लोग ध्यान देंगे।'

ऑस्ट्रेलिया के महान खिलाड़ियों में से एक

गौरतलब हो कि बॉर्डर ने 1979 और 1994 के बीच 156 टेस्ट खेले। उनमें से 93 में से ऑस्ट्रेलिया टीम की कप्तानी की। एलन बॉर्डर 11,000 रन बनाने वाले पहले बल्लेबाज बने थे। उन्होंने 1987 विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया को जीत दिलाई। उन्होंने 273 वनडे मैच खेले हैं। संन्यास लेने के बाद उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई चयनकर्ता और कमेंटेटर के रूप में कार्य किया है।

जानें Parkinson Disease के बार में

पार्किंसन बीमारी एक तरह का मूवमेंट डिसऑर्डर है। इसमें हाथ या पैर से दिमाग में पहुंचने वाली नसें काम करना बंद कर देती हैं। यह आनुवंशिक कारण के साथ-साथ कई बार पर्यावरण विषमताओं की वजह से भी होता है। यह बीमारी धीरे-धीरे अपना असर दिखाती है। इसलिए इसके लक्षण पहचानना कई बार आसान नहीं होता है।