Cricket: संघर्षों को क्लीन-बोल्ड करते हुए टीम इंडिया में बना ली थी जगह, अब नए टैलेंट की तलाश में जुटे हैं मुनफ पटेल
बड़ौदा क्रिकेट एसोसिएशन और आदित्य बिड़ला कैपिटल ने भारत में तेज गेंदबाज की तलाश करने की पहल की है जिसमें मुनफ पटेल स्काउट और संरक्षक का रुप निभा रहे हैं। मुनफ भरूच और वडोदरा के गांवों में कैंप लगा रहे हैं और तेज गेंदबाजों की तलाश कर रहे हैं।
By Piyush KumarEdited By: Updated: Sat, 06 Aug 2022 08:02 PM (IST)
नई दिल्ली, एजेंसी। आइसीसी वर्ल्ड कप 2011 में भारत को विजेता बनाने में भारतीय पूर्व तेज गेंदबाज मुनफ पटेल ने अहम योगदान निभाया था। पूर्व क्रिकेटर ने भले ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया लेकिन क्रिकेट से उनका प्यार कभी समाप्त नहीं हुआ। उन्होंने जब भारतीय टीम के लिए खेला हमेशा एक सैनिक के तरह मैदान में डटे रहे। टीम को जब भी उनकी गेंदबाजी की जरुरत हुई उन्होंने हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की। आज-कल मुनफ पटेल एक नए मिशन पर हैं। दरअसल, मुनफ पटेल भारतीय अंतरराष्ट्रीय टीम के लिए तेज गेंदबाज की खोज में जुटे हैं। सन्यास का आनंद लेने के बजाय वह देश में नए टैलेंट की तलाश में जुट गए हैं।
बता दें कि बड़ौदा क्रिकेट एसोसिएशन और आदित्य बिड़ला कैपिटल ने भारत में तेज गेंदबाज की तलाश करने की पहल की है, जिसमें मुनफ पटेल स्काउट और संरक्षक का रुप निभा रहे हैं। मुनफ भरूच और वडोदरा के गांवों में कैंप लगा रहे हैं और तेज गेंदबाजों की तलाश कर रहे हैं। मुनफ पटेल का कहना है कि उनका ध्यान गांवों से क्रिकेट प्रतिभाओं को खोजने और उन्हें भारतीय टीम के लिए तैयार करने पर है। मुनफ ने आगे कहा, 'हमने 16 से 21 साल के प्रतिभाशाली युवाओं की पहचान की है और उन्हें जरुरी ट्रेनिंग दी जा रही है। उन्होंने कहा, 'जब मैं, जहीर खान, राकेश पटेल और लुकमान छोटे गांवों से आने के बावजूद टीम में शामिल हो सकते हैं, तो दूसरे युवा क्यों नहीं? मुझे विश्वास है कि हम करेंगे आने वाले दिनों में अच्छे परिणाम सामने आएंगे।'
किसान के बेटे को मिली भारतीय टीम में जगह
मुनफ, जिनके पिता मुसाभाई भरूच के इखर गांव में एक किसान थे, उन्होंने कभी क्रिकेट में करियर बनाने का कोई सपना नहीं देखा था। वह केवल एक शौक के रूप में क्रिकेट खेलते थे लेकिन उन्होंने धीरे-धीरे तेज गेंदबाज और विकेट लेने वाले के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करने लगे। मुनफ के पिता नहीं चाहते थे कि वह मस्ती के लिए भी खेले। परिवार की खराब आर्थिक स्थिति ने तेज गेंदबाज को एक टाइल निर्माण इकाई (tile manufacturing unit) में काम भी किया, जिसमें उन्हें 35 रुपये की दैनिक वेतन दी जाती थी। हालांकि, उनके स्कूल के शिक्षकों ने उन्हें क्रिकेट खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। भरूच और वडोदरा के क्रिकेट मैदानों के आसपास 'मुन्ना' नाम गूंजने लगा, लेकिन हालत इतनी विकट थी कि वह सीजन की गेंद से चप्पल में क्रिकेट खेलते थे।किरण मोरे और सचिन तेंदुलकर ने मुनफ की मदद की
मुनफ की प्रतिभा को देखकर गांव के एनआरआई में से एक यूसुफभाई पटेल ने उन्हें जूते उपहार में दिए और बड़ौदा क्रिकेट एसोसिएशन में उनके पेशेवर प्रशिक्षण को प्रायोजित करने की पेशकश की। इस फैसले से पिता मुसाभाई खुश नहीं थे क्योंकि वह चाहते थे कि मुनफ पढ़ाई करे और जाम्बिया में अपने चाचा के साथ काम करना शुरू करे, लेकिन भाग्य किस्मत मुनफ को कुछ और बनाने में जुट गया था क्योंकि एक पूर्व विकेटकीपर ने मुनफ के प्रतिभा को महसूस को देख लिया था। मुनफ ने जल्द ही गुजरात के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया। बाद में उन्हें एमआरएफ (MRF) पेस फाउंडेशन भेजा गया, जहां उन्होंने डेनिस लिली के तहत प्रशिक्षण लिया। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर भी मुनफ से प्रभावित हुए और उन्हें मुंबई के लिए रणजी ट्रॉफी में खेलने की सलाह दी।