Dattajirao Gaekwad: हजारे के कौशल को टक्कर देने वाले बल्लेबाज थे दत्ताजी राव गायकवाड़
किस्मत के सहारे भारतीय कप्तान बने दत्ताजी राव गायकवाड़ (Dattajirao Gaekwad) कवर ड्राइव के साथ क्रिकेट के अन्य शाट खेलने के मामले में विजय हजारे को टक्कर देते थे लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह अपनी प्रतिभा के साथ न्याय करने में विफल रहे। बड़ौदा के इस बल्लेबाज को अपनी प्रतिभा के दम पर 11 से अधिक टेस्ट खेलने चाहिए थे।
प्रेट्र, नई दिल्ली। किस्मत के सहारे भारतीय कप्तान बने दत्ताजी राव गायकवाड़ (Dattajirao Gaekwad) कवर ड्राइव के साथ क्रिकेट के अन्य शाट खेलने के मामले में विजय हजारे को टक्कर देते थे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह अपनी प्रतिभा के साथ न्याय करने में विफल रहे। बड़ौदा के इस बल्लेबाज को अपनी प्रतिभा के दम पर 11 से अधिक टेस्ट खेलने चाहिए थे। दत्ताजी राव का मंगलवार को 95 वर्ष की आयु में उनके गृहनगर बड़ौदा में निधन हो गया।
आंकड़ों के मुताबिक वह 2016 में दीपक शोधन की मृत्यु के बाद सबसे उम्रदराज जीवित भारतीय टेस्ट क्रिकेटर थे। उन्हें 1952 से 1961 तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वैसी सफलता नहीं मिली। उन्होंने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर में 11 मैचों में 18.42 के औसत से 350 रन बनाए जिसमें एक अर्धशतक शामिल है।उनके बेटे अंशुमान ने भारत के लिए 40 टेस्ट खेले। अंशुमान का रक्षात्मक खेल अपने पिता से मजबूत था। देश की आजादी के बाद के पहले ढाई दशकों में हालांकि हर क्रिकेटर को हमेशा आंकड़ों के चश्मे से नहीं आंका जा सकता था। टेस्ट में दत्ताजी राव का औसत 20 से कम का रहा, लेकिन यह ऐसा समय था जब टीम को जीत से ज्यादा मैचों में हार का सामना करना पड़ता था।
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दत्ताजी राव ने 1959 के इंग्लैंड दौरे पर पांच टेस्ट मैचों में से चार में भारत की कप्तानी भी की थी। इस दौरे में टीम को पांचों मैच में शिकस्त का सामना करना पड़ा था। उनके आलोचकों ने आरोप लगाया था कि दत्ताजी राव को भाई-भतीजावाद के कारण टीम की बागडोर सौंपी गई थी। उन्हें वडोदरा के पूर्व महाराजा फतेह सिंह गायकवाड़ का करीबी माना जाता था, जो राष्ट्रीय टीम के प्रबंधक थे।
दत्ताजी राव ने एक साक्षात्कार में कहा था कि राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने के बाद वह अपने कमरे में भी टीम की जर्सी पहनते थे। दत्ताजी राव ने काउंटी टीमों के विरुद्ध काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। वह हालांकि फ्रेडी ट्रूमैन की गति या एलेक बेडसर की स्विंग गेंदबाजी का डटकर सामना करने में विफल रहे थे। उनका कवर ड्राइव हालांकि उस दौरे पर भी चर्चा का विषय था। उस पीढ़ी के सर्वश्रेष्ठ ब्रिटिश क्रिकेट लेखक क्रिस्टोफर मार्टिन-जेन¨कस ने उनके कवर ड्राइव को 'शानदार' करार दिया था।