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भारतीय टीम के हेड कोच Gautam Gambhir की बढ़ी मुश्किलें, धोखाधड़ी केस में नए तरीके से होगी जांच

Gautam Gambhir दिल्ली की एक अदालत ने भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच गौतम गंभीर को एक धोखाधड़ी केस में बड़ा झटका दिया है। अदालत ने उन्हें आरोपमुक्त करने का आदेश खारिज कर दिया। इसका मतलब है कि गंभीर के खिलाफ मामले की और जांच होगी। यह फैसला गंभीर की भूमिका के बारे में सवाल उठाता है खासकर जब वह एक रियल एस्टेट कंपनी के ब्रांड एंबेसडर थे।

By Priyanka Joshi Edited By: Priyanka Joshi Updated: Wed, 30 Oct 2024 08:51 PM (IST)
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Gautam Gambhir ने अदालत धोखाधड़ी केस में दिए नए तरीके से जांच के आदेश
स्पोर्ट्स डेस्क, नई दिल्ली। Gautam Gambhir Fraud Case: दिल्ली की एक अदालत ने पूर्व क्रिकेटर और मौजूदा भारतीय टीमके हेड कोच गौतम गंभीर को एक धोखाधड़ी मामले में बरी करने के आदेश को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि गंभीर की भूमिका की और जांच जरूरी है। विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने ने यह फैसला 29 अक्टूबर को सुनाया।

यह मामला रियल इस्टेट कंपनियों रुद्र बिल्डवैल, एच आर इन्फ्रासिटी और यू एम आर्किटेक्चर्स से जुड़ा है। इन कंपनियों और उनके निदेशकों पर आरोप है कि उन्होंने फ्लैट खरीदारों से धोखाधड़ी की। अदालत ने कहा कि गंभीर के खिलाफ आरोपों की गंभीरता को देखते हुए उनकी भूमिका की और जांच होनी चाहिए।

Gautam Gambhir ने अदालत धोखाधड़ी केस में दिए नए तरीके से जांच के आदेश

दरअसल, विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने ने 29 अक्टूबर के अपने आदेश में लिखा कि वह अकेले ऐसे आरोपी हैं जिनका निवेशकों के साथ सीधा संपर्क था, क्योंकि वे रुद्र बिल्डवैल कंपनी के ब्रांड एंबेसडर थे। हालांकि, मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश में इस बात का कोई जिक्र नहीं था कि गंभीर को कंपनी से 4.85 करोड़ रुपये मिले और उन्हें 6 करोड़ रुपये देने पड़े।

न्यायाधीश ने बताया कि आरोपपत्र में यह स्पष्ट नहीं है कि क्या गंभीर को वापस की गई रकम में कोई धोखाधड़ी थी या यह पैसे निवेशकों से आई धनराशि से जुड़ी थी। उन्होंने कहा कि क्योंकि मामला धोखाधड़ी से संबंधित है, इसलिए जरूरी था कि आरोपपत्र में बताया जाए कि क्या गंभीर को धोखाधड़ी से मिले पैसे का कोई हिस्सा मिला था।

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अदालत ने पाया कि गंभीर ने ब्रांड एंबेसडर के रूप में अपनी भूमिका से परे कंपनी के साथ वित्तीय लेनदेन किया था और वह 29 जून 2011 और 1 अक्टूबर 2013 के बीच एक अतिरिक्त निदेशक थे। इस तरह जब परियोजना का विज्ञापन किया गया था तब वह एक पदाधिकारी थे। इस मामले में अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया है कि शिकायतकर्ताओं ने परियोजनाओं में फ्लैट बुक किए और विज्ञापनों और ब्रोशर से लालच में आकर 6 लाख रुपये से 16 लाख रुपये के बीच भुगतान किया।

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