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कुश्‍ती छोड़ सियासी अखाड़े में उतरीं विनेश फोगाट, धोबी पछाड़ के मामले में यहां भी निकली आगे

विनेश फोगाट भारत की दिग्गज पहलवान रहीं हैं। पेरिस ओलंपिक-2024 में वह जरूर पदक जीतने से बेहद करीब से चूक गई थीं लेकिन उन्होंने बता दिया था कि उनमें कितना दम है। यही दम उन्होंने राजनीति में दिखाया है। विनेश का मैट से राजनीति तक का सफर आसान नहीं है। इसके लिए उन्होंने काफी कुछ सहा। नजर डालते हैं उनके खिलाड़ी से नेत बनने के सफर पर।

By Abhishek Upadhyay Edited By: Abhishek Upadhyay Updated: Tue, 08 Oct 2024 01:02 PM (IST)
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विनेश फोगाट ने कुश्ती से मारी राजनीति में एंट्री
 स्पोर्ट्स डेस्क, नई दिल्ली। हरियाणा की राजनीति में उस समय तहलका मच गया था जब विनेश फोगाट ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। कुछ दिन पहले पेरिस ओलंपिक-2024 में बेहद करीब से आकर मेडल से चूकने वाली विनेश काफी हताश और निराश थीं। ऐसे में सभी को लगा था कि वह खेल पर ध्यान देकर जोरदार वापसी करेंगी, लेकिन विनेश ने कांग्रेस का पटका पहना और उन्हें जुलाना से टिकट भी मिल गया। लेकिन विनेश के लिए यहां तक आना आसान नहीं था। सड़कों पर प्रदर्शन से लेकर पुलिस के घसीटने तक, विनेश ने काफी दर्द झेला तब जाकर राजनीति में कदम रखा।

उनके इस सफर का बिगुल बजा जब विनेश ने अपने साथी पहलवानों सहित भाजपा सांसद और भारतीय कुश्ती महासंघ के तत्तकालीन अध्यक्ष ब्रजभूण शरण सिंह के खिलाफ साल 2023 की शुरुआत में विद्रोह किया। विनेश के साथ थे बजरंग पूनिया, साक्षी मलिक। इन सभी का आरोप था कि ब्रजभूषण ने महिला खिलाड़ियों का यौन शोषण किया है और इसलिए उनके खिलाफ मुकादम चलना चाहिए। शायद ये विनेश को भी नहीं पता था कि ये विद्रोह उन्हें राजनीति में ले जा सकता है।

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मच गई खलबली

जैसे ही ये सभी भूषण के खिलाफ उतरे सभी तरफ खलबली मच गई। इन सभी ने दिल्ली में जमघट जमा लिया और जंतर-मंतर पर धरने पर बैठ गए। हालांकि, इसका असर भूषण पर हुआ नहीं। वह डटे रहे और आरोपों को लगातार नकारते रहे। इसी ने इन सभी के विद्रोह को और हवा दी। बात उस समय के खेल मंत्री अनुराग ठाकुर तक भी पहुंची। भारतीय ओलंपिक संघ भी इसमें कूदा लेकिन पहलवानों के खिलाफ माहौल बना। दिल्ली पुलिस ने इन सभी को धरने पर से हटाने के लिए अपना पूरा दम लगा दिया।

साक्षी मलिक, विनेश फोगाट को पुलिस ने जबरदस्की सड़कों पर से उठाया, लेकिन पहलवानों का हट डिगा नहीं। लाख कोशिशों के बाद भी उनका प्रदर्शन जारी रहा।

भूषण हटे पीछे

इस बीच डब्ल्यूएफआई को वर्ल्ड रेसलिंग की तरफ से भंग भी कर दिया गया। तब जाकर आईओए और खेल मंत्रालय जागा। भूषण को हटाया गया। एडहॉक कमेटी बनाई गई। लेकिन अभी काम पूरा नहीं हुआ था। इस बीच इन पहलवानों ने धरना खत्म कर दिया।

डब्ल्यूएफआई के चुनाव हुए तो संजय सिंह अध्यक्ष चुने गए जिन्हें भूषण का खास माना जाता है। ये देख विनेश ने फिर मोर्चा संभाल लिया और संजय सिंह, भूषण के खिलाफ उठ खड़ी हुईं।

ओलंपिक में पहुंची

इन सबमें उनका खेल भी प्रभावित हो रहा था। हालांकि, विनेश ने पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर सभी को हैरान कर दिया। ये विनेश से लिए अपने अपमान का बदला लेने का सबसे अच्छा मौका था। विनेश के लिए सब कुछ ठीक चल रहा था। वह नंबर-1 खिलाड़ी को हराकर फाइनल तक पहुंच गईं। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। फाइनल से पहले वेट-इन में उनका वजन 100 ग्राम ज्यादा निकला और विनेश डिस्क्वालिफाई हो गईं। यहीं विनेश को अब तक का सबसे बड़ा झटका लगा।

ओलंपिक पदक पक्का था, लेकिन वो कहावत है ना, हाथ लगे मुंह न आया, विनेश के साथ यही हुआ। विनेश का रो-रोकर बुरा हाल हो गया। विनेश ने सीएएस में अपील भी की लेकिन यहां भी वह लड़ाई हार गईं। विनेश के हाथ से मौका निकल गया। वह मेडल जीत अपने दुश्मनों को जवाब देना चाहती थीं दो नहीं दे सकीं। विनेश के दिल में कसक रह गई।

विनेश ने किया हैरान

विनेश दर्द के साथ भारत लौट आईं। बजरंग पूनिया उन्हें एयरपोर्ट लेने पहुंचे। विनेश भारत पहुंचते ही रो पड़ीं। बजंरग के साथ जब विनेश की तस्वीरें आईं तो उनके आंसू रुक नहीं रहे थे। लेकिन यहां एक और शख्स था जो विनेश और बजरंग के साथ था। वो थे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा। यहां से लगने लगा कि विनेश राजनीति का रुख कर सकती हैं। कुछ दिन बाद नई दिल्ली में बजरंग और विनेश ने क्रांग्रेस ज्वाइन कर ली। बयान आया- 'आत्मसम्मान और महिलाओं के हक की लड़ाई जारी है।'

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