भारतीय टेस्ट टीम में पहली बार शामिल किए गए विकेटकीपर-बल्लेबाज ध्रुव चंद जुरैल को राजकोट टेस्ट में पदार्पण का अवसर मिल सकता है। टीम प्रबंधन इंग्लैंड के विरुद्ध गुरुवार से शुरू हो रहे तीसरे टेस्ट में ध्रुव को विकेटकीपर केएस भरत की जगह अंतिम एकादश में उतार सकता है। भारत और इंग्लैंड इस समय सीरीज में 1-1 की बराबरी पर है।
अभिषेक त्रिपाठी, नई दिल्ली। भारतीय टेस्ट टीम में पहली बार शामिल किए गए विकेटकीपर-बल्लेबाज ध्रुव चंद जुरैल को राजकोट टेस्ट में पदार्पण का अवसर मिल सकता है। टीम प्रबंधन इंग्लैंड के विरुद्ध गुरुवार से शुरू हो रहे तीसरे टेस्ट में ध्रुव को विकेटकीपर केएस भरत की जगह अंतिम एकादश में उतार सकता है।
आगरा में रहने वाले ध्रुव भले ही अब चमकते सितारे हों, लेकिन एक समय उनके लिए क्रिकेट खेलना ही एक सपना था और अपने शहर में खेल की शुरुआती बारीकियां सीखने के बाद उनके सिर पर क्रिकेट का ऐसा जुनून सवार हुआ था कि वह अपने दादा की तेहरवीं वाले दिन ही नोएडा चले आए थे। कई सालों तक उन्होंने नोएडा में कोच फूलचंद की अकादमी में अभ्यास किया।
वांडरर्स क्लब के मालिक फूलचंद ने दैनिक जागरण से कहा कि 2014-15 की बात है, ध्रुव मेरे पास नोएडा आया। किसी और लड़के ने उसे बुलाया था कि नोएडा आ जाओ और मेरे साथ यहां रहना लेकिन जब वह नोएडा आ गया तो लड़के ने उसका फोन नहीं उठाया। इसके बाद यह मेरे पास आया तो मुझे लगा कि कहीं ये लड़का घर से भागकर तो नहीं आया तो उसने अपने पिता नेमसिंह से मेरी बात कराई।
पिता ने कहा कि आज इसके दादा की तेहरवीं थी। पंडितों को भोज कराकर यह नोएडा में क्रिकेट की ट्रेनिंग लेने की बात कहकर निकल गया था। फूल चंद ने कहा कि इसके बाद मैंने उसे अपने हास्टल में रख लिखा और आज तक मैंने उससे चवन्नी भी नहीं ली। मैंने उसे दिल्ली के कई टूर्नामेंट खिलाए। फिर वह अंडर-19 खेला और यूपी की ओर से एक सत्र में 1000 से ज्यादा रन बनाए। फिर वह अंडर-19 एशिया कप का कप्तान बना और अंडर-19 विश्व कप खेला।
महेंद्र सिंह धोनी का विकल्प
फूलचंद ने बताया कि जब वह टूर्नामेंट खेलता तो मुझे लगा कि आगे जाकर यह बड़ा खिलाड़ी बनेगा। हर मैच में वह प्रदर्शन करता था, चाहे विकेटकीपिंग हो या बल्लेबाजी। भारत में आज के समय में उससे बेहतर विकेटकीपर कोई नहीं है। बल्लेबाजी भी शानदार है। मैं कह सकता हूं कि अगर धोनी के बाद भारतीय टीम में कोई उनकी जगह ले सकता है तो वह ध्रुव ही है।मैं भी 30 साल से अकादमी चला रहा हूं और यह कह सकता हूं कि वह बहुत ऊपर का खिलाड़ी है। टीम में चयन के बाद उसका मेरे पास फोन आया था। मैंने कहा कि ऐसे ही अच्छा खेलते रहो तो उसने कहा कि जब वह खेलकर आएगा तो मिलने अकादमी आऊंगा।
खुली आंखों से सपना देखने जैसा : नेम सिंह
भारत की जर्सी में ध्रुव को खेलते देखना उनके पिता नेमसिंह जुरैल का सपना है। ध्रुव के पिता ने दैनिक जागरण को बताया कि बचपन से ही ध्रुव का क्रिकेट में काफी रुझान था। स्कूल की छुट्टियों के दौरान समर कैंप में वह तैराकी के साथ क्रिकेट खेलता। फिर उसने क्रिकेट को ही पूरी तरह अपना लिया।क्रिकेट उसे भगवान के तोहफे के तौर पर मिला था। भी उसे खेलते देखता था, वह कहता था कि वह क्रिकेट खेलने के लिए ही बना है। इसके बाद बेटे को क्रिकेट खिलाई लेकिन मेरी इच्छा थी कि वह पढ़े, लेकिन उसका पढ़ाई से ज्यादा क्रिकेट खेलने में मन लगता था। फिर मैंने उसका दाखिला आगरा में प्रवेंद्र यादव की क्रिकेट अकादमी में करा दिया।
दो साल बाद ही वह अंडर-14 ट्रॉफी खेला और इसके बाद लगातार आगे ही बढ़ता गया। जब उनके पिता से पूछा गया कि आप ध्रुव के पढ़ने पर क्यों जोर देते थे, तो उन्होंने कहा कि आप भी समझते हो कि भारत की ओर से केवल देश के 15 खिलाड़ी ही खेलते हैं। मेरे लिए तो यह सपने जैसा ही था। मेरे लिए काफी संघर्ष था, लेकिन ध्रुव ने मेहनत की। फिर हमने भी बेटे को क्रिकेट में ही आगे बढ़ाने का निर्णय कर लिया।
पिता चाहते थे कि सेना में बने अफसर
नेमसिंह ने बताया कि वह चाहते थे कि ध्रुव भारतीय सेना में अफसर बने क्योंकि मैं खुद सेना में था। पढ़ने में ध्रुव अच्छा था। उसकी दीदी नीरू उसे पढ़ाती थी, लेकिन वह उससे पढ़ता नहीं था। ट्यूशन जाता था लेकिन वहां भी ज्यादा पढ़ता नहीं था। हालांकि उसके नंबर बहुत अच्छे आते थे। उसकी दीदी हमेशा कहती थी कि यह पढ़ता तो है नहीं, लेकिन इसके नंबर अच्छे आते हैं।
मैं भी उसे पढ़ाई के लिए डांटता था लेकिन वह अपनी दीदी को हमेशा कहता था कि उसे क्रिकेट ही खेलना है। परिवार की आर्थिक स्थिति तब अच्छी नहीं थी। उसके क्रिकेट किट लेनी थी। वह अपनी मां रजनी से कहता था कि मुझे क्रिकेट खेलना है और अगर ऐसा नहीं हुआ तो मैं घर से भाग जाऊंगा। फिर उसकी मां ने मुझसे कहा कि एक ही तो बेटा है और इसके लिए क्रिकेट किट लेकर आओ। जो हमारी किस्मत में होगा वह मिलेगा। फिर इसकी मां ने अपनी सोने की चेन दी। मैंने 16 या 17 हजार रुपये में चेन गिरवी रखकर क्रिकेट किट खरीदी थी। वो चेन कभी वापस ही नहीं आई।
मां को दिए सोने के कंगन
ध्रुव के पिता ने बताया कि जब पिछले साल उनका बेटा आईपीएल खेला तो मां के लिए सोने के कंगन लाकर दिए थे। ये देखकर उसकी मां भी भावुक हो गई थी। बेटे की सफलता को देखकर काफी अच्छा लगता है। जब बेटे के नाम से पिता को जाना जाता है तो इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता। मैंने खुली आंखों से सपना देखा था कि भगवान कभी मेरी भी सुनेगा कि इतने महान खिलाड़ियों के साथ उसे ड्रेसिंग रूम शेयर करने का अवसर मिल रहा है।
उनके साथ बात कर रहा है, अभ्यास कर रहा है। मैं बहुत गौरवांन्वित महसूस करता हूं। ध्रुव ने बताया कि मुझे सीनियर खिलाडि़यों से सीखने को बहुत कुछ मिल रहा है। ध्रुव ने अपने साक्षात्कार में कहा था कि जब मेरे पिता अपने अफसरों को सैल्यूट करते थे तो मैं सोचता था कि ऐसा बनूं कि सब पापा को सैल्यूट करें। सेना में हवलदार रहे नेमसिंह ने कहा कि यह तो हर बेटे का इच्छा होती है कि पिता का भी नाम ऊंचा हो लेकिन सेना में तो ओहदे बनाए गए हैं।
सेना एक परिवार की तरह है। आपको अपने सीनियर्स को सैल्यूट करना ही होगा। सेना में सभी अधिकारी ही नहीं हो सकते। सेना भी मेरा परिवार है। ये तो मेरी हार्दिक इच्छा थी कि क्यों न मैं अपने बेटे को ऐसे रास्ते पर ले जाऊं, जहां मुझे भी अच्छा लगे। मैं हमेशा ही ध्रुव को सीख देता हूं कि बड़ों का सम्मान करे।पूरा देश तुम्हारे लिए प्रार्थना कर रहा है। लाखों लोग तुम्हें फालो करते हैं। जब भी वह आगरा आता है तो सभी से प्रेम से मिलता है। मेरी कोशिश की है कि वह भले ही ऊंचाई पर पहुंच जाए लेकिन जमीन से जुड़ा रहे।