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सैकड़ों थप्पड़ खाए, हजारों घंटे मेहनत की...ऐसे सीखी क्रिकेट की ABCD; कुछ यूं बने Team India के जड्डू

Ravindra Jadeja बाकी बच्चों की तरह रवींद्र के लिए भी क्रिकेट कोई टाइमपास या सिर्फ एक खेल नहीं था। रवीन्द्र के लिए क्रिकेट जीवन जीने का एक तरीका था। 7 साल में जब ने पहली बार अपने हाथों में बल्ला और गेंद पकड़ी थी तब से उनके जीवन के सबसे कठिन सवालों का केवल एक ही जवाब था - क्रिकेट।

By Jagran NewsEdited By: Umesh KumarUpdated: Tue, 03 Oct 2023 03:20 PM (IST)
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जडेजा की कहानी बचपन के कोच की जुबानी।
मनन वाया, जामनगर। अनिरुद्ध सिंह जडेजा और लताबेन जाडेजा के बच्चों (नैना बा, पद्मिनी बा और रवीन्द्र) के लिए जिंदगी आसान नहीं थी। वे एक कमरे के फ्लैट में रहते थे। यह फ्लैट नर्स के तौर पर काम करने वाली लताबेन को मिला था। यह जानने के लिए कि इतने साधारण पृष्ठभूमि का लड़का क्रिकेट की दुनिया में रॉकस्टार कैसे बन गया, जागरण ने जामनगर में रवींद्र के कोच महेंद्र सिंह चौहान से मुलाकात की।

जागरण से खास बातचीत में महेंद्र सिंह चौहान ने कुछ किस्सों और कहानियों के जरिए जड्डू के सफर के बारे में बताया। तो फिर आइए जानते हैं "द मेकिंग ऑफ रवींद्र जडेजा", उनके कोच की जुबानी।

पहली मुलाकात, वो समझौता और रवींद्र क्रिकेट में आगे बढ़े

मैंने रवीन्द्र को पहली बार 1996 की एक दोपहर को देखा था। वह चौथी कक्षा में पढ़ता था, शायद 8 साल का ही था। मैंने दो दिनों तक उनका और उनके माता-पिता का साक्षात्कार लिया और बाद में कोचिंग के लिए सहमत हो गया। जो बच्चा मेरे यहां कोचिंग के लिए आता है, उनके माता-पिता को एक रिटन एग्रीमेंट करना होता है।

यहां मैं किसी भी बच्चे से फीस नहीं लेता। एडमिशन लेने के बाद बच्चे बाहर खाना नहीं खा सकते। साथ ही सभी को हर दिन दो घंटे पढ़ना होता है। मेरा मानना है कि शिक्षा पहले और क्रिकेट बाद में। जिन लोगों को बस खेलना होता है उन्हें यहां एंट्री नहीं मिलती है। प्रवेश के समय मैं प्रत्येक छात्र की मार्कशीट भी देखता हूं। खास बात यह है कि मैदान में पेरेंट्स की नो-एंट्री है। साथ ही इस समझौते में वे मुझे लिखित में अनुमति देते हैं कि मैं उनके बच्चों पे हाथ उठा सकता हूं।

जडेजा का ग्रास्पिंग पावर

रवींद्र जडेजा बचपन से ही बहुत बुद्धिमान था। उसमें सीखने और कुछ करने की ललक पहले से ही थी। वह कम उम्र से ही एक अच्छे ऑब्जर्वर थे। अगर आप किसी दूसरे को कुछ बताएंगे या समझाएंगे तो वह वहां से भी सीखेगा। रवींद्र की ग्रास्पिंग पावर (सीखने की शक्ति) जबरदस्त थी। रवींद्र पहले से ही अनुशासित हैं। मैंने आज तक उसके जैसा लड़का नहीं देखा। यहां जुड़ने के बाद रवींद्र रोजाना 6 से 7 घंटे क्रिकेट खेलता था, पढ़ाई में भी अच्छे था। जहां तक मुझे याद है उसे लगभग 80% अंक मिलते थे।

रवींद्र तेज गेंदबाज बनना चाहते थे

जडेजा बचपन में मध्यम गति की गेंदबाजी करते थे। हालांकि, उनकी ऊंचाई तेज गेंदबाजी के लिए उपयुक्त नहीं थी, इसलिए मैंने उनसे स्पिनर बनने के लिए कहा। गेंद को फ्लाइट कैसे करना है, ये सिखाने के लिए मैं दूसरे लड़के को पिच के बीच में खड़ा करता था और उससे कहता था कि गेंद उसके सिर के ऊपर से जानी चाहिए।

स्पिन गेंदबाजी के लिए कोच का मंत्र

मैं उनसे कहता था कि गेंद को स्टंप टू स्टंप रखो और बीच-बीच में गति बढ़ाने पर ध्यान दो। साथ ही स्टंप के पास और दूर से गेंदबाजी करने को भी कहा। गेंद को घूमना चाहिए और सिर्फ घूमना नहीं चाहिए, टिप के बाद कुछ अलग होना चाहिए। मेहनत तो करनी ही पड़ेगी। जब गेंद हाथ से छूटे तो उंगलियों की आवाज सुनाई देनी चाहिए। अगर आप जोर लगाओगे तो बल्लेबाज बिट होगा ही।

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मैच के दौरान जडेजा को लगाई थप्पड़

ये मामला लगभग हर कोई जानता है। एक मैच में बल्लेबाज ने उनके खिलाफ 2-3 छक्के और चौके लगाए थे। दूसरे ओवर में भी यही हुआ। एक चौका मारा और फिर एक छक्का, मैं ग्राउंड पर गया और मैंने जाकर उसे 2 थप्पड़ मारे। इसके बाद 2 घंटे के अंदर ही गेम खत्म हो गया। उन्होंने 5 विकेट के साथ मैच खत्म किया। वह मैच यहीं लाल बंगले में था। मैं रवींद्र से सबसे ज्यादा प्यार करता हूं। हालांकि, मैंने किसी को उतना नहीं पीटा जितना मैंने उसे पीटा है। चाहे कितना भी हो, यह कभी यहां से गया नहीं। हमेशा सीखने और खेलने के लिए उत्सुक रहते था।

तीन तिहरे शतकों की कहानी

एक बार मैं डिस्ट्रिक्ट मैच के बाद अपने बेटे को घरेलू क्रिकेट में अधिक रन बनाने की सलाह दे रहा था। मैंने उसे कहा, एक बार 300 रन बनाओ। अगर आप रन बनाएंगे तो कोई आपको क्यों नहीं चुनेगा? सिर्फ 100 रन बनाने से काम नहीं चलेगा, क्योंकि शतक बनाने वाले तो बहुत हैं, लेकिन तिहरा शतक बनाने वाले कितने हैं? इसके लिए कोशिश करो। जब मैं ये बात अपने बेटे को बता रहा था तो रवींद्र मेरे पीछे खड़े थे और उन्होंने ध्यान से मेरी बात सुनी और उस पर अमल किया और तीन तिहरे शतक जड़ दिए। अगर कोई सबक किसी दूसरे को देता था तो रवीन्द्र उसे भी पकड़ लेता था। मेरे लिए प्रदर्शन का दूसरा नाम रवींद्र जडेजा है।'

रवीन्द्र जडेजा की फील्डिंग इतनी अच्छी कैसे है?

जिन दिनों रवींद्र क्रिकेट की एबीसीडी सीख रहे थे, उन दिनों भारत में अच्छे फील्डर कम हुआ करते थे। फील्डिंग क्रिकेट का केंद्र बिंदु है। फील्डर क्रिकेट के क्षेत्र रक्षक होते हैं। आप सेना, वायु सेना, नौसेना, बीएसएफ, पुलिस के लोगों का सम्मान करते हैं क्योंकि वे फील्डर हैं। बैटिंग और बॉलिंग की बात अलग है, अगर आप अच्छी फील्डिंग करते हैं तो आप तुरंत लोगों की नजरों में आ जाते हैं। एक कोच के तौर पर मेरा मानना है कि जो भी अच्छी फील्डिंग करता है, उसकी बल्लेबाजी और गेंदबाजी पर असर पड़ता है।

फिटनेस और फोकस

मेरे लिए फिटनेस बहुत महत्वपूर्ण है। मैं लड़कों को शुरुआत में 25 लैप दौड़ने के लिए कहता था। साथ ही सप्ताह में एक दिन 15 किलोमीटर की दौड़ पे ले जाता था। मैं सिर्फ रवींद्र को ही नहीं, हर किसी को कहता रहा हूं कि सिर्फ क्रिकेट ही नहीं, बल्कि जो कुछ भी आपको पसंद है, उसमें अपना सब कुछ झोंक दो। एक बार कोई एक चीज चुन ले तो फिर जिंदगी में कोई दूसरा शौक नहीं रहना चाहिए।

कोच कभी भी रवीन्द्र का मैच नहीं देखते

इंसान सबसे ज्यादा खुद से ही डरता है। मैं रवीन्द्र का प्रदर्शन नहीं देख सकता। मैं चाहूंगा कि कोई आए और मुझे बताए कि वो केसा खेला है - मैं इसे सुन सकता हूं लेकिन देख नहीं सकता। अगर कोई मुझसे कहता है कि रवींद्र ने 5 विकेट लिए हैं तो मैं सोचता हूं, मुझे महीनों की खुशियां एक साथ मिल गई हैं। हालांकि, उसे लाइव खेलते हुए देखना मुझे डराता है।

क्रिकेट से प्यार करना है, क्रिकेटर से नहीं

यह उन दिनों की बात है जब यहां घरेलू मैच खेले जाते थे। कपिल देव, सुनील गावस्कर समेत कई दिग्गज खिलाड़ी यहां खेल चुके हैं। ऐसे ही एक मैच के दौरान मैंने हमारे स्थानीय मैनेजर जोगिंदर मांकड़ के साथ-साथ रवींद्र को भी काम पर रखा था। मैंने मांकड़ से कहा, इसे अपने पास रखो। एक दिन रवीन्द्र और मांकड़ लाल बंगले की सीढ़ियों पर बैठे थे। जब मैं वहां गया तो 9 साल का रवींद्र मेरे पास आया और बोला, सर, मैं सुनील गावस्कर के साथ एक तस्वीर लेना चाहता हूं। फिर मैंने तुरंत उसे लात मारी और वह सीढ़ियों से नीचे गिर गया। क्या आप एक तस्वीर लेंगे? मैंने तुम्हें यहां पानी भरने और सबको पानी पिलाने का काम सौंपा है। एक दिन हर कोई आपके साथ फोटो लेने आएगा। याद रखें, आपको हमेशा क्रिकेट से प्यार करना है, किसी क्रिकेटर से नहीं।

मैं सभी बच्चों से एक बात कहता हूं कि सिर्फ एक चीज पर ध्यान केंद्रित करें। यदि आप एक से अधिक कार्य करते हैं तो आपको कभी भी 100% परिणाम नहीं मिल सकते। क्रिकेट मानसिक खेल से पहले और शारीरिक खेल बाद में है।

जाडेजा ने जामनगर की क्रिकेट विरासत को जीवित रखा

जब मैं खुद खेल रहा था तो मुझे 2 चोटें लगीं। तब डॉक्टरों ने कहा कि हमें ऑपरेशन के लिए मुंबई जाना होगा। हालांकि, मेरे पास मुंबई जाकर इलाज कराने के लिए पर्याप्त पैसे थे। फिर मैंने अपना लक्ष्य बदल दिया और तय किया कि मैं खुद तो क्रिकेटर नहीं बन सकता, लेकिन किसी और को क्रिकेट खेलने में मदद कर सकता हूं। इसी सोच के साथ मैंने आज से 41 साल पहले कोचिंग शुरू की थी, जब मैं 19 साल का था। मुझे खुशी है कि रणजीत सिंह, दीलीप सिंह, वीनू मांकड़, सलीम दुर्रानी के बाद रवींद्र जडेजा ने जामनगर की क्रिकेट विरासत को जीवित रखा है।

आप रीवाबा से पूछ सकते हैं...

आप रीवाबा से पूछ सकते हैं, आज भी रवीन्द्र को डर लगता है। वह किसी से कुछ भी कहेंगे, लेकिन मेरे सामने उनकी नजरें झुकी रहती हैं। मुझे उससे कहना होगा कि वह मेरे साथ आराम से बैठे। वह बैठता नहीं, उसे बिठाना पड़ता है। वह खुद कभी बात नहीं करते। यह बस वही उत्तर देता है जो मैं पूछता हूं।

उतार-चढ़ाव में रवीन्द्र

एक चयनकर्ता के सोचने का तरीका, एक कप्तान के सोचने का तरीका और एक कोच के सोचने का तरीका हमेशा अलग होता है। मैं उससे हमेशा कहता था कि तुम्हारा काम उनके रंग में रंगना है। 1-2 बार वो ड्राप हुआ, तब मैंने उससे बस इतना ही कहा, अब तुम दोगुनी या चौगुनी ताकत से वापस आओ। हर बार उसने ऐसा ही किया। उन्होंने हर वापसी में इतना अच्छा प्रदर्शन किया है कि चयनकर्ताओं को आश्चर्य हुआ होगा कि हमने उन्हें क्यों बाहर किया। गलती का एहसास होने पर हर किसी को पछतावा होता है।

आशापुरा मां ने मुझे रवीन्द्र के रूप में सब कुछ दिया

आज रवीन्द्र मेरा जीवन है, जीने की मेरी ऊर्जा है। मनुष्य को जीने के लिए जल और वायु की आवश्यकता होती है। मुझे जल और वायु के साथ-साथ रवीन्द्र भी चाहिए। मैं इसके बिना नहीं रह सकता। मैं 1975 से हर दिन आशापुरा मंदिर जा रहा हूं, वह हमारी कुल देवी हैं। जब रवींद्र सुर्खियों में भी नहीं थे, तब मैंने माताजी से जामनगर को एक क्रिकेटर देने की प्रार्थना की थी। मां ने दिया, अब मैं कहां से कुछ मांग सकता हूं? अगर मां खुद देती है तो अलग बात है, लेकिन मैं और कुछ नहीं मांग सकता। मेरे जीवन में एक चाह थी, भगवान ने उसे रवीन्द्र के रूप में पूरी की।

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