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सम्मान को लेकर अपमानित हुए साहित्यकार

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : ¨हदी दिवस पर राजधानी के दिगंबर मार्ग स्थित ¨हदी भवन में आयोजित सम्मान स

By Edited By: Updated: Tue, 13 Sep 2016 09:24 PM (IST)

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : ¨हदी दिवस पर राजधानी के दिगंबर मार्ग स्थित ¨हदी भवन में आयोजित सम्मान समारोह से पहले साहित्यकारों के अपमान का मामला सामने आया है। हिंदी अकादमी का यह ताजा विवाद लेखकों के भाषा दूत सम्मान को लेकर है। जानकारी के अनुसार अकादमी ने पहले तीन लेखकों को डिजिटल माध्यम में ¨हदी संगोष्ठी एवं भाषा दूत सम्मान ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया। बाद में यह कहकर खेद जताया कि उन्हें गलती से आमंत्रण चला गया था और इसे मानवीय भूल समझा जाए। इस कार्यक्रम में भाषा कला एवं संस्कृति मंत्री कपिल मिश्रा भी शिरकत करेंगे।

दिल्ली के लेखक अशोक कुमार पाडेय, उत्तर प्रदेश के नजीबाबाद से अरुण देव और इलाहाबाद से संतोष चतुर्वेदी को 10 सितंबर को पत्र और फोन के जरिये सूचना भेजी गई थी। उनसे सम्मान के लिए सहमति ली गई थी, लेकिन 12 सितंबर को ¨हदी अकादमी ने अपनी गलती मानी। अरुण देव का कहना है कि ¨हदी अकादमी की यह शैली अपमानजनक है। हम अपमानित महसूस कर रहे हैं। बिना किसी सरकारी मदद के ऑनलाइन साहित्य की पत्रिका का संचालन कर रहे हैं। नए लोगों की लिस्ट में अशोक चक्रधर का भी नाम है, जो ¨हदी अकादमी के उपाध्यक्ष रह चुके हैं।

अशोक कुमार पांडेय का कहना है कि 12 सितंबर को सुबह 10 बजे हिंदी अकादमी का एक और ईमेल आया, जिसमें सूचना दी गई कि पिछला पत्र त्रुटिवश भेजा गया है और इस संबंध मे कोई विभागीय निर्णय नहीं हो पाया है। इसे मानवीय भूल बताते हुए क्षमा याचना की गई है और मुझे हुए कष्ट के लिए खेद व्यक्त किया गया है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब कोई विभागीय निर्णय हुआ ही नहीं था तो विभाग के लेटर पैड पर पत्र कैसे जारी कर दिया गया? किसी विभागीय निर्णय के बिना संस्था के किसी पदाधिकारी ने मुझे फोन कैसे किया? क्या इस अकादमी मे पत्र या फोन सब तदर्थ सूचनाओं के आधार पर किए जाते हैं? अगर नाम एक बार तय हो जाने के बाद ऊपर से बदले गए हैं तो इसका आधार क्या है? क्या संस्था के पदाधिकारियों की जगह साहित्य संबंधी निर्णय मंत्री या प्रशासक ले रहे हैं? क्या संस्था के निर्णय के बाद अपने चहेतों को शामिल करने के लिए मुझे या अन्य लोगों को सूची से बाहर किया गया है?

इस मामले को लेकर सोशल मीडिया पर भी जबरदस्त चर्चा है। साहित्यकार मंगलमूर्ति ने लिखा है कि हिंदी अकादमी को जिस कैंची से फीता काटना था उसी से अपनी नाक काट ली, अच्छा है। इसी तरह की प्रतिक्रियाएं अन्य लोग भी दे रहे हैं।

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कुर्सी मेज के लिए भी मुझे सचिव से पूछना पड़ता है: मैत्रेयी पुष्पा

¨हदी अकादमी की उपाध्यक्ष मैत्रेयी पुष्पा का कहना है कि अकादमी में उपाध्यक्ष के क्या अधिकार हैं, यह आप को मालूम नहीं। मुझे कुर्सी मेज की सुविधा के लिए भी सचिव से पूछना पड़ता है। उपाध्यक्ष के लिए न कोई कमरा होता है और न ही गाड़ी। हां मैंने कुछ हस्तक्षेप किया है। पुराने ढर्रे को तोड़ने की कोशिश की है। भाषा दूत सम्मान के लिए मुझसे नाम मागे गए थे, जो मैंने दिए लेकिन मैं न तो चयनकर्ताओं में शामिल हूं और न ही चयन में मेरी किसी तरह की भूमिका रही है। जो नाम मैंने दिए थे, उनका चयन नहीं किया गया है। हो सकता है कि जो नाम मैंने दिए हों वह समिति को पसंद न आए हों या जो नाम उन्होंने दिए हैं वे अधिक योग्य हों। उन्हें जो ठीक लगा उन्होंने किया।

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अब इन्हें किया जाएगा सम्मानित

आदित्य चौधरी

अशोक चक्रधर

बालेंदु दाधीच

भरत तिवारी

चिराग जैन

प्रो.इयान वुलफोर्ड

ललित कुमार

राहुल देव

शैलेश भारतवासी

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