Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

¨हदी के बंटवारे को लेकर साहित्यकारों ने जताया विरोध

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : ¨हदी को बोली के आधार पर बांटने के प्रयासों का साहित्यकारों ने कड़ा विरोध

By Edited By: Updated: Sun, 15 Jan 2017 10:00 PM (IST)
Hero Image
¨हदी के बंटवारे को लेकर साहित्यकारों ने जताया विरोध

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : ¨हदी को बोली के आधार पर बांटने के प्रयासों का साहित्यकारों ने कड़ा विरोध किया है। साथ ही केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भोजपुरी और राजस्थानी समेत अन्य ¨हदी की बोलियों को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं करने की मांग की है। ¨हदी बचाओ मंच के बैनर तले जंतर-मंतर पर आयोजित विरोध प्रदर्शन में साहित्यकार चित्रा मुदगल, डॉ. श्याम सिंह शशि, सुरेंद्र अग्रवाल, श्याम रूद्र पाठक, शची मिश्रा, हरी सिंह पाल और डॉ. अमरनाथ के अलावा स्तंभकार वेद प्रकाश वैदिक ने भी भाग लिया।

इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के अलावा कलकत्ता एवं मुंबई विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी हिस्सा लिया। प्रदर्शन का संचालन प्रवासी संसार के संपादक राकेश पांडेय ने किया। इस दौरान साहित्यकारों ने कहा कि आज जब ¨हदी को वैश्विक पटल पर अंकित करने के लिए एकजुट होने की जरूरत है तो यहां ¨हदी को ही बांटने की साजिश हो रही है। ध्यान देने वाली बात यह है कि संख्या बल के आधार पर ही ¨हदी को राजभाषा का दर्जा मिलेगा। यदि ¨हदी भाषी बोलियों के आधार पर बंटेंगे तो यह दर्जा छिनते देर नहीं लगेगी।

वहीं, डॉ. अमरनाथ ने कहा कि भोजपुरी घर में बोली जाने वाली एक बोली है। उसके पास न तो अपनी कोई लिपि है और न मानक व्याकरण, ऐसे में किस भोजपुरी भाषा की मांग हो रही है। यहीं हालत काशिका, नगपुरिया, शाहाबादी, छपरहिया, मधेसी या सरवरिया के साथ अन्य बोलियों की है। डॉ. श्याम सिंह शशि ने कहा कि ¨हदी एक राष्ट्रीय आवाज है, जिसे महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस ने अपनाई, जबकि उनकी यह मातृभाषा नहीं थी। ऐसे में ¨हदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने की जरूरत है।