जानिये- फांसी से पहले साथियों को लिखे अंतिम पत्र में भगत सिंह ने क्या-क्या कहा था
लाहौर जेल में रहते हुए शहीदे आजम ने 12 सितंबर 1929 से एक डायरी लिखनी शुरू की थी।
फरीदाबाद (सुशील भाटिया)। 'तुम्हें जिबह करने का खुशी है और मुझे मरने का शौक, मेरी भी वही ख्वाहिश है, जो मेरे सैयाद की है'। अपने साथियों राजगुरु व सुखदेव के साथ 23 मार्च-1931 के दिन शहादत देने से पूर्व शहीदे आजम सरदार भगत सिंह ने इन पंक्तियों के जरिए भरी जवानी में वतन पर मर मिटने के लिए तैयार होने का संदेश दिया था। लाहौर जेल में रहते हुए शहीदे आजम ने 12 सितंबर 1929 से एक डायरी लिखनी शुरू की थी और शहादत से अंतिम दिन पूर्व तक 22 मार्च 1931 तक डायरी लिखी थी।
अंग्रेजी व उर्दू में लिखी गई यह मूल डायरी भगत सिंह के प्रपौत्र यादविंदर सिंह संधू (भगत सिंह के भाई कुलविंदर सिंह के प्रपौत्र) के पास अमूल्य धरोहर के रूप में सुरक्षित है और पिछले सालों में उन्होंने इस डायरी के पन्नों की स्कैन प्रतियों के साथ-साथ अंग्रेजी में अनुवाद कराया था और इसे रिलीज कराया था।शहीदे आजम की शहादत की पूर्व संध्या पर दैनिक जागरण से बातचीत में यादविंदर सिंह ने कहा कि डायरी का प्रकाशन अंतिम दौर में है और हम उम्मीद कर रहे हैं कि अगले माह अप्रैल में बैसाखी पर या आसपास इसका विमोचन करा दिया जाए।
इस डायरी में भगत सिंह के बचपन के और उनके माता-पिता के चित्रों सहित अन्य संस्मरण भी होंगे। डायरी में इंकलाबी और हर नौजवान को उद्वेलित करने वाले इस तरह के शेर भी अंकित हैं, जो भगत सिंह ने लिखे थे, जैसे 'लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा, मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा, मैं रहूं या ना रहूं पर ये वादा है तुमसे मेरा कि, मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा'।
फरीदाबाद के एनआइटी नंबर पांच में रहने वाले यादविंदर सिंह के अनुसार शहीदे आजम ने लाहौर सेंट्रल जेल प्रशासन से मांग की थी कि वो डायरी लिखना चाहते हैं, जिस पर जेल प्रशासन ने उन्हें डायरी व कलम उपलब्ध कराई थी। इसमें भगत सिंह ने जेल में बिताए कठिन पल व क्रांतिकारियों के संघर्ष के बारे में जो शब्द लिखे, वे आज इतिहास बन चुके हैं।
यादविंदर सिंह के अनुसार इस डायरी में भगत सिंह के पूरे व्यक्तित्व की झलक है, साथ ही विदेशों में हुई विभिन्न क्रांतियों का भी उन्होंने जिक्र किया है। यादविंदर ने कहा कि यह मांग अब एक बार फिर उठ रही है कि लोकतंत्र को कामयाब करना है तो जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही होनी चाहिए, उन्हें रि-कॉल किया जा सके, जबकि भगत सिंह जी ने यह सब विचार जेल में रहते हुए ही व्यक्त कर दिए थे कि आजादी के बाद कैसा हिंदुस्तान होना चाहिए, डेमोक्रेसी का क्या मतलब है। डायरी में ब्रिटेन के प्रति व्यक्ति आय में भारतीय योगदान, पूंजीवाद, साम्राज्यवाद के खतरे,बाल मजदूरी, सांप्रदायवाद, शिक्षा नीति इत्यादि विषयों के बारे में भी उनके विचार हैं।
यादविंदर संधू ने कहा कि हिंदी आम जन की भाषा है। युवा पीढ़ी भी चाहती है कि शहीद-ए-आजम की जेल डायरी हिंदी में भी आए। इसके बाद इस पर काम शुरू किया गया और अब यह छप कर अगले माह आएगी।