आमाशय से भोजन नली बनाकर डॉक्टरों ने बच्चे को दी जिंदगी, गलती से गटक गया था तेजाब
समीर स्कूल से घर आया तो वह प्यास था। फ्रिज के उपर बोतल देखी तो लगा कि पानी है। उसे उठाकर पी लिया। डॉक्टरों का कहना है कि लोगों को अपने घरों में पानी की बोतल में तेजाब नहीं रखना चाहिए।
नई दिल्ली [जेएनएन]। घर में तेजाब रखना किस कदर खतरनाक हो सकता है कि इसका अंदाजा हरियाणा के नूह के एक मामले से लगाया जा सकता है। वहां के रहने वाले समीर (10) नाम के बच्चे ने अनजाने में बोतल में रखे तेजाब को पानी समझकर पी लिया। इस वजह से उसकी भोजन नली जल गई और सिकुड़ कर खराब हो गई।
पानी की बोतल में तेजाब नहीं रखना चाहिए
परिजन उसे इलाज के लिए दिल्ली के आरएमएल अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां पेडियाट्रिक सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने बच्चे के आमाशय (स्टमक) से भोजन नली बनाकर उसे नई जिंदगी दी। बृहस्पतिवार को उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। यह मामला लोगों के लिए आंखें खोलने वाला है। डॉक्टरों का कहना है कि लोगों को अपने घरों में पानी की बोतल में तेजाब नहीं रखना चाहिए।
कई लोग घरों में तेजाब रखते हैं
असल में ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी लोग शौचालय की सफाई के लिए कम क्षमता का तेजाब रखते हैं। इसके अलावा तेजाब का व्यवसायिक इस्तेमाल भी होता है। इसलिए कई लोग घरों में तेजाब रखते हैं। जिसे कई बार छोटे बच्चे अनजाने में पी लेते हैं। ऐसे में मामले में पीड़ित तीन और बच्चों का आरएमएल अस्पताल में सर्जरी होनी है। इस बच्चे के पिता कार मैकेनिक हैं। जंग छुड़ाने के लिए वह तेजाब का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए उन्होंने घर में फ्रिज के उपर पानी के बोतल (प्लास्टिक) में तेजाब रखा था।
खून की उल्टी होने लगी
समीर स्कूल से घर आया तो वह प्यास था। फ्रिज के उपर बोतल देखी तो लगा कि पानी है। उसे उठाकर पी लिया। एक घूंट पीते ही ऐसा लगा कि गले के अंदर का हिस्सा जल गया। परिजनों के अनुसार इस घटना के 8-10 मिनट बाद उसे खून की उल्टी होने लगी। यह घटना करीब डेढ़ साल पहले की थी। घटना के बाद परिजन उसे नजदीक के अस्पताल में लेकर गए। वहां इलाज के बाद उल्टी बंद हो गई। इसके बाद डॉक्टरों ने उसे ठीक होने की बात कहकर वापस घर भेज दिया। तीन-चार दिन तक हल्का खाने के बाद भोजन नली जाम हो गई। तब घटना के करीब डेढ़ महीने बाद परिजन इलाज के लिए लेकर आरएमएल अस्पताल पहुंचे।
स्वास्थ्य में लगातार गिरावट हो रही थी
अस्पताल के पेडियाट्रिक सर्जरी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पिनाकी रंजन देबनाथ ने कहा कि जब वह अस्पताल पहुंचा तो उसका वजन मात्र 13 किलोग्राम था। उसके स्वास्थ्य में लगातार गिरावट हो रही थी। इसलिए पहले उसे पेट में ट्यूब डालकर आहार देना शुरू किया गया। इसलिए बच्चे का वजन बढ़कर 20 किलोग्राम पहुंच गया। तब पिछले 27 फरवरी को सर्जरी कर आमाशय से पेट से गले तक भोजन नली बनाई गई।
ट्यूब के माध्यम से ही आहार दिया जा रहा है
आमाशय पेट की बड़ी थैली होती है। उसे बीच से दो हिस्सों में बांट दिया गया। एक हिस्से को स्टिच कर दिया गया। वह आमाशय के रूप में काम करता रहेगा। अलग किए गए दूसरे हिस्से को खींचकर छाती के रास्ते ले जाकर गले में जोड़ा गया है। हालांकि अभी उसे मुंह की नली से जोड़ने के लिए एक और छोटी सर्जरी करनी पड़ेगी। तब वह खुद से भोजन करने लगेगा। फिलहाल उसे पेट में लगे ट्यूब के माध्यम से ही आहार दिया जा रहा है।
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