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एनएमसी बिल को रद करने की मांग, डॉक्टर देशभर में दो अप्रैल को स्वास्थ्य सेवाएं करेंगे ठप

हजारों डॉक्टर व मेडिकल के छात्रों ने समिति की सिफारिशों को भी खारिज कर दिया। इस दौरान दो अप्रैल को देश भर में स्वास्थ्य सेवाएं ठप किए जाने की घोषणा की गई।

By Amit MishraEdited By: Updated: Mon, 26 Mar 2018 08:41 AM (IST)
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एनएमसी बिल को रद करने की मांग, डॉक्टर देशभर में दो अप्रैल को स्वास्थ्य सेवाएं करेंगे ठप

नई दिल्ली [जेएनएन]। इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा बुलाई गई महापंचायत में दो अप्रैल को दिल्ली सहित देशभर के निजी अस्पताल व नर्सिंग होम को बंद रखने का एलान किया गया। महापंचायत में रेजिडेंट डॉक्टरों के संगठनों के अलावा कई सरकारी अस्पतालों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल रहे।

आरपार की लड़ाई

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) बिल के विरोध में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने यह महापंचायत बुलाई थी। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) बिल का विरोध इंडियन मेडिकल एसोसिएशन व रेजिडेंट डॉक्टर लंबे समय से विरोध कर रहे हैं। इस मसले पर अब एलोपैथिक चिकित्सा समुदाय सरकार से आरपार की लड़ाई के मूड में हैं।

एनएमसी बिल को रद करने की मांग

इस क्रम में रविवार को देश भर से हजारों डॉक्टर व मेडिकल के छात्र दिल्ली में एकत्रित हुए। उन्होंने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) के नेतृत्व में साइकिल रैली निकाली, इसके बाद इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में महापंचायत कर एनएमसी बिल को रद करने की मांग की। उन्होंने संसदीय समिति की सिफारिशों को भी खारिज कर दिया। इस दौरान दो अप्रैल को देश भर में स्वास्थ्य सेवाएं ठप किए जाने की घोषणा की गई।

सरकार सख्त कानून बनाए

आइएमए की इस महापंचायत में एम्स रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन, दिल्ली के सभी सरकारी अस्पतालों के रेजिडेंट डॉक्टरों के संगठन फोर्डा (फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन) के पदाधिकारी व कई सरकारी अस्पतालों के वरिष्ठ डॉक्टर भी मौजूद रहे। एसोसिएशन ने भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) में सुधार करने की मांग की है। एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. रवि वानखेडकर ने कहा कि एमसीआइ में सुधार के लिए केंद्र सरकार को कुछ सुझाव दिए गए थे। सरकार उन सुझावों पर अमल करे। डॉक्टरों के खिलाफ मारपीट की घटनाएं रोकने के लिए सरकार सख्त कानून बनाए।

टीबी का नोटिफिकेशन नहीं करने पर दो साल सजा का प्रावधान मंजूर नहीं

डॉ. रवि वानखेडकर ने कहा कि हाल ही में सरकार ने अधिसूचना जारी कर टीबी का नोटिफिकेशन नहीं किए जाने पर डॉक्टरों को दो साल की सजा का प्रावधान किया है। यह बिल्कुल गलत है। यदि तकनीकी कारणों से या गलती से भी कोई डॉक्टर टीबी मरीज का नोटिफिकेशन नहीं कर पाया तो वह सजा का भागीदार होगा। पीएनडीटी एक्ट में भी सजा का प्रावधान है। चिकित्सकीय लापरवाही के मामले में मुआवजे का प्रावधान तर्क संगत नहीं है। ऐसे प्रावधानों से डॉक्टरों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। इन तमाम कारणों के मद्देनजर दो अप्रैल को देश भर में मेडिकल कॉलेजों में हड़ताल रहेगी। फिर भी यदि सरकार बिल पास करती है तो तीन लाख मेडिकल छात्र व 10 लाख डॉक्टर अनिश्चितकालीन हड़ताल करेंगे।

आइमए ने इस महापंचायत में करीब 25 हजार डॉक्टरों व मेडिकल छात्रों के हिस्सा लेने का दावा किया है। एसोसिएशन के महासचिव डॉ. आरएन टंडन ने कहा कि एनएमसी बिल मेडिकल छात्रों के हित के लिए ठीक नहीं है। इससे निजी मेडिकल कॉलेजों के प्रबंधन को बढ़ावा मिलेगा।

देश में डॉक्टरों की कमी नहीं, नीतियों में खामी

आइएमए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग बिल (एनएमसी) में आयुष के डॉक्टरों के प्रशिक्षण के लिए प्रस्तावित ब्रिज कोर्स के संदर्भ में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) ने कहा कि देश में डॉक्टरों की कमी नहीं है। बल्कि सरकार की नीतियों में खामी है। यदि सरकार सही नीति तय करे और डॉक्टरों को स्थायी नियुक्ति, अच्छा वेतमान व सुविधाएं दे तो डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्र में भी इलाज करने को तैयार हैं।

हर साल 67500 एमबीबीएस डॉक्टर तैयार होते हैं

एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. रवि वानखेडकर ने कहा कि देश के मेडिकल कॉलेजों में हर साल 67500 एमबीबीएस डॉक्टर तैयार होते हैं। इसके अलावा 39,000 भारतीय छात्र विदेशों से मेडिकल स्नातक की पढ़ाई पूरी करते हैं। इस तरह देश में हर साल एक लाख से अधिक मेडिकल स्नातक डॉक्टर तैयार होते हैं। इसमें से करीब 30 हजार छात्रों को स्नातकोत्तर में दाखिला मिल पाता है। शेष 70 हजार छात्र प्रैक्टिस में आते हैं।

मेडिकल कॉलेजों की भी ग्रेडिंग होनी चाहिए

देश के 27,000 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 3500 डॉक्टरों के पद रिक्त पड़े हैं। एसोसिएशन यह कमी दूर करने की जिम्मेदारी लेता है बशर्ते सरकार डॉक्टरों को अच्छे वेतमान व इंसेंटिव पर स्थायी नौकरी दे। उन्होंने कहा कि विज्ञान, इंजीनियरिंग इत्यादि संकायों के कॉलेजों की ग्रेडिंग की ही तरह मेडिकल कॉलेजों की भी ग्रेडिंग होनी चाहिए। हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलकर उनमें 50 फीसद आरक्षण स्थानीय छात्रों को मिले। साथ ही यह शर्त रखी जाए पढ़ाई करने के बाद डॉक्टर पांच साल अपने जिले में ही सेवा करेंगे। इससे डॉक्टरों की कमी दूर हो जाएगी। ऐसे विकल्पों पर ध्यान न देकर आयुष के डॉक्टरों को एलोपैथिक चिकित्सा का अल्पकालिक परीक्षण देने पर विचार किया जा रहा है। यह मरीजों के लिए ठीक नहीं है। 

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