Move to Jagran APP

‘ठाकुर के कुइयां’ के जरिये मंच पर उतरा गरीब व्यक्ति की बेबसी का दर्द

आखिरी दृश्य में गंदा पानी पीते समय जोखू और गंगी की चीत्कार दर्शक के सीने में खंजर की भांति उतर जाती है।

By JP YadavEdited By: Updated: Sat, 31 Mar 2018 08:43 AM (IST)
Hero Image
‘ठाकुर के कुइयां’ के जरिये मंच पर उतरा गरीब व्यक्ति की बेबसी का दर्द

नई दिल्ली (जेएनएन)। आंखों में समाया डर, चेहरे पर चिंता, तेज चलती सांसें व कांपते हाथों में बाल्टी थामे ठाकुर के कुएं से पानी चुराने जाती गंगी जिस तरह आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ रही थी, सभागार में छाई शांति के बीच दर्शकों की धड़कनें ही सुनाई दे रही थीं।

मुक्तधारा ऑडिटोरियम में यह दारुण दृश्य देख रही हर आंखों में पानी था जो इसकी तस्दीक कर रहा था कि नाटक अपना संदेश देने में सफल है। पानी को लेकर यदि मानव गंभीर नहीं होगा तो भविष्य में हाहाकार मच जाएगा।

रंग श्री द्वारा आयोजित पांच दिवसीय भोजपुरी नाट्य उत्सव के दूसरे दिन ठाकुर के कुइयां का मंचन किया गया। दैनिक जागरण की मीडिया पार्टनरशिप के तहत गोल मार्केट स्थित मुक्तधारा ऑडिटोरियम में मंचित नाटक पानी के बहाने जाति प्रथा पर तंज कसता है। नाटक की शुरुआत रंगश्री के संस्थापक एमपी सिंह के लिखे एक गीत से होती है कि पानी-पानी करी सब।

पानी खातिर मरी सब। पानी खातिर होई हाहाकार। पानी खातिर बनी नीति, पानी पर ही राजनीति, पानी खातिर लड़ी संसार। निर्देशक लवकांत सिंह ने बताया कि नाटक में जातिवाद, छुआछूत और अमीरी-गरीबी पर प्रहार तो हुआ ही है, यह मानवीय मूल्यों में गिरावट और पानी के मसले पर सोचने को भी विवश करता है।

कहानी को भले ही प्रेमचंद जी ने अपने समय की परिस्थितियों को आत्मसात कर लिखा हो लेकिन आज भी यह समस्या समाज में व्याप्त है। नाटक में जिस तरह से पानी के लिए ‘गंगी’ गांव भर के लोगों के पास भटक रही है ठीक वैसी ही स्थिति आज विश्व भर में है।

दरअसल, गंगी के पति की तबीयत बहुत खराब है। उसे दवा खाने के लिए पानी चाहिए लेकिन कुएं में एक सियार मर गया है इसलिए यह पानी पीने योग्य नहीं है। गंगी कभी साहू तो कभी पंडित, ठाकुर के दरवाजे पर जाती है ताने एवं अपमान के अलावा उसे कुछ नहीं मिलता है। वह ठाकुर के कुएं से पानी चोरी करने भी जाती है लेकिन असफल लौटती है। मजबूरी में जोखू गंदा पानी पीता है।

आखिरी दृश्य में गंदा पानी पीते समय जोखू और गंगी की चीत्कार दर्शक के सीने में खंजर की भांति उतर जाती है। नाटक का अंत पानी को लेकर जागरूक करते गीत से होता है। नाटक में जोखू की भूमिका में अखिलेश पांडेय, मीना राय ( गंगी), उपेन्द्र सिंह चौधरी (ठाकुर), सौमित्र वर्मा (साहू, मुंशी) वकी भूमिका में थे। गौरव सूद ने एक गरीब व्यक्ति की बेबसी को पर्दे पर बखूबी उतारा।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।