एक मामले में HC ने कहा- मनोचिकित्सक से सलाह लेने का मतलब पागल होना नहीं
महिला के मानसिक स्वास्थ्य पर कोर्ट ने कहा कि तनाव के कई कारण हो सकते हैं।
By JP YadavEdited By: Updated: Thu, 03 May 2018 08:32 AM (IST)
नई दिल्ली (जेएनएन)। बेटी को अपने पास रखने को लेकर दायर याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि मनोचिकित्सक की सलाह लेने का मतलब किसी का पागल होना नहीं है, बल्कि वर्तमान तनावपूर्ण जीवन में मनोचिकित्सक से मिलना आम बात है। न्यायमूर्ति विपिन साघी व न्यायमूर्ति पीएस तेजी की पीठ ने सिर्फ मनोचिकित्सक से सलाह लेने के आधार पर उसकी एक साल की बेटी को उससे अलग रखने का फैसला देने से इन्कार कर दिया।
याची ने मांग की थी कि अदालत उसके पति को निर्देश दे कि वह बच्ची को सुनवाई के दौरान पेश करे, जिसे उसके सास-ससुर ने जबरन उससे अलग रखा था। अदालत ने मां को बच्ची को अपने पास रखने का कानूनी हक देते हुए पति की दलील को मानने से इन्कार कर दिया, जिसमें उसने कहा था कि बच्ची मां से प्राकृतिक रूप से जुड़ी हुई नहीं है और वह सेरोगेसी से पैदा हुई है।कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इस आधार पर मां को बच्ची से कम प्यार नहीं हो सकता। बच्ची एक साल की है। भले ही उसका जन्म सेरोगेसी से हुआ है, क्योंकि याचिकाकर्ता का दो बार गर्भपात हो गया था, वह उस बच्चे की जैविक मां नहीं है, वादी (पति) बच्ची का जैविक पिता है। हम पति की दलील को नहीं स्वीकार कर सकते कि जैविक मां न होने के कारण वह बच्ची से कम प्यार करेगी।
वहीं महिला के मानसिक स्वास्थ्य पर कोर्ट ने कहा कि तनाव के कई कारण हो सकते हैं और इस वजह से महिला अपना इलाज करा रही थी और सिर्फ इलाज कराने का मतलब यह नहीं है कि उसका मानसिक संतुलन ठीक नहीं है। महिला के साथ हमारी बातचीत से हमें ऐसा नहीं लगा कि वह मानसिक रूप से अस्थिर है और वह अपनी बच्ची का ख्याल नहीं रख सकती।महिला ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि दिसंबर 2017 में उसकी इजाजत पर उसके ससुर बच्ची को थाईलैंड और दुबई ले गए थे। वह खुद दुबई जाकर छुट्टियों पर बच्ची को अमेरिका ले जाना चाहती थी, लेकिन उसके सास-ससुर ने बच्ची को देने से इन्कार कर दिया। वापस दिल्ली लौटने पर पति के खिलाफ महिला ने याचिका दायर की। इसके बाद बच्ची को दिल्ली तो लाया गया, लेकिन उसके दादा-दादी के पास रखा गया था। कोर्ट के आदेश पर महिला को बच्ची को अपने पास रखने का कानूनी हक मिल गया।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।