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कहीं आपका टूथपेस्ट भी कैंसर का कारक तो नहीं, जानिए टॉक्सिक लिंक की रिपोर्ट

माइक्रोप्लास्टिक के कण धीरे धीरे न केवल हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं बल्कि फेफड़ों और आंतों का हानि पहुंचाने के साथ- साथ कैंसर तक का कारक बन रहे हैं।

By Ramesh MishraEdited By: Updated: Sat, 05 May 2018 08:46 AM (IST)
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कहीं आपका टूथपेस्ट भी कैंसर का कारक तो नहीं, जानिए टॉक्सिक लिंक की रिपोर्ट

नई दिल्ली [ संजीव गुप्ता ]। हवा-पानी ही नहीं, रोजमर्रा के काम में आने वाली ज्यादातर चीजें सेहत को नुकसान पहुंचा रही हैं। इन सभी चीजों में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक के कण धीरे धीरे न केवल हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं बल्कि फेफड़ों और आंतों का हानि पहुंचाने के साथ- साथ कैंसर तक का कारक बन रहे हैं। टॉक्सिक लिंक की ताजा रिपोर्ट में इस संबंध में कुछ सख्त मानक तय किए जाने की सिफारिश भी की गई है।

इस रिपोर्ट के अनुसार टूथपेस्ट, हेयर कंडीशनर, शैंपू, शेविंग क्रीम, डियोड्रंट, जूते, कपड़े, दवाओं के कैप्सूल, पानी की बोतलों और बच्चों के खिलौनों में भी प्लास्टिक के छोटे- छोटे अंश होते हैं। इन उत्पादों में प्लास्टिक का प्रयोग कसावट और रगड़ में मददगार होने के कारण किया जाता है। जब हम इन्हें शरीर पर उपयोग करते हैं तो सिंथेटिक, पोलीमर, पीवीसी इत्यादि के सूक्ष्म कण रूप में ये बहुत ही सहजता से शरीर के भीतर तक चले जाते हैं।

नैनो प्लास्टिक से भी छोटे होते हैं कण

माइक्रोप्लास्टिक के यह कण नैनो प्लास्टिक से भी छोटे होते हैं। इनका साइज आमतौर पर 1 से 5 माइक्रो मीटर होता है। समुद्र में मिलने वाले माइक्रोप्लास्टिक कणों से तो यह एक हजार गुणा तक सूक्ष्म होते हैं। यही वजह है कि खुली आंख से इन्हें देख पाना और महसूस कर पाना बहुत ही मुश्किल होता है।

ऐसे पहुंचाते हैं नुकसान

शैंपू, डिटर्जेंट, हेयर कंडीशनर, क्रीम इत्यादि का प्रयोग करते हुए यह कण त्वचा से चिपक जाते हैं। घंटों चिपके रहने के कारण एलर्जी भी करते हैं एवं कई बार त्वचा में खिंचाव पैदा करते हैँ। यह कण आंखों में चले जाएं तो कोर्निया को नुकसान पहुंचने का भय बना रहता है। टूथपेस्ट व अन्य खाद्य पदार्थों के जरिए शरीर में पहुंच कर फेफड़ों और आंतों से चिपक जाते हैं।

3 से 30 लाख तक की संख्या में होते मौजूद

150 मिलीमीटर वाली फेस वॉश और क्रीम की टयूब में माइक्रोप्लास्टिक की संख्या तीन से 30 लाख तक होती है।  अलग अलग उत्पादों में इनकी संख्या में थोड़ा बहुत अंतर भी हो सकता है।

पानी की बोतलें और प्लास्टिक के लंच बॉक्स भी असुरक्षित

दिल्ली, चेन्नई एवं मुंबई से विभिन्न ब्रांड की पानी की बोतलों के लिए गए सैंपलों में पाया गया है कि एक लीटर पानी में औसतन 325 प्लास्टिक कण पाए गए। इसी तरह प्लास्टिक के लंच बॉक्स में जब गर्म खाना डाला जाता है तो उसमें भी प्लास्टिक के अंश शामिल हो जाते हैं।

सड़़क पर गाडिय़ां चलने से भी उड़ रहे ऐसे कण

रिपोर्ट के मुताबिक सड़क पर जब गाड़ी चलती है तो टायरों की रगड़ से भी माइक्रोप्लास्टिक के कण पैदा होते हैं। यह कण हवा में उड़ जाते हैं और सांस के जरिए हमारे शरीर में पहुंचते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक से जुड़े कुछ और महत्वपूर्ण तथ्य

- हर साल समुद्र में 5 से 14 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में पहुंच रहा है। इससे समुद्री जीव भी मर रहे हैं।

- इन्हें नष्ट करना नामुमकिन ही होता है। न यह पानी में घुलते हैं, न जलते हैं और न ही जमीन के भीतर गलते हैं।

- भारत प्लास्टिक का सर्वाधिक प्रयोग करने वाला देश है। यहां सालाना 5.6 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है।

- इसके बावजूद भारत में इस बाबत नियंत्रण के लिए कोई कानूनी फ्रेम वर्क तैयार नहीं किया गया है।

-प्लास्टिक के बजाए स्टील की चीजों का प्रयोग करके हम निजी स्तर पर इस प्रदूषण और इसके दुष्प्रभाव को थोड़ा कम कर सकते हैं।

प्लास्टिक का एक पूरा परिवार है। मसलन, थर्मो प्लास्टिक, सिंथेटिक, सेमी सिंथेटिक, पोलीमर प्लास्टिक, पीवीसी इत्यादि। सबसे खतरनाक है पीवीसी। प्लास्टिक में पोली वाइनल क्लोराइड गैस होती है जिसे पोली मराइज्ड करके अनेक उत्पाद बनाए जाते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक के यह अति सूक्ष्म कण पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इनकी वजह से रोग प्रतिरोधक क्षमता घट रही है, एलर्जी की समस्या बढ़ रही है, कैंसर के नए नए मामले सामने आ रहे हैं एवं श्वांस रोग का संक्रमण भी बढ़ रहा है।

-डा. टी के जोशी, सलाहकार, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय।

माइक्रोप्लास्टिक बहुत धीरे धीरे सेहत और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। इसीलिए अभी इसका रौद्र रूप नजर नहीं आया है। यही वजह है कि अभी तक न तो इस दिशा में ज्यादा अध्ययन किया गया है, न ही माइक्रोप्लास्टिक के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए कोई मानक ही तय किए गए हैं। अगर समय रहते इस बाबत नहीं सोचा गया तो बहुत देर हो जाएगी।

-प्रीति महेश, चीफ प्रोग्राम कॉर्डीनेटर, टॉक्सिक लिंक।

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