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निर्भया केसः फांसी की सजा पाए दोषियों ने SC में लगाई गुहार, वकील ने कहा- कम से कम हो सजा

16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में पैरा मेडिकल की छात्रा निर्भया (नाम बदला) सामूहिक दुष्कर्म की शिकार हुई थी।

By JP YadavEdited By: Updated: Sat, 05 May 2018 08:43 AM (IST)
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निर्भया केसः फांसी की सजा पाए दोषियों ने SC में लगाई गुहार, वकील ने कहा- कम से कम हो सजा

नई दिल्ली (जेएनएन)। देश के साथ पूरी दुनिया को झकझोर देने वाला निर्भया सामूहिक दुष्कर्म व हत्याकांड एक बार फिर चर्चा में है। दरअसल, निर्भया केस में फांसी की सजा पाए दोषी विनय शर्मा और पवन गुप्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से दोनों की सजा कम से कम करने की गुहार लगाई है।

वहीं, सुनवाई के दौरान दोनों दोषियों की फांसी की सजा के ख़िलाफ़ दाखिल पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बहस सुनकर फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस मामले में कोर्ट ने रिब्यू पिटिशन दाखिल करने के लिए चारों दोषियों को तीन सप्ताह का समय दिया है।

यहां पर बता दें कि पिछले साल मई महीने में ही (5 मई) को दिल्ली हाईकोर्ट से फांसी की सजा पाए दिल्ली दुष्कर्म कांड के दोषियों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत और दिल्ली हाईकोर्ट ने चार दोषियों मुकेश, पवन, अक्षय और विनय को फांसी की सजा बरकरार रखा था।

गौरतलब है कि 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में पैरा मेडिकल की छात्रा निर्भया (नाम बदला) सामूहिक दुष्कर्म की शिकार हुई थी। दुष्कर्मियों के अमानवीय व्यवहार और चोटों के कारण बाद में उसकी मौत हो गई थी। इस कांड से पूरा देश हिल गया था और बाद में दुष्कर्म से जुड़े कानून में भी बदलाव कर उसे कठोर किया गया ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं का दोहराव न हो।

साकेत की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सितंबर 2013 में चारों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी। जिस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने 13 मार्च 2014 को मुहर लगा दी थी। दोषियों ने वकील एमएल शर्मा और एमएम कश्यप के जरिये सुप्रीमकोर्ट में अपील दाखिल की थी। हाईकोर्ट ने दोषियों की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि उनका अपराध दुर्लभ से दुर्लभतम की श्रेणी में आता है।

हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दोषी सुप्रीमकोर्ट आए थे। निर्भया कांड का एक आरोपी नाबालिग था जिस पर जुविनाइल जस्टिस एक्ट के तहत जुविनाइल बोर्ड में मुकदमा चला। कानून के मुताबिक वह अपनी सजा पूरी कर छूट चुका है। हालांकि नाबालिग के छूटने पर भी देश में लंबी बहस छिड़ी जिसके बाद कानून में संशोधन किया गया और जघन्य अपराध में आरोपी 16 से 18 वर्ष के बीच के किशोरों पर सामान्य अदालत में मुकदमा चलाने के दरवाजे खोले गए थे।

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