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पुराने पार्षद का बोर्ड उतारकर अपने लगाने में जुटे नेताजी

निगम पार्षद बने एक साल हो गए लेकिन फंड की वजह से कोई बड़ा काम हो ही नहीं पा रहा है। हालांकि कुछ पार्षद तो किसी न किसी माध्यम से फंड लाने में सफल हो रहे हैं और वह उद्धाटन से लेकर शिलान्यास कार्यक्रम तक कर रहे हैं। लेकिन नए नेताजी ऐसे भी हैं जो पुराने पार्षदों को किए गए कामों को अपने नाम पर करवाने में जुटे हुए हैं। एक पार्षद महोदय ने कई जगहों पर पुराने पार्षद द्वारा करवाए गए काम का बोर्ड हटवा दिया और वहां अपना बोर्ड लगवा दिया।

By JagranEdited By: Updated: Sun, 06 May 2018 07:15 PM (IST)
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पुराने पार्षद का बोर्ड उतारकर अपने लगाने में जुटे नेताजी

निगम पार्षद बने एक साल हो गए, लेकिन फंड की कमी की वजह से कोई बड़ा काम नहीं हो पा रहा है। कुछ पार्षद तो किसी न किसी माध्यम से फंड लाकर शिलान्यास से लेकर उद्घाटन तक कर रहे हैं, लेकिन नए नेताजी पुराने पार्षद के किए काम को अपने नाम पर करवाने में जुटे हैं। एक पार्षद ने कई जगहों पर पुराने पार्षद द्वारा करवाए गए काम का बोर्ड हटवाकर अपना बोर्ड लगवा दिया। कुछ जगहों पर थोड़ा-बहुत काम कर अपना नया बोर्ड लगवा दिया। नए नेताजी की इस कार्यशैली से पुराने पार्षद व उनके समर्थक भी आहत हैं। उन्होंने इस मामले में निगम अधिकारियों से भी बात की, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा।

अधिकारियों का कहना है कि नए पार्षद का दबाव है। इस वजह से वह उनका बोर्ड नहीं लगा सकते हैं। वहीं, पुराने पार्षद की पीड़ा है कि नए पार्षद अगर इलाके में काम करवाएं और उसकी शिलापट लगवाएं तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन उनके शिलापट क्यों उतरवाने में लगे हैं। इस मामले को पुराने पार्षद ने कई जगहों पर उठाया भी है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब वह इस मामले को पार्टी फोरम पर ले जाने की तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि नए पार्षद भी उन्हीं की पार्टी के हैं। इस बीच कई लोग पुराने व नए पार्षद के बीच हो रही जुबानी जंग का आनंद भी उठा रहे हैं। उनका सोचना है कि ये दोनों भिड़ेंगे तो आने वाले समय में उनका नंबर आएगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में इस भिड़ंत का क्या नतीजा निकलता है। बार- बार टाल रहे चुनाव, कैसे काम चलेगा जनाब

पूर्वी दिल्ली नगर निगम में चाहे महापौर का चुनाव हो या जोन चेयरमैन या किसी अन्य पद का। इसकी तिथि बार-बार बदल रही है। भाजपा नेतृत्व के निर्देश में तिथि में बदलाव हो रहा है। इससे भाजपा पार्षदों में रोष भी है। वह खुलकर कुछ बोल तो नहीं पा रहे हैं, लेकिन आपस में बातें जरूर कर रहे हैं कि इस बार पता नहीं, नेतृत्व को क्या हो गया जो बार-बार चुनाव टाल रहा है। इससे गलत संदेश जा रहा है। एक तो पूर्वी निगम की आर्थिक स्थिति पहले से ही खस्ताहाल है। ऊपर से पार्षदों की बैठक नहीं हो पा रही है। इससे अधिकारियों की मनमानी पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। एक पार्षद कहते हैं कि अप्रैल में निगम के राजनीतिक ¨वग का पूरी तरह से गठन हो जाना चाहिए, ताकि मई से सभी समितियों की बैठक होने लगे। लेकिन, अभी की जो स्थिति है, उससे लग नहीं रहा है कि जून में भी राजनीतिक ¨वग का गठन हो पाएगा। पर्चा तो भर लिया, लेकिन दुविधा दूर नहीं हुई

एक नेताजी निगम में समिति के प्रत्याशी घोषित हो चुके हैं, लेकिन न तो वह पर्चा भर पा रहे हैं और न ही समिति पदाधिकारी के तय कमरे में बैठ पा रहे हैं। नाम घोषित हुए कई दिन हो गए, लेकिन अभी तक तय नहीं है कि चुनाव कब होगा। दरअसल, समिति के सदस्यों के चयन के लिए प्रक्रिया शुरू ही नहीं हुई है। इसलिए वह दुविधा में हैं। जब कभी निगम मुख्यालय आते हैं तो इधर-उधर बैठकर ही समय गुजार लेते हैं, क्योंकि जब तक उनका चुनाव नहीं हो जाता, तब तक ओहदे वाली कुर्सी पर बैठने के हकदार नहीं होंगे।

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