जेएनयू ने स्थायी नियुक्ति को दो साल बाद संविदा में बदला, लगी रोक
विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली जवाहर लाल विश्वविद्यालय (जेएनयू) की कार्यकारी समिति द्वारा महिला असिस्टें
By JagranEdited By: Updated: Sun, 06 May 2018 08:12 PM (IST)
विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली
जवाहर लाल विश्वविद्यालय (जेएनयू) की कार्यकारी समिति द्वारा महिला असिस्टेंट प्रोफेसर की स्थायी नियुक्ति को बदलकर दोबारा से संविदा में करने के फैसले पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति सुनील गौर ने याची को दो सप्ताह के अंदर जेएनयू के सामने अपना पक्ष रखने की अनुमति दी और स्थायी नियुक्ति पर यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए। साथ ही कोर्ट ने कहा कि अगर याची उक्त फैसले से सहमत न हो तो वह दोबारा कोर्ट के समक्ष आ सकती हैं। याची लिपी बिस्वास सेन ने वकील संजॉय घोष के माध्यम से याचिका दायर की थी। वकील ने कोर्ट को बताया कि याची ने 2012 में जेएनयू में असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए आवेदन किया था और सभी दस्तावेज पेश किए थे, जिसमें उन्होंने बताया था कि उनकी नागरिकता विदेशी है। विदेशी नागरिक होने के कारण जेएनयू प्रशासन ने उन्हें कहा था कि वह तब तक संविदा के तौर पर काम करें जब तक उनको भारतीय नागरिक न मिल जाए।
वकील ने कोर्ट को बताया कि 14 जनवरी 2016 को भारतीय नागरिकता मिलने पर जेएनयू ने प्रोफेसर लिपी बिस्वास सेन को तीन मई 2016 को स्कूल ऑफ लैंग्वेज, लेक्चरर एंड कल्चर स्टडीज में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर स्थायी नियुक्ति दी। मगर जेएनयू की कार्यकारी समिति ने 20 अप्रैल 2018 को पत्र जारी कर प्रोफेसर को सूचित किया, 'चूंकि चयन के दौरान उनकी नागरिकता विदेशी थी, ऐसे में उनकी स्थायी नियुक्ति को संविदा में बदला जा रहा है।' साथ ही उक्त ज्ञापन पर तीन दिन के अंदर जवाब देने के आदेश दिए। उक्त ज्ञापन के तहत मामले में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का स्पष्टीकरण आने तक पांच मई से प्रोफेसर सेन को दोबारा संविदा के तहत काम करने का आदेश दिया गया था। इसके खिलाफ ही प्रोफेसर ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
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