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लाल किला का टेंडर

लाल किला अचानक चर्चा में आ गया है। इसके आसपास नेताओं का जमावाड़ा लगा है। गुजरने वाले लोग जा

By JagranEdited By: Updated: Sun, 06 May 2018 08:18 PM (IST)
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लाल किला का टेंडर

लाल किला अचानक चर्चा में आ गया है। इसके आसपास नेताओं का जमावाड़ा लगा है। गुजरने वाले लोग जाम से परेशान हैं। रुककर पूछ रहे हैं, आखिरकार माजरा क्या है? नेता जी ऊंची आवाज में समझा रहे हैं, अरे पता नहीं.., लाल किला का टेंडर हो गया। यह बिक गया है। अब इसका एक अमीर मालिक हो गया है। जनता परेशान यह क्या बला है? किसने बेच दिया? एक नटवरलाल था, जिसने ताजमहल बेच दिया था। वह भी अखबारों में पढ़ा था।

तो माइक लेकर जोर-जोर से नारे शुरू। जनप्रतिनिधि से राजनेता तक शामिल। लाल किला की परिक्रमा भी शुरू। यहां से बाइट देते चेहरा अच्छा आएगा। चाय, पानी का दौर शुरू। चंदा इकट्ठा करने का काम भी तेज हो गया है। इतने में चांदनी चौक के एक चचा आए। बोले, ऐसा करो, हम सब चंदा जुटाए और लाल किला को हम ही खरीद लें। फिर लाल किला भी चांदनी चौक वालों की। बताओ, कैसा लगा आइडिया।

अब नेता जी सकपकाए, खिझे से बोले, सुनो चचा अपना आइडिया अपने पास रखो। अभी हम बड़े व्यस्त हैं। सियासत का टाइम है, खराब न करो। और चचा अपना सा मुंह लेकर भीड़ में खो लिए।

::::::::::::::: कर्नाटक चुनाव से पार्षदों की मौज

अब कर्नाटक चुनाव में पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। जोड़-तोड़ के साथ माहौल बनने-बिगड़ने का खेल जारी है। आला नेता से लेकर सरकार तक प्रचार में है तो पार्षदों की मौज निकल आई है। वैसे भी दक्षिण राज्य के चुनाव से पहले दिल्ली में कोई चुनावी उठापटक होनी नहीं है। इसके पहले महापौर के चुनाव में जमकर परेड लगी थी। आलाकमान की रडार पर थे। अभी चहुंओर शांति है। कोई तांक-झांक नहीं है। जनता भी चुनावों के कारण ज्यादा सवाल-जवाब नहीं कर रही है। कर्नाटक के बाद फिर जोन चुनाव का जोड़तोड़ शुरू हो जाएगा। ऐसे में खाली समय में परिवार को समय देने में कोई बुराई नहीं है। वैसे भी दिल्ली का तापमान बढ़ रहा है सो, कई पार्षद पहाड़ों की ओर निकल लिए हैं। तैयारी में जुटे एक पार्षद ने कहा कि अभी 15 दिन और हैं। बाकि तो जनता और पार्टी की सेवा तो है ही।

::::::::::::::::: अक्खड़ प्रतिनिधि जी

एक हैं जनप्रतिनिधि। नेतागिरी कभी की नहीं। आलाकमान की नजर पड़ी तो लहर में राम का नाम लेते हुए चुनावी वैतरणी पार कर लिए। तो स्थानीय नेताओं को ज्यादा भाव देते नहीं हैं। वैसे, भी सिविल लाइंस में एक अर्से बाद भगवा लहराया है। मजाक की बात तो है नहीं। तो थियेटर वाली हनक बात से लेकर चाल में हर वक्त रहती है। सो, दुआ सलामी तो दूर, देखते तक नहीं हैं। अब सामने कोई बैठा हो। इससे बड़े नेता खिसियाए से। उनके खैरख्वाह से पूछ ही लिया। क्या मामला है। हाथ जोड़, बोला माफ करें, अभी नए हैं। आप लोगों को पहचानते जरा कम हैं। मामला आया-गया हो गया। अब जब न तब बैठे-बैठे जनता के बीच दावा ठोक देते हैं, वो मैंने आलाकमान से बात कर ली है। इलाके में करोड़ों रुपये विकास के लिए आने वाले हैं। अब इस दावे से बड़े नेता परेशान हैं। सिर खुजाते हुए पूछ रहे हैं, अब उनके दावे के मुताबिक इतना पैसा कहां से एक ही वार्ड में दिया जाएगा?

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