दिल्ली में ई-कचरा बन रहा बड़ी समस्या
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली नई लैंडफिल साइट के विवाद और ठोस कचरा प्रबंधन की धुंधली तस्वीर के बीच दिल्
By JagranEdited By: Updated: Sun, 06 May 2018 08:21 PM (IST)
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली
नई लैंडफिल साइट के विवाद और ठोस कचरा प्रबंधन की धुंधली तस्वीर के बीच दिल्ली में ई- कचरा तेजी से बढ़ रहा है। अगले दो साल में ही यह कचरा भी राजधानी के लिए एक बड़ी समस्या बन जाएगा। एसोसिएटेड चैंबर ऑफ कॉमर्स (एसोचैम) की रिपोर्ट के मुताबिक यह कचरा न सिर्फ पर्यावरण में जहर घोल रहा है बल्कि कई गंभीर बीमारियों के मरीजों की संख्या में भी इजाफा कर रहा है। यह है रिपोर्ट मौजूदा दौर में दिल्ली में सालाना 85 हजार मीट्रिक टन ई-कचरा उत्पन्न हो रहा है। 25 फीसद तक वार्षिक वृद्धि की दर से 2020 में यह ई- कचरा बढ़कर 1.5 लाख मीट्रिक टन हो जाएगा। इसमें 86 फीसद कंप्यूटर उपकरण, 12 फीसद टेलीफोन-मोबाइल उपकरण, आठ फीसद इलेक्ट्रिकल उपकरण एवं सात फीसद चिकित्सा उपकरण है। घरेलू ई-स्क्रैप सहित अन्य उपकरण शेष पांच फीसद में आते हैं। स्वास्थ्य पर डाल रहे बुरा प्रभाव
लैंडफिल में पाए जाने वाले कचरे में 40 फीसद शीशा और 70 फीसद भारी घातुओं का ई-कचरा निकलता है। रिसाइक्लिंग के दौरान उत्पन्न होने वाले रसायनों के प्रभाव से तंत्रिका तंत्र, रक्त प्रणाली, गुर्दे एवं मस्तिष्क के विकास और श्वसन, त्वचा विकार, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों का कैंसर एवं हृदय आदि को नुकसान पहुंच रहा है। सच्चाई कुछ और ही है केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ई-कचरे का उत्पादन कम करने और इसका रिसाइक्लिंग बढ़ाने की बात कहता है। जबकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा संशोधित ठोस कचरा प्रबंधन नियम 2017 के अनुसार सात साल में 10 से 70 फीसद तक ई- कचरे को एकत्रित करने के लिए निर्माता कंपनियां ही उत्तरदायी होंगी। लेकिन, कंपनियां इस लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ हैं। वजह, देश भर में ही सिर्फ 1.5 फीसद ई-कचरे का नवीनीकरण होता है। 95 फीसद से अधिक ई-कचरे का प्रबंधन असंगठित क्षेत्र निर्धारित करता है। जैसे, मरम्मत की दुकानें, प्रयुक्त उत्पाद डीलर, ई- कॉमर्स पोर्टल विक्रेता इत्यादि।
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ई-कचरे की समस्या निस्संदेह भविष्य में बड़ा रूप लेने वाली है। इसीलिए ठोस कचरा प्रबंध नियमों में संशोधन भी किया गया है। हालांकि अभी इस दिशा में सख्ती बरते जाने और सतत निगरानी की जरूरत है। जन जागरूकता भी इस समस्या के समाधान के लिए बहुत जरूरी है। सभी समन्वित प्रयासों से अवश्य ही ई कचरे के दुष्प्रभावों को कम किया जा सकेगा। -ए. सुधाकर, सदस्य सचिव, सीपीसीबी
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