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पटेरा घास की मदद से दूषित पानी को किया जाता है साफ

गौतम कुमार मिश्रा, पश्चिमी दिल्ली पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के जल प्रौद्योगिकी केंद

By JagranEdited By: Updated: Sun, 27 May 2018 08:07 PM (IST)
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पटेरा घास की मदद से दूषित पानी को किया जाता है साफ

गौतम कुमार मिश्रा, पश्चिमी दिल्ली पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के जल प्रौद्योगिकी केंद्र ने दूषित पानी को इस्तेमाल करने लायक बनाने के लिए एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसमें न तो मशीनें और न ही ऊर्जा का इस्तेमाल होता है। इस तकनीक की सबसे बड़ी खासियत इसकी सरल कार्यविधि व पर्यावरण अनुकूल होना है। इस तकनीक में पटेरा घास की मदद से पानी को साफ किया जाता है। दूषित पानी के शोधन से जुड़ी परंपरागत विधि की तुलना में महज एक फीसद बिजली की खपत होती है। इस तकनीक में रसायनिक पदार्थो का इस्तेमाल भी नहीं किया जाता है। इस संयंत्र के निर्माण की लागत भी परंपरागत संयंत्र की तुलना में आधे से कम होती है। संस्थान ने इस तकनीक का नाम इको फ्रेंडली वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट दिया है। संस्थान परिसर में यह प्लांट सफलतापूर्वक कार्य कर रहा है। कई अवसरों पर खुद केंद्रीय कृषि मंत्री भी इस तकनीक की खूब तारीफ कर चुके हैं। आलम यह है कि अब इस तकनीक में देश के कई मंत्रालय रूचि दर्शा रहे हैं। कैसे करता है काम : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की प्रधान वैज्ञानिक डॉ. र¨वद्र कौर बताती हैं कि दूषित पानी को स्वच्छ करने के लिए लगाए जाने वाले संयंत्रों में एक ओर जहां भारी भरकम मशीनें लगाई जाती हैं, वहीं दूसरी ओर लाखों करोड़ों रुपये व काफी मात्रा में ऊर्जा की खपत होती है। इस तकनीक के तहत पटेरा नाम की घास की मदद से दूषित पानी को फिर से इस्तेमाल योग्य बनाया जाता है। जब यह घास हरी होती है तब पानी में ऑक्सीजन का तीव्र गति से संचार कर उसमें मौजूद भारी भरकम तत्वों को छान देती है। वहीं, सूखने के बाद इस घास का इस्तेमाल बोर्ड बनाने में किया जा सकता है। आमतौर पर दूषित पानी को साफ करने के दौरान भारी मात्रा में गाद निकलता है। लेकिन, इस तकनीक में गाद नहीं निकलता है। दूषित पानी को ऐसे तीन बड़े टैंकों से गुजारा जाता है जिनमें नीचे छोटे-छोटे कंकड़ पत्थर रखे होते हैं। टैंक के ऊपरी हिस्से में पटेरा घास लगी होती है। घास की जड़ें काफी फैली होती हैं। जिनसे पानी छनता रहता है। ऊपर की पत्तियां वातावरण से मिले गैस अपने अंदर बनी छिद्रों से प्रवेश कराती है तथा जड़ों से उच्च दवाब के साथ निकालती है। इससे पानी में ऑक्सीजन का संचार तेज गति से होता है। काफी मात्रा में मिले ऑक्सीजन व जड़ों से छनने के बाद दूषित पानी में मौजूद लोहा, शीशा, निकेल, ¨जक जैसे हानिकारक व भारी तत्व नीचे जमा हो जाते हैं। इन तत्वों को पटेरा घास अपने पोषण में इस्तेमाल कर लेता है। जिससे पानी धीरे धीरे साफ साफ होने लगता है। यह प्रक्रिया तीनों टैंकों में होती है। तीनों टैंकों से गुजरने के बाद निकला साफ पानी एक बड़े टैंक में एकत्रित होता है। जहां से इसे पाइप नेटवर्क के माध्यम से संस्थान में भेजा जाता है। पटेरा घास जब सूख जाती है तो इसकी कटाई कर ली जाती है। इस घास को सुखाने के बाद इसका इस्तेमाल पार्टिकल बोर्ड (प्लाइबोर्ड की तरह) बनाने में किया जाता है। यह बोर्ड जल रोधी व दीमक रोधी होती है। दूषित पानी के शोधन से जुड़ी परंपरागत विधि की तुलना में महज एक फीसद बिजली की खपत होती है।

------------- पूसा में रोजाना 2.2 मिलियन दूषित पानी हो रहा साफ :

दूषित पानी को स्वच्छ बनाने की पूसा संस्थान की तकनीक देश में जल प्रदूषण की समस्या के समाधान में कारगर सिद्ध हो सकती है। पूसा संस्थान खुद इस तकनीक से रोजाना 2.2 मिलियन लीटर दूषित पानी को स्वच्छ बना रहा है। यह गंदा पानी पूसा संस्थान से सटे कृषि कुंज कॉलोनी के 1200 फ्लैटों से रोजाना निकलता है। शोधित पानी का इस्तेमाल पूसा कृषि से जुड़े कार्यो के लिए कर रहा है। इससे पूसा अब ¨सचाई के मामले में आत्मनिर्भर होने की राह पर चल पड़ा है। पहले पूसा संस्थान में ¨सचाई के लिए भूली भटियारी नाले के पानी का इस्तेमाल किया जाता था। इस पानी के एवज में पूसा संस्थान प्रतिवर्ष 18 लाख रुपये का भुगतान ¨सचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग को करती थी। लेकिन, अब भूली भटियारी नाले के पानी का इस्तेमाल बंद कर दिया गया है। पूसा के बाद उत्तर प्रदेश के मथुरा स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय धाम, फराह में पूसा की तकनीक पर ही आधारित जल उपचार केंद्र का निर्माण हुआ है। यहां रोजाना 75 हजार लीटर दूषित पानी को शोधित किया जाता है। -------------

वर्षा आधारित क्षेत्र के लिए रामबाण तकनीक :

संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक का ऐसे क्षेत्रों में इस्तेमाल करना काफी फायदेमंद रहेगा, जो सूखे की समस्या से ग्रस्त हैं। जहां पानी की बचत का एकमात्र सहारा सतही पानी (सरफेस वाटर) का कुशलता पूर्वक इस्तेमाल है। ऐसे इलाकों में हम दूषित सतही पानी को शोधित कर उसका फिर से इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री कृषि योजना के तहत ¨सचाई के लिए भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है। नदियों में सीधे दूषित पानी के प्रवाह को रोकने के लिए भी इस तकनीक का कारगर इस्तेमाल हो सकता है।

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