सत्ता के लिए लगते हैं बड़े अच्छे
कहते हैं कि राजनीति में कभी कोई न तो स्थायी दोस्त होता है और न ही दुश्मन। यह कहावत अब दिल्ली मे
By JagranEdited By: Updated: Sun, 27 May 2018 08:15 PM (IST)
कहते हैं कि राजनीति में कभी कोई न तो स्थायी दोस्त होता है और न ही दुश्मन। यह कहावत अब दिल्ली में सही होती दिखाई दे रही है। जहां उत्तरी दिल्ली नगर निगम की एक वार्ड समिति के पदों के लिए आम आदमी पार्टी और भाजपा एक दूसरे को अच्छे लगने लगे। दोनों ही दलों के नेताओं ने कुर्सी के लालच में सांप-नेवले की लड़ाई छोड़कर एक दूसरे के पक्ष में मतदान कर दिया और अब यह कह रहे है कि इसके लिए कोई समझौता नहीं हुआ। इससे एक दल को चेयरमैन का पद मिल गया तो वहीं एक दल को सदस्य का पद मिल गया, जबकि कई घटनाओं पर जुबान नहीं, चेहरा सब कुछ बता देता है। अब नेताजी इसे सत्ता की नीति भी बता रहे हैं, वहीं कांग्रेस भी अब भाजपा और आप को सत्तालोलुप करार दे रही है, लेकिन कांग्रेस के नेताओं को कौन समझाए कि वे भी सत्तालोलुप उस समय करार दे दिए गए थे जब वर्ष 2013 में विधानसभा की आठ सीटें आने पर आम आदमी पार्टी के साथ सत्ता के साथी बन गए थे।
चुनाव करा लो हमारी तो फ्लाइट है उत्तरी दिल्ली नगर निगम सदर पहाड़गंज वार्ड समिति के चुनाव में एक अनोखा नजारा तब देखने को मिला जब आप और भाजपा की साठगांठ को तोड़ने के लिए पार्षदों ने समय से चुनाव कराने की मांग कर दी। दरअसल, समिति के चुनाव 12 बजे निर्धारित किए गए थे, लेकिन आप और भाजपा के सदस्य जब पौने एक बजे तक नहीं पहुंचे तो कांग्रेस के नेताओं को अंदेशा हो गया कि आप और भाजपा में जरूर कोई खिचड़ी बन रही है। खिचड़ी पक न पाए, इसलिए कांग्रेस के पार्षदों ने पीठासीन अधिकारी और निगम सचिव पर फ्लाइट से जाने में देरी होने की बात कहकर जल्द चुनाव कराने की मांग कर डाली। अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए अब निगम सचिव और पीठासीन अधिकारी पर चुनाव कराकर विजयी उम्मीदवार घोषित करने की मांग कर दी, लेकिन नेताजी के सपनों पर तब पानी फिर गया जब आप और भाजपा के दल समझौता करते समिति की बैठक में पहुंच गए और कांग्रेस के हाथ से जीतने का मौका निकल गया।
नेताजी से पूछा नाम तो निगम कर्मचारी से बोला कौन है तू
वार्ड समितियों के चुनाव में मोबाइल न ले जाने के साथ सदस्य के अलावा किसी और के प्रवेश पर प्रतिबंध पर निगम कर्मचारी ने एक नेताजी से नाम पूछ लिया तो नेताजी ने गुस्से में कहा, बे तू कौन है। हमें नहीं पहचानता। भले ही हमारे पास पद नहीं मिला है, लेकिन नेता तो हम ही हैं। हमने संगठन का काम कैसे होता यह सीखा है ये लोग तो सिफारिश के मेहमान है। आज हैं, कल नहीं होंगे।
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